मुक्तिका:
संजीव
.
जो न अपना, न ही पराया है
आप कहते हैं अपना साया है
जो सजा दें, वही क़ुबूल हमें
हमने दिल आपका चुराया है
दिल का लेना हसीं गुनाह तो है
दिल मगर आपने लुटाया है
ज़ुल्म ये है कि आँख फिरते ही
आपने यूँ हमें भुलाया है
हौसला है या जवांमर्दी है
दिल में दिलवर के घर बनाया है
***
संजीव
.
जो न अपना, न ही पराया है
आप कहते हैं अपना साया है
जो सजा दें, वही क़ुबूल हमें
हमने दिल आपका चुराया है
दिल का लेना हसीं गुनाह तो है
दिल मगर आपने लुटाया है
ज़ुल्म ये है कि आँख फिरते ही
आपने यूँ हमें भुलाया है
हौसला है या जवांमर्दी है
दिल में दिलवर के घर बनाया है
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