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सोमवार, 1 जून 2015

navgeet: sanjiv

नवगीत :
संजीव
*
तुमने मुझको रौंदा
मैं रोऊँ,
न रोऊँ?
न्यायालय से पूछूँगा
*
शेर पिट रहा है सियार से
नगद न जीता है उधार से
कचरा बिकता है प्रचार से
जूता पोलिश का
ब्रश ले मुँह
पर रगड़ा
मूँछ ऐंठकर ऊँछूंगा
तुमने मुझको रौंदा
मैं रोऊँ,
न रोऊँ?
न्यायालय से पूछूँगा
*
चरखे से आज़ादी पाई
छत्तीस इंची छाती भाई
जुमलों से ही की कुडमाई  
अच्छे दिन आये
मत रोओ  
चुप सोओ  
उलझा-सुलझा बूझूँगा
तुमने मुझको रौंदा
मैं रोऊँ,
न रोऊँ?
न्यायालय से पूछूँगा
*
देश माँगता खेत भुला दो
जिस-तिस का झंडा फहरा दो
सैनिक मारो फिर लौटा दो  
दुनिया घूमूँगा  
देश भक्त मैं  
हूँ सशक्त मैं  
नित ढिंढोरा पीटूँगा
तुमने मुझको रौंदा
मैं रोऊँ,
न रोऊँ?
न्यायालय से पूछूँगा
*

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