अभिनव प्रयोग-
उल्लाला मुक्तक:
संजीव 'सलिल'
*
उल्लाला है लहर सा,
किसी उनींदे शहर सा.
खुद को खुद दोहरा रहा-
दोपहरी के प्रहर सा.
*
झरते पीपल पात सा,
श्वेत कुमुदनी गात सा.
उल्लाला मन मोहता-
शरतचंद्र मय रात सा..
*
दीप तले अँधियार है,
ज्यों असार संसार है.
कोशिश प्रबल प्रहार है-
दीपशिखा उजियार है..
*
मौसम करवट बदलता,
ज्यों गुमसुम दिल मचलता.
प्रेमी की आहट सुने -
चुप प्रेयसी की विकलता..
*
दिल ने करी गुहार है,
दिल ने सुनी पुकार है.
दिल पर दिलकश वार या-
दिलवर की मनुहार है..
*
शीत सिसकती जा रही,
ग्रीष्म ठिठकती आ रही.
मन ही मन में नवोढ़ा-
संक्रांति कुछ गा रही..
*
श्वास-आस रसधार है,
हर प्रयास गुंजार है.
भ्रमरों की गुन्जार पर-
तितली हुई निसार है..
*
रचा पाँव में आलता,
कर-मेंहदी पूछे पता.
नाम लिखा छलिया हुआ-
कहो कहाँ-क्यों लापता?
*
वह प्रभु तारणहार है,
उस पर जग बलिहार है.
वह थामे पतवार है.
करता भव से पार है..
*
उल्लाला मुक्तक:
संजीव 'सलिल'
*
उल्लाला है लहर सा,
किसी उनींदे शहर सा.
खुद को खुद दोहरा रहा-
दोपहरी के प्रहर सा.
*
झरते पीपल पात सा,
श्वेत कुमुदनी गात सा.
उल्लाला मन मोहता-
शरतचंद्र मय रात सा..
*
दीप तले अँधियार है,
ज्यों असार संसार है.
कोशिश प्रबल प्रहार है-
दीपशिखा उजियार है..
*
मौसम करवट बदलता,
ज्यों गुमसुम दिल मचलता.
प्रेमी की आहट सुने -
चुप प्रेयसी की विकलता..
*
दिल ने करी गुहार है,
दिल ने सुनी पुकार है.
दिल पर दिलकश वार या-
दिलवर की मनुहार है..
*
शीत सिसकती जा रही,
ग्रीष्म ठिठकती आ रही.
मन ही मन में नवोढ़ा-
संक्रांति कुछ गा रही..
*
श्वास-आस रसधार है,
हर प्रयास गुंजार है.
भ्रमरों की गुन्जार पर-
तितली हुई निसार है..
*
रचा पाँव में आलता,
कर-मेंहदी पूछे पता.
नाम लिखा छलिया हुआ-
कहो कहाँ-क्यों लापता?
*
वह प्रभु तारणहार है,
उस पर जग बलिहार है.
वह थामे पतवार है.
करता भव से पार है..
*
5 टिप्पणियां:
Laxman Prasad Ladiwala
आपके एक से एक नव प्रयोग बहुत उत्साह से पढने का मन करता है और पढ़ते ही कुछ नया और पाने को लालायित रहता है । आपकी सम्रद्ध लेखनी को सलाम आदरणीय संजीव वर्मा 'सलिल'जी -
वह प्रभु तारणहार है, उस पर जग बलिहार है.
वह थामे पतवार है. करता भव से पार है..
उसपर संजीव सलिल सवार है
उनकी पूँछ पकडे हम भी -
होंगे भाव सागर से पार है ।
आभार के वे हक़दार है ।
rajesh kumari
रचा पाँव में आलता,
कर-मेंहदी पूछे पता.
नाम लिखा छलिया हुआ-
कहो कहाँ-क्यों लापता?
*आपके सभी उल्लाला मुक्तक शानदार हैं पर यह तो विशेष है जितनी तारीफ करूँ वो भी कम होगी हार्दिक बधाई
ram shiromani pathak
आदरणीय संजीव वर्मा 'सलिल' sir a Grand salute of uuuuuuuuuuuuuuuuuu.......what a thought what a writingggggg
अरुन शर्मा "अनन्त"
आदरणीय सर प्रणाम, आपका अंदाज ही निराला है शानदार प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई स्वीकारें. पहली बार उल्लाला मुक्तक: पढ़ने को मिली है आनंद के साथ-साथ एक नई विद्या सीखने को मिली आपका आभार सर. सादर
Dr.Ajay Khare
bhai sahib badia he badhiya hi hota he
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