मुक्तिका:
संजीव
*
मन मचला करता यह कर ले
संजीव
*
मन मचला करता यह कर ले
मन चाहा करता वह कर ले
तन खो जाए इसके पहले
नव यादों की गठरी भर ले
नव यादों की गठरी भर ले
नव अनुभव, साथी नये-नये
नव राहों पर कुछ पग धर ले
जो फूल-शूल, आनंद-खलिश
जब सहज मिले चुप रह वर ले
मिल सके न तन क्यों इसका गम
मन मिलें स्नेह दीपक बर ले
तू नहीं अगर तो और सही
जो कर थामे उसका कर ले
हैं महाकाल के अनुयायी
क्यों फ़िक्र काल की निज सर लें
बहते जाएँ निर्मल होकर
सागर-गागर निज घर कर लें
फिर वाष्प मेघ हो बरस पड़ें
फिर सलिल धार होकर तर लें ****
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