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गुरुवार, 9 जून 2011

रचना-प्रतिरचना
ग़ज़ल
नवीन चन्द्र चतुर्वेदी
आभार: ठाले-बैठे  
*

 

खौफ़, दिल से निकालिये साहब|
सल्तनत, तब - सँभालिये साहब|१|


आज का काम आज ही करिए|
इस को कल पे न टालिये साहब|२|


वक़्त कब से बता रहा तुमको|
वक़्त को यूँ न घालिए साहब|३|


सब के दिल में जगह मिले तुमको|
इस तरह खुद को ढालिए साहब|४|


शौक़ हर कोई पालता है, य्हाँ|
कुछ 'भला', तुम भी पालिए साहब|५|


इस जहाँ में बहुत अँधेरा है|
दिल जला, दीप -बालिए साहब|६|


गर ज़माने में नाम करना है|
कोई शोशा उछालिए साहब|७|
(लाललाला लला लला लाला)
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प्रति-रचना:मुक्तिका:
साहब
संजीव 'सलिल'
*

खौफ दिल में बसाइए साहब.
लट्ठ तब ही चलाइए साहब..
*
गलतियाँ क्यों करें? टालें कल पर.
रस्म अब यह बनाइए साहब..

वक़्त का खौफ  क्यों रहे दिल में?
दोस्त कहकर लुभाइए साहब.

हर दरे-दिल पे न दस्तक दीजे.
एक दिल  में समाइए साहब..

शौक तो शगल है अमीरों का.
फ़र्ज़ अपना निभाइए साहब..

नाम बदनाम का भी होता है.
रह न गुमनाम  जाइए साहब..

सुबह लाता है अँधेरा  ही 'सलिल'.
गीत तम के भी गाइए साहब..
*

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