बाँस
संजीव
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दोहा:
महल-भवन पल में गिरा, हँसता है भूचाल
बाँस गिरा पाता नहीं, करती लचक कमाल
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तीसमारखाँ परेशां, गर चुभ जाए फाँस
हर भव-बाधा पार हो, बने सहारा बाँस
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संजीव
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दोहा:
महल-भवन पल में गिरा, हँसता है भूचाल
बाँस गिरा पाता नहीं, करती लचक कमाल
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तीसमारखाँ परेशां, गर चुभ जाए फाँस
हर भव-बाधा पार हो, बने सहारा बाँस
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