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गुरुवार, 4 जून 2015

navgeet: sanjiv

नवगीत:
संजीव
*
थाली की 
गोदी में बैठ 
कटोरी खेले. 
चम्मच के  
नखरे अनगिन 
दोनों ने झेले.
*
बब्बा गंज, 
कढ़ाई दादी,
बेलन नाना,
झरिया नानी 
मँहगाई का रोना रोते 
नेह-प्रेम की फसलें बोते 
बिना सियासत ताल-मेल कर 
मन का संयम तनिक न खोते 
आये एक पर
मुश्किल, सब मिल
सिर पर लेते 
थाली की 
गोदी में बैठ 
कटोरी खेले. 
चम्मच के  
नखरे अनगिन 
दोनों ने झेले.
*
आटा-दाल, 
मिठाई-रोटी,
पुड़ी-कचौरी ,
ताज़ी मोटी. 
जिस मन भाये, जी भर खाये. 
बिना मिलावट, पचा न पाये. 
फास्ट फुडों की मारामारी 
कोल्ड ड्रिंक करता बटमारी.  
लस्सी-पनहा 
पान-पन्हैया 
बिसरा देते  
थाली की 
गोदी में बैठ 
कटोरी खेले. 
चम्मच के  
नखरे अनगिन 
दोनों ने झेले.
*
खस के परदे, 
कूलर निगले,
भीषण ताप,
गैस भी उगले. 
सरकारें कर बढ़ा-बढ़ाकर 
अपनी ही जनता को लूटें.  
अफसर-नेता निज सुविधा पर  
बेदर्दी से जन-धन फूंकें.
अच्छे दिन है
अच्छे-अच्छे 
हारे-रोते. 
थाली की 
गोदी में बैठ 
कटोरी खेले. 
चम्मच के  
नखरे अनगिन 
दोनों ने झेले.
*

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