छंद सलिला:
ताटंक छंद
डॉ. सतीश सक्सेना'शून्य'
मुझको हिन्दी प्यारी है
(छंद विधान-ताटंक:मात्रा ३०=१६,१४ पर विराम)
देवों की भाषा यह अनुपम जन मन गण की उत्थानी
सादा सरल सरस सुन्दर शुचि सुद्रढ़ सांस्कृतिक संधानी
सबका प्यार इसीने पाया सबकी ये जननी प्यारी
शब्द सरोबर अतुल राशि जल नवल उर्मियाँ अति प्यारी
ज्ञान और विज्ञान विपुल सत्चिन्तन की धारा भारी
विश्व रहेगा ऋणी सदा मानवता है जब तक जारी
अब भी अवसर है तुम चेतो वरना हार तुम्हारी है
करो प्रतिज्ञा आज सभी मिल हमको हिन्दी प्यारी है
मुझ को हिन्दी प्यारी है
सब को हिन्दी प्यारी है
अंग्रेज़ी वलिहारी है
(छंद विधान- वीर छंद मात्रा ३१=१६,१५ पर विराम )
पूज्य पिताजी' डेड' कहाते सड़ी लाश 'मम्मी' प्यारी
कहलाते स्वर्गीय 'लेट' जो शब्दों कीयह गति न्यारी
'ख़' को तो खागई विचारी 'घ','ड.' का तो पता नहीं
'च' 'छ' 'ज' 'झ' मिले कहीं ना 'त' 'थ' 'द' 'ध' नाम नहीं
'भ' का भाग भले ही फूटे 'श' 'ष' करी किनारी है
नहीं रीढ़ की अस्थि मगर व्याकरण कबड्डी जारी है
लिखें और कुछ पढ़ें और कुछ ये कैसी वीमारी है
तू तो 'तू' है तुम भी 'तुम' हो 'आप' नहीं लाचारी है
अंग्रेज़ी वलिहारी है ...
3 टिप्पणियां:
Rajesh Prabhakar
बहुत सुन्दर ...
हिंदी भाषा व अंग्रेजी भाषा की गुणवता का मनमोहक विश्लेषण किया है ...
नमन करता हूँ आपको
Ambarish Srivastava
आदरणीय सतीश जी,
छंद के माध्यम से दोनों भाषाओँ की शानदार तुलना की है आपने .. अत्यंत विनम्रता पूर्वक एक निवेदन है कि ताटंक के अंत में मगण अर्थात मातारा या गुरुगुरुगुरु की अनिवार्यता होती है तथा वीर छंद के अंत में लघ गुरु ही रहता है ...https://www.facebook.com/.../266812523449919
https://www.facebook.com/notes/भारतीय-सनातनी-छंद/वीर-छंद-या-आल्हा/266812523449919
Satish Saxena
अम्बरीश जी ...
ताटंक मैं अंत मैं म गण का विधान है किन्तु अनेक कवियों ने १ गुरु की जगह २ लघु का प्रयोग किया है.इस से प्रवाह मैं तो अंतर नहीं आता पर उचित तो है ही नहीं .यही भूल मैंने भी की है. वीर छंद मैं अंत मैं गुरु लघु (लघु गुरु नहीं) रहता है. मेरी जानकारी के अनुसार (लगभग १२०० छंदों मैं )३१ मात्रा के दो अन्य छंद मिलते हैं धत्ता और धत्ता नन्द.धता मैं १८,१३ पर यति और अंत मैं न गण तथा धत्तानानद मैं ११,७,१३ पर यति और अंत मैं न गण का विधान मिलता है ,जो कि मेरे इस छंद से कोई साम्य नहीं रखता. ऐसी दशा मैं इस को क्या माना जाय.आप अपने साहित्य मैं देखने का कष्ट करें ....
...वीर छंद जिसे मात्रिक सवैया भी कहा जाता है, इसकी परिभाषा ...वीर छंद सोलह पनद्रह हों मात्रा गुरु लघु अंत बनाय. तथा इसमैं सोलहवीं मात्रा गुरु और पन्दहवी मात्रा लघु भी होना चाहिए. सोलहवी मात्रा का पालन तो किया गया है किन्तु अंत मैं लघु न होने से छंद मैं बिगड़ गया है ...
'शून्य'
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