मुक्तिका
*
नेह नर्मदा बहने दे
मन को मन की कहने दे
*
बिखरे गए रिश्ते-नाते
फ़िक्र न कर चुप तहने दे
*
अधिक जोड़ना क्यों नाहक
पीर पुरानी सहने दे
*
देह सजाते उम्र कटी
'सलिल' रूह को गहने दे
*
काला धन जिसने जोड़ा
उसको थोड़ा दहने दे
*
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें