खबरदार दोहे
संजीव
.
केर-बेर का सँग ही, करता बंटाढार
हाथ हाथ में ले सभी, डूबेंगे मँझधार
(समाजवादी एक हुए )
.
खुल ही जाती है सदा, 'सलिल' ढोल की पोल
मत चरित्र या बात में, अपनी रखना झोल
(नेताजी संबंधी नस्तियाँ खुलेंगी)
.
न तो नाम मुमताज़ था, नहीं कब्र है ताज
तेज महालय जब पूजे तभी मिटेगी लाज
(ताज शिव मंदिर है)
.
जयस्तंभ की मंजिलें, सप्तलोक-पर्याय
कलें क़ुतुब मीनार मत, समझ सत्य-अध्याय
(क़ुतुब मीनार जयस्तंभ है)
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संजीव
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केर-बेर का सँग ही, करता बंटाढार
हाथ हाथ में ले सभी, डूबेंगे मँझधार
(समाजवादी एक हुए )
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खुल ही जाती है सदा, 'सलिल' ढोल की पोल
मत चरित्र या बात में, अपनी रखना झोल
(नेताजी संबंधी नस्तियाँ खुलेंगी)
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न तो नाम मुमताज़ था, नहीं कब्र है ताज
तेज महालय जब पूजे तभी मिटेगी लाज
(ताज शिव मंदिर है)
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जयस्तंभ की मंजिलें, सप्तलोक-पर्याय
कलें क़ुतुब मीनार मत, समझ सत्य-अध्याय
(क़ुतुब मीनार जयस्तंभ है)
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