बड़ा
संजीव 'सलिल'
*
बरसों की नौकरी के बाद पदोन्नति मिली.
अधिकारी की कुर्सी पर बैठक मैं खुद को सहकर्मियों से ऊँचा मानकर डांट-डपटकर ठीक से काम करने की नसीहत दे घर आया. देखा नन्ही बिटिया कुर्सी पर खड़ी होकर ताली बजाकर कह रही है 'देखो, मैं सबसे अधिक बड़ी हो गयी.'
जमीन पर बैठे सभी बड़े उसे देख हँस रहे हैं. मुझे कार्यालय में सहकर्मियों के चेहरों की मुस्कराहट याद आई और तना हुआ सिर झुक गया.
*****
संजीव 'सलिल'
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बरसों की नौकरी के बाद पदोन्नति मिली.
अधिकारी की कुर्सी पर बैठक मैं खुद को सहकर्मियों से ऊँचा मानकर डांट-डपटकर ठीक से काम करने की नसीहत दे घर आया. देखा नन्ही बिटिया कुर्सी पर खड़ी होकर ताली बजाकर कह रही है 'देखो, मैं सबसे अधिक बड़ी हो गयी.'
जमीन पर बैठे सभी बड़े उसे देख हँस रहे हैं. मुझे कार्यालय में सहकर्मियों के चेहरों की मुस्कराहट याद आई और तना हुआ सिर झुक गया.
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5 टिप्पणियां:
Dr Mohan lal
बहुत अच्छी लघुकथा, इसी लिए कहते हैं, ये पद तो कच्चे रंग होते हैं इनका घमंड क्यों?
Laxman Prasad Ladiwala
घमण्ड आ जाय तो सिर नीचा भी होता है, और ऐसा अहसास हो जाय तो "देर आये दुरस्त आये"
यह लघु कहना गागर में सागर की तरह सुन्दर लगी, हार्दिक बधाई आदरणीय संजीव सलिल जी
Ashok Kumar Raktale
सुन्दर शिक्षाप्रद लघुकथा. बधाई
बृजेश कुमार सिंह (बृजेश नीरज)
बहुत सुन्दर!
बृजेश जी, मोहन जी, लक्ष्मण जी, अशोक जी
आपकी गुण ग्राहकता को नमन.
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