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मंगलवार, 3 जनवरी 2017

muktak

मुक्तक
आस का, विश्वास का हम, नित नया सूरज उगायें
दूरियों को दूर कर दें, हाथ हाथों से मिलायें
ताल के सँग झूम ले मन, नाद प्राणों में समाये
पूर्ण हों अद्वैत को वर, विहँस मन नाच  गायें
*
शून्य से प्रगटे स्वयंभू, कहो कण-तृण या कि कंकर
नष्ट कर शंकाएँ सारी, शक्ति वरकर दे रहे वर
काट सर जोड़ा तभी हर विघ्न हर विघ्नेश पुजते
गुप्त था जो चित्र प्रगटा, हुए खुद परमात्म अक्षर       
*
मन की भी ऑंखें होती हैं आँख मूँदकर देखो तो
अदिख दिखेगा आसानी से, लेख सको तो लेखो तो
अंतरिक्ष है मन, भावों की बहा नर्मदा, मौन रहो
आवेगों को संवेगों से मुक्त करो, मत व्यर्थ तहो 
*
नृत्य-गायन वन्दना है, प्रार्थना है, अर्चना है
मत इसे तुम बेचना परमात्म की यह साधना है
मर्त्य को क्यों करो अर्पित, ईश को अर्पित रहे यह
राग है, वैराग है, अनुराग कि शुभ कामना है
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