कृति चर्चा:
समवेत स्वर: कविताओं का गजर
चर्चाकार: आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
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[कृति विवरण: समवेत स्वर, सामूहिक कविता संग्रह, संपादक विजय नेमा 'अनुज', आकार डिमाई, आवरण बहुरंगी पेपरबैक, पृष्ठ ७० + २६ , २०० रु., वर्तिका प्रकाशन जबलपुर]
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साहित्य सर्व हित की कामना से रचा जाता है. समय के साथ सामाजिक परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में साहित्य का कथ्य, शिल्प, भाषा और भंगिमा में सतत परिवर्तन स्वाभाविक है. जबलपुर की साहित्यिक संस्था वर्तिका ने १०२७ से १९८५ के मध्य जन्में ७० कवियों की एक-एक कविता, चित्र, जन्म तिथि तथा पते का संग्रह समवेत शीर्षक से सक्रिय साहित्य सेवी विजय नेमा 'अनुज' के संपादन में प्रकाशित किया है. इसमें नगर के कई रचनाकार सम्मिलित हैं कई रह गये हैं. यदि शेष को भी जोड़ा जा सकता तो यह नगर के समकालिक साहित्यकारों का प्रतिनिधि संकलन हो सकता था.
भूमिका में डॉ. हरिशंकर दुबे के आकलन के अनुसार "काव्य के छंद, वस्तु विन्यास और प्रभांविती की दृष्टि से नहीं भाव और बोध की दृष्टि से यह पाठकीय प्यार की अभिलाषा वाले स्वर हैं. नयी पीढ़ी में एक व्याकुल अधीरता है, शीघ्र से शीघ्र पा लेने की. ३० वर्ष से ८७ वर्ष के आयु वर्ग और एक से ६ दशकों तक काव्य कर्म में जुटी कलमों में नयी पीढ़ी का किसे माना जाए? अधिकांश सहभागियों की स्वतंत्र कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं अथवा कई पत्र-पत्रिकाओं में कई बार रचनायें छप चुकी हैं तथापि रचनाओं को काव्य के छंद, वस्तु विन्यास और प्रभांविती की दृष्टि से उपयुक्त न पाया जाए तो संकलन के उद्देश्य पर ही प्रश्न चिन्ह लग जाता है. २० पृष्ठों में भूमिका, सन्देश आदि का विस्तार होने पर भी सम्मिलित रचनाओं और रचनाकारों के चयन के आधार, उनकी गुणवत्ता, उनमें अन्तर्निहित शिल्प, कथ्य, शैली, रस, छंद आदि की चर्चा तो दूर उल्लेख तक न होना चकित करता है.
वर्तिका द्वारा पूर्व में भी सामूहिक काव्य संकलन प्रकाशित किये जा चुके हैं. वर्ष २००८ में प्रकाशित अभिव्यक्ति (२२० पृष्ठ, २०० रु.) में ग़ज़ल खंड में ४० तथा गीत खंड में २५ कुल ६५ कवियों को २-२ पृष्ठों में सुरुचिपूर्वक प्रकाशित किया जा चुका है. अभिव्यक्ति का वैशिष्ट्य नगर के बाहर बसे कुछ श्रेष्ठ कवि-सदस्यों को जोड़ना था. इस संग्रह की गुणवत्ता और रचनाओं की पर्याप्त चर्चा भी हुई थी.
वर्तमान संग्रह की सभी रचनाओं को पढ़ने पर प्रतीत होता है कि ये रचनाकारों की प्रतिनिधि रचनाएँ नहीं हैं. विषय तथा विधा का बंधन न होने से संग्रह में संपादन की दृष्टि से स्वतंत्रता ली गयी है. असम्मिलित रचनाकारों की कुछ श्रेष्ठ पंक्तियाँ दी जा सकतीं तो संग्रह की गुणवत्ता में वृद्धि होती. सूची में प्रो. चित्रभूषण श्रीवास्तव 'विदग्ध', श्री किशोरीलाल नेमा, प्रो. जवाहरलाल चौरसिया 'तरुण', डॉ. गार्गीशरण मिश्र 'मराल', डॉ. कृष्ण कान्त चतुर्वेदी, डॉ. राजकुमार 'सुमित्र', आचार्य भगवत दुबे, प्रो. राजेंद्र तिवारी, श्रीमती लक्ष्मी शर्मा, श्री इंद्रबहादुर श्रीवास्तव 'इंद्र', मेराज जबलपुरी, सुरेश तन्मय, सुशिल श्रीवास्तव, मनोहर चौबे 'आकाश', विजय तिवारी 'किसलय', गजेन्द्र कर्ण, विवेकरंजन श्रीवास्तव, अशोक श्रीवास्तव 'सिफर', गीता 'गीत', डॉ. पूनम शर्म तथा सोहन परोहा 'सलिल' जैसे हस्ताक्षर होना संग्रह के प्रति आश्वस्त करता है.
ऐसे सद्प्रयास बार-बार होने चाहिए तथा कविता के अतिरिक्त अन्य विधाओं पर भी संग्रह होने चाहिए.
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