संजीव 'सलिल'
*
जब तक था दूर कोई मुझे जानता न था.
तुमको छुआ तो लोहे से सोना हुआ 'सलिल'.
*
वीरानगी का क्या रहा आलम न पूछिए.
दिल ले लिया तुमने तभी आबाद यह हुआ..
*
जाता है कहाँ रास्ता? कैसे बताऊँ मैं??
मुझ से कई गए न तनिक रास्ता हिला..
*
बस में नहीं दिल के, कि बस के फिर निकल सके.
परबस न जो हुए तो तुम्हीं आ निकाल दो..
*
जो दिल जला है उसके दिल से दिल मिला 'सलिल'
कुछ आग अपने दिल में लगा- जग उजार दे.. ..
***
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जब तक था दूर कोई मुझे जानता न था.
तुमको छुआ तो लोहे से सोना हुआ 'सलिल'.
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वीरानगी का क्या रहा आलम न पूछिए.
दिल ले लिया तुमने तभी आबाद यह हुआ..
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जाता है कहाँ रास्ता? कैसे बताऊँ मैं??
मुझ से कई गए न तनिक रास्ता हिला..
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बस में नहीं दिल के, कि बस के फिर निकल सके.
परबस न जो हुए तो तुम्हीं आ निकाल दो..
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जो दिल जला है उसके दिल से दिल मिला 'सलिल'
कुछ आग अपने दिल में लगा- जग उजार दे.. ..
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6 टिप्पणियां:
Arun Kumar Pandey 'Abhinav'
आदरणीय श्री आचार्यवर बहुत सुन्दर सारगर्भित रचना -
बस में नहीं दिल कि बस के फिर निकल सके.
परबस न जो हुए तो तुम्हीं आ निकाल दो..
बेहद गहरी बात क्या कहने काव्य की यही सार्थकता है !!
Saurabh Pandey
फुटकर-फुटकर द्विपदियाँ क्या-क्या न कह गयीं !
आचार्यवर, मजा आ गया. मुझे आपकी पहली द्विपदी देर तक बाँधे रही. सादर बधाइयाँ.
sanjiv verma 'salil'
सौरभ बिना 'सलिल' को, कोई पूछता नहीं.
पाई सुरभि गुलाब जल, अभिनव ये हो गया..
Saurabh Pandey
सादर, आदरणीय .. .
Laxman Prasad Ladiwala
"जो दिल जला है उसके दिल से दिल मिला 'सलिल'कुछ आग अपने दिल में लगा- जग उजार दे.. .. सुन्दर भाव, भाई श्री संजीव सलिल जी, *** …"
Dr.Ajay Khare
"bhai sahab aap to badia likhate he kintu aap jese logo ka dayit banta hai ki aap ham jese navodit logo ki rachna bhi pade v apni ray sujhav de ."
just now
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