दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु
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बुधवार, 6 नवंबर 2013
mukatak: sanjiv
मुक्तक सलिला:
संजीव
*
श्री सम्पत को पूजते, सभी झुककर माथ
रिद्धि-सिद्धि पति-हरिप्रिया, सदा सदय हों नाथ
चित्र गुप्त परमात्म का आत्म-आत्म में देख
प्रमुदित 'सलिल' मिला सके ह्रदय नयन मन हाथ
*
1 टिप्पणी:
- manjumahimab8@gmail.com
ने कहा…
- manjumahimab8@gmail.com
सुंदर सन्देश देती आपकी शुभकामनाएँ अनुकरणीय हैं.. सादर मंजु
1 टिप्पणी:
- manjumahimab8@gmail.com
सुंदर सन्देश देती आपकी शुभकामनाएँ अनुकरणीय हैं..
सादर
मंजु
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