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मुक्तिका:
शुभ किया आगाज़
संजीव 'सलिल'
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शुभ किया आगाज़ शुभ अंजाम है.
काम उत्तम वही जो निष्काम है..
आँक अपना मोल जग कुछ भी कहे
सत्य-शिव-सुन्दर सदा बेदाम है..
काम में डूबा न खुद को भूलकर.
जो बशर उसका जतन बेकाम है..
रूह सच की जिबह कर तन कह रहा
अब यहाँ आराम ही आराम है..
तोड़ गुल गुलशन को वीरां का रहा.
जो उसी का नाम क्यों गुलफाम है?
नहीं दाना मयस्सर नेता कहे
कर लिया आयात अब बादाम है..
चाहता है हर बशर सीता मिले.
बना खुद रावण, न बनता राम है..
भूख की सिसकी न कोई सुन रहा
प्यार की हिचकी 'सलिल' नाकाम है..
'सलिल' ऐसी भोर देखी ही नहीं.
जिसकी किस्मत नहीं बनना शाम है..
मस्त मैं खुद में कहे कुछ भी 'सलिल'
ऐ खुदाया! तू ही मेरा नाम है..
****
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013
मुक्तिका: शुभ किया आगाज़ संजीव 'सलिल'
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आचार्य संजीव वर्मा सलिल
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3 टिप्पणियां:
Arun Srivastava
वैसे आपकी लिखी किसी रचना के लिए तारीफ के शब्द कम पड़ जाएँ लेकिन फिर भी -
शुभ किया आगाज़ शुभ अंजाम है.
काम उत्तम वही जो निष्काम है............... लगता है जैसे गीता का छंद अनुवाद पढ़ रहा हूँ ! वाह !
आँक अपना मोल जग कुछ भी कहे
सत्य-शिव-सुन्दर सदा बेदाम है............ वाह ! अना का बेहतर शे'र ! खूब !
रूह सच की जिबह कर तन कह रहा
अब यहाँ आराम ही आराम है.. .......... वाह ! गिरह लगाई आपने वो लगा तमाचे की तरह ! खूब !
तोड़ गुल गुलशन को वीरां का रहा.
जो उसी का नाम क्यों गुलफाम है? ......... //अब रावण का नामकरण रघुनन्दन होता है// वाह !
भूख की सिसकी न कोई सुन रहा
प्यार की हिचकी 'सलिल' नाकाम है.......... इस पर तो वाह भी नही निकल रही !
'सलिल' ऐसी भोर देखी ही नहीं.
जिसकी किस्मत नहीं बनना शाम है......... मसल को खूब ढाला है शे'र में ! वाह !
Saurabh Pandey
इस मुक्तिका के लिए सादर धन्यवाद, आदरणीय.
मुझे गिरह निराले अंदाज़ का लगा है.
चाहता है हर बशर सीता मिले.
बना खुद रावण, न बनता राम है.... वाह ! आज के आधुनिक युवाओं की खूब खबर ली आपने.
'सलिल' ऐसी भोर देखी ही नहीं.
जिसकी किस्मत नहीं बनना शाम है.. .. गहरी बात.. बहुत बहुत बधाई इस सचबयानी और फ़लसफ़े पर.. .
वैसे,
मुक्तिका भी अलहदी सी है विधा
कुछ ग़ज़ल है कुछ स्वयं का काम है .. .
इस मुक्तिका के लिए सादर धन्यवाद आदरणीय
अरुण जी!
आपकी सटीक टिप्पणियों हेतु आभार. ऐसे पाठकों से ही लिखने का उत्साह होता है.
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