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गुरुवार, 18 जून 2015

lekh: jal sankat aur naharen -sanjiv

विशेष आलेख 
जल संकट और नहरें 
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल''
*
अनिल, अनल, भू, नभ, सलिल, पंच तत्वमय देह 
रखें समन्वय-संतुलन, आत्म तत्व का गेह 

जल जीवन  का पर्याय है. जीवन हेतु अपरिहार्य शेष ४  तत्व मिलने पर भी  जीवन क्रम तभी आरम्भ होता है जब जल का संयोग होता है. शेष ४ तत्वों की तुलना में पृथ्वी पर जल की सीमित मात्रा उसे और अधिक महत्वपूर्ण बना देती है. सकल जल में से मानव जीवन हेतु आवश्यक पेय जल अथवा मीठे पानी की मात्रा न केवल कम है अपितु निरंतर कम होती जा रही है जबकि मानव की जनसँख्या निरंतर बढ़ती जा रही है. फलत:, अगला विश्व युद्ध जल भंडारों को लेकर होने की संभावना व्यक्त की जाने लगी है.पानी की घटती मात्रा और बढ़ती आवश्यकता से बढ़ रही विषमता के लिए लोक और तंत्र दोनों बराबरी से जिम्मेदार हैं. लोक इसलिए कि वह जल का अपव्यय तो करता है पर जल-संरक्षण का कोई उपाय नहीं करता, तंत्र इसलिए की वह साधन संपन्न होने पर भी जन सामान्य को न तो जल-संरक्षण के प्रति जागरूक करता हैं न ही जल-संरक्षण कार्यक्रम और योजनाओं को प्राथमिकता देता है. 

नहर: क्या और क्यों?
जल की उपलब्धता के २ प्रकार प्राकृतिक तथा कृत्रिम हैं. प्राकृतिक संसाधन नदी, झरने, झील, तालाब और समुद्र हैं, कृत्रिम साधन तालाब, कुएँ, बावड़ी, तथा जल-शोधन संयंत्र हैं. भारत जैसे विशाल तथा बहुसांस्कृतिक देश में ऋतु परिवर्तन के अनुसार पानी की आवश्यकता विविध आय वर्ग के लोगों में भिन्न-भिन्न होती है. जल का सर्वाधिक दोहन तथा बर्बादी संपन्न वर्ग करता है जबकि जल-संरक्षण में इसकी भूमिका शून्य है. जल संरक्षण के कृतिम या मानव निर्मित साधनों में नहर सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटक है. नहर का आकार-प्रकार प्रकृति, पर्यावरण, आवश्यकता और संसाधन का तालमेल कर निर्धारित किया जाता है. नदी की तुलना में लघ्वाकारी होने पर भी नहर जन-जीवन को अधिक लाभ और काम हानि पहुँचाती है.  

नहर मानव निर्मित कृत्रिम जल-प्रवाह पथ है जिसका आकार, दिशा, ढाल, बहाव तथा पानी की मात्रा तथा समय मनुष्य अपनी आवश्यकता के अनुसार निर्धारित-नियंत्रित कर सकता है. 

नदी का बहाव-पथ प्राकृतिक भौगोलिक परिस्थिति अनुसार ऊपर से नीचे की ओर होता है. नदी में आनेवाले जल की मात्रा जल संग्रहण क्षेत्र के आकार-प्रकार तथा वर्षा की तीव्रता एवं अवधि पर निर्भर होती है. इसीलिए वर्ष कम-अधिक होने पर नदी में बाढ़ कम या अधिक आती है. वर्षा न्यून हो तो नदी घाटी में जलाभाव से फसलें तथा जन-जीवन प्रभावित होता है. वर्षा अधिक हो तो जलप्लावन से जन-जीवन संकट में पड़ जाता है. नदी के प्रवाह-पथ परिवर्तन से सभ्यताओं के मिटने के अनेक उदहारण मानव को ज्ञात हैं तो सभ्यता का विकास नदी तटों पर होना भी सनातन सत्य है. 

नहर नदियों के समान उपयोगी होती है पर नदियों के समान विनाशकारी नहीं होती। इसलिए नहर का अधिकतम निर्माण कर पीने, सिंचाई तथा औद्योगिक उपयोग हेतु जल की अधिक उपलब्धता कर सकना संभव है. नहर से भूजल स्तर में वृद्धि, मरुस्थल के विस्तार पर रोक, अनुपजाऊ भूमि पर कृषि, वन संवर्धन, ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार अवसर तथा वाणिज्य-उद्योग का विस्तार करना भी संभव है. नहरें देश से लुप्त होती वनस्पतियों और पशु-पक्षियों के साथ-साथ जनजातीय संस्कृति के संवर्धन में भी उपयोगी हो सकती है. नहर लोकजीवन, लोक संस्कृति की रक्षा कर ग्रामीण जीवन को सरल, सहज, समृद्ध कर नगरों में बढ़ते जनसँख्या दबाब को घटा सकती है. 

नहर वायुपथ, रेलगाड़ी और सड़क यातायात की तुलना में बहुत कम खर्चीला जल यातायात साधन उपलब्ध करा सकती है. नहर के किनारों पर नई तथा व्यवस्थित बस्तियां बनाई जा सकती हैं. नहरों के किनारों पर पौधरोपण कर वन तथा बागीचे लगाये जाएँ तो वर्षा  की नियमितता तथा वृद्धि संभव है. इस वनों तथा उद्यानों की उपज समीपस्थ गाँवों में उद्योग-व्यापार को बढ़ाकर आजीविका के असंख्य साधन उपलब्ध करा सकती है. नहरों के किनारों पर पवन चक्कियों तथा सौर ऊर्जा उत्पादन की व्यवस्था संभव है जिससे विद्युत-उत्पादन किया जा सकता है. 

नहर बनाकर प्राकृतिक नदियों को जोड़ा जा सके तो बाढ़-नियंत्रण, आवश्यकतानुसार जल वितरण तथा अल्पव्ययी व न्यूनतम जोखिमवाला आवागमन संभव है. नहर में मत्स्य पालन कर बड़े पैमाने पर खाद्य प्राप्त किया जा सकता है. नहर से कमल व् सिंघाड़े की तरह जलीय फसलें लेकर उनसे विविध रोजगार साधन बढ़ाये जा सकते हैं. नहरों में तैरते हुए होटल, उद्यान आदि का विकास हो तो पर्यटन का विकास हो सकता है. नहर के किनारों पर संरक्षित वन लगाकर  उन्हें दीवाल से घेरकर अभयारण्य बनाये जा सकते हैं.  

नहर निर्माण : उद्देश्य और उपादेयता  

नहर निर्माण की योजना बनाने के पूर्व आवश्यकता और उपदेयता का  आकलन जरूरी है. मरुथली क्षेत्र में नहर बनाने का उद्देश्य किसी नदी के जल से पेयजल तथा कृषि कार्य हेतु जल उपलब्ध करना हो सकता है. राजस्थान तथा गुजरात में इस तरह का कुछ कार्य हुआ है. बारहमासी नदियों से जल लेकर सूखती हुई नदियों में डाला जाए तो उन्हें नव जीवन मिलने के साथ-साथ समीपस्थ नगरों को पेय जल मिलता है, उजड़ रहे तीर्थ फिर से बसते हैं. नर्मदा नदी से साबरमती में जल छोड़कर गुजरात तथा क्षिप्रा नदी में जल छोड़कर मध्य प्रदेश में यह कार्य किया गया है. 

नहर निर्माण का प्रमुख उद्देश्य सिंचाई रहा है. देश के विविध प्रदेशों में वृहद, माध्यम तथा लघु सिंचाई योजनाओं के माध्यम से लाखों हेक्टेयर भूमि की सिंचाई कर खड़ी  वृद्धि की गयी  है. खेद है कि  इन नहरों का निर्माण करनेवाला विभाग राजस्व तो संकलित करता है पर नहरों की मरम्मत, देखरेख तथा विस्तार या अन्य गतिविधियों के लिये आर्थिक रूप से विपन्न रहा आता है. जल संसाधन विभाग में नहरों में जम रही तलछट को एकत्र कर खाद के रूप में विक्रय करने, नहरों में साल भर जल रखकर जलीय फसलों का उत्पादन करने, नहरों का जल यातायात हेतु उपयोग करने, नहरी जल को हर गाँव के पास जल शोधन संयंत्र में शुद्ध कर पेयजल उपलब्ध कराने, नहर के किनारों  पर मृदा का रासायनिक परीक्षण कर अधितम् लाभ देनेवाली फसल उगने और गाँवों के दूषित जल-मल को  शोधन संयंत्रों में शुद्ध कर पुन: नहर में मिलाने की कोई परिकल्पना या योजना ही नहीं है. 

नहरों का बहुउद्देश्यीय उपयोग करने के लिये आकार, ढाल, जल की मात्रा, जलक्षरणरोधी होने तथा उनके किनारों के अधिकतम उपयोग करने की व्यावहारिक योजनाएं बनाना होंगी. अभियंताओं और कृषिवैज्ञानिकों को नवीन अवधराओं के विकास तथा  नये प्रयोगों  स्वतंत्रता तथा क्रिवान्वयन हेतु वित्त व अधिकार देना होंगे. विभागों द्वारा संकलित राजस्व का कुछ अंश विभाग को देना होगा ताकि नहरों का संधारण और विकास नियमित रूप से हो सके. 

 स्थल चयन: 

नहर कहाँ बनाई जाए? यह प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण है. अब तक जल परियोजनाओं के अंतर्गत बांधों से खेतों की सिंचाई करने के लिये नहरें बनायी जाती रही हैं. इन नहरों को बारहमासी जलप्रवाही बनाने के लिए उन्हें जलरोधी भी बनाना होग. इस हेतु आर्थिक साधनों की आवश्यकता होगी. पूर्वनिर्मित तथा प्रस्तावित नहरों के प्रवाह-पथ क्षेत्र का सर्वेक्षण कर भूस्तर के अनुसार खुदाई-भराई की  जानेवाली मृदा की मात्रा, समीपस्थ या प्रस्तावित बस्तियों की जनसँख्या के आधार पर वर्तमान तथा २० वर्ष बाद वांछित पेय जल तथा निष्क्रमित जल-मल की मात्रानुसार शोधन संयंत्रों की आवश्यकता, हो रही तथा संभावित कृषि हेतु वांछित जल की मात्रा व समय, नहरों में तथा उपलब्ध स्थल अनुसार मत्स्य पालन कुण्ड निर्माण की संभावना, संख्या तथा व्यय, नहर के किनारों पर लगाई जा सकनेवाली वनोपज तथा वनस्पतियाँ (बाँस आँवला, बेल, सीताफल, केला, संतरा, सागौन, साल ) का मृदा के आधार पर चयन, इन वनोपजों के विक्रय हेतु बाजार की उपलब्धता,  वनोपजों का उपयोग कर सकने वाले लघु-कुटीर उद्योगों का विकास व उत्पाद के विपणन की व्यवस्था, नहरों के किनारों पर विकसित वनों में अभयारण्य बनाकर प्राणियों को खला छोड़ने एवं पर्यटकों को सुरक्षित पिंजरों में घूमने की व्यवस्था,  मृदा के प्रकार, संभावित फसलों हेतु वांछित जल की मात्रा व समय, समीपस्थ तीर्थों तथा प्राकृतिक स्थलों का विकास कर पर्यटन को प्रोत्साहन, नहर के तटों पर वायु प्रवाह के अनुसार पवनचक्कियों  ऊर्जा केन्द्रों की स्थापना, विद्युत उत्पादन-विपणन, जनसंख्यानुसार नए ग्रामों की स्थापना-विकास नहर में जल ग्रहण तह नहर से जल निकास की मात्रा का आकलन तथा उपाय, अधिकतम-न्यूनतम वर्षाकाल में नहर में आनेवाली जल की मात्रा का आकलन व्यवस्था जल-परिवहन तथा यातायात हेति वांछित नावों, क्रूजरों की आवश्यकता और उन्हें किनारों पर लगाने के लिये घाट निर्माण आदि महत्वपूर्ण बिंदु हैं जिनका पूर्वानुमान कर लक्ष्य निर्धारित किये जाने चाहिए. भौगोलिक स्थिति के अनुसार आवश्यकता होने पर सुरंग बनाने, बाँध बनाकर जलस्तर उठाने का भी ध्यान रखना होगा.  

बाधा और निदान:
बाँध आरम्भ होते समय अभियंताओं की बड़ी संख्या में भर्ती तथा परियोजना पूरी होने पर उन्हें अनावश्यक भार मानकर आर्थिक आवंटन न देने की प्रशासनिक नीति ने अभियंताओं के अमनोबल को तोडा है तथा उनकी कार्यक्षमता व् गुणवत्ता पर  पड़ा है. दूसरी और राजस्व वसूली का पूरा विभाग होते हुए भी अभियंताओं को तकनीकी काम से हटाकर राजस्व वसूली पर लगाना और वसूले राजस्व में से कोई राशि नहर या बांध के संरक्षण हेतु न देने की नीति ने बाँधों और नहरों के रख-रखाव पर विपरीत छोड़ा है. इस समस्या को सुलझाने के लिये एक नीति बनायी जा सकती है. योजना पूर्ण होने पर प्राप्त राजस्व के ४ हिस्से  कर एक हिस्सा भावी निर्माणों के लिये राशि जुटाने के लिये केंद्र सरकार को, एक हिस्सा योजनाओं पर लिया ऋण छकाने के लिये राज्य सरकार को, एक हिस्सा योजना के संधारण हेतु सम्बंधित विभाग / प्राधिकरण को, एक हिस्सा समीपस्थ क्षेत्र या गाँव का विकास करने हेतु स्थानीय निकाय को दिया जा सकता है. योजना के आरम्भ से लेकर पूर्ण होने और संधारण तक का कार्य एक ही निकाय का हो तो पूर्ण जानकारी, नियंत्रण तथा संधारण सहज होग. इससे जिम्मेदारी की भावना पनपेगी तथा उत्तरदायित्व का निर्धारण भी किया जा सकेगा. विविध विभागों को एक साथ जोड़ने पर अधिकारों, कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को लेकर अनावश्यक टकराव होता है. 

लाभ:   

यदि नहर निर्माण को प्राथमिकता के साथ पूरे देश में प्रारम्भ किया जाए तो अनेक लाभ होंगे. 
१. विविध विभागों में नियुक्त तथा सिंचाई योजनाएं पूर्ण हो चुकने पर निरुपयोगी कार्य कर वेतन पा रहे अभियन्ताओं की क्षमता तथा योग्यता का उपयोग हो सकेगा.
२. असिंचित-बंजर भूमि पर कृषि हो सकेगी, उत्पादन बढ़ेगा. 
३. व्यर्थ बहता वर्ष जल संचित-वितरित कर जल-प्लावन (बाढ़) को नियंत्रित किया जा सकेगा. 
४. गाँवों का द्रुत विकास होगा. शुद्ध पेय जल मिलाने तथा मल-जल शोधन व्यवस्था होने से स्वास्थ्य सुधरेगा. 
५. पवन तथा सौर ऊर्जा का उपयोग कर जीवनस्तर को उन्नत किया जा सकेगा. 
६. सस्ती और सर्वकालिक जल यातायात से को  व्यकिगत वाहन  ईंधन पर व्यय से राहत मिलेगी. 
७. देश के ऑइल पूल का घाटा कम होगा.
८. नये रोजगार अवसरों  होगा। इसका लाभ गाँव के सामान्य युवाओं को होगा.
९. कृषि, वनोपजों, वनस्पतियों, मत्स्य आदि का उत्पादन बढ़ेगा. 
१०. नये पर्यटन स्थलों का विकास होगा. 
११.कुटीर तथा लघु उद्योगों को नयी दिशाएँ मिलेंगी.
१२. पशु पालन सुविधाजनक होगा।
१३. सहकारिता आंदोलन सशक्त होगा.
१४. अभ्यारण्यों  तथा वानस्पतिक उद्यानों के निर्माण से लुप्त होती प्रजातियों का संरक्षण संभव होगा.
१५. समरसता तथा सद्भाव की वृद्धि होगी. 
१६. केंद्र-राज्य सरकारों तथा स्थानीय निकायों की आय बढ़ेगी तथा व्यय घटेगा. 
१७. गाँवों में सुविधाएँ बढ़ने और यातायात सस्ता होने से शहरों पर जनसँख्या वृद्धि का दबाब घटेगा.   
१८. पर्यावरण प्रदूषण कम होगा.
१९. भूजल स्तर बढ़ेगा. 
२०. निरंतर बढ़ते तापमान पर अंकुश लगेगा.
२१. वनवासी अपने सांस्कृतिक वैभव और परम्पराओं के साथ सुदूर अंचलों में रहते हुए जीवनस्तर उठा सकेंगे. 

इन्फ्लुएंस ऑफ़ सिल्वीकल्चर प्रैक्टिसेस ऑन द हाइड्रोलॉजी ऑफ़ पाइन फ्लैटवुडस इन फ्लोरिडा के तत्वावधान में एच. रिकर्क द्वारा  संपन्न शोध के अनुसार ''वनस्पतियों का विदोहन किये जाने से वृक्षों के छत्र में  अन्तारोधन तथा भूमि में पानी का अंत:रिसाव घटता है. जलधारा में सीधे बहकर आनेवाले पानी से आकस्मिक बाढ में तेजी आती है.''

नहरों का विकास इस दुष्प्रभाव को रोककर बाढ़ की तीव्रता को कम कर सकता है. वर्तमान भूकम्पीय त्रसदियों के  जनसंख्या सघनता  कम म होना मानव जीवन की हानि को कम करेगा. बड़े बांधों और परमाणु विद्युत उत्पदान की जटिल, मँहगी तथा विवादास्पद  परियोजनाओं की  तुलना में सघन नहर प्रणाली विकसित करने में ही देश का कल्याण है.  क्या सरकारें, जन-प्रतिनिधि, पत्रकार और आम नागरिक इस ओर ध्यान देकर यह परिवर्तन ला सकेंगे? भावी सम्पन्नता का यह द्वार खोलने में जितनी देर होगी नुक्सान उतना ही अधिक होगा.    
​- समन्वयम् २०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१ 
०७६१ २४१११३१ / ९४२५१ ८३२४४ 

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