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शुक्रवार, 3 जून 2011

बाबा रामदेव के प्रति: --रजनी सक्सेना

बाबा रामदेव के प्रति:                                                                                                      
--रजनी सक्सेना 
peet pat lapet tan divyta ukerata...
by Rajni Saxena on 02 जून 2011 को 23:52 बजे
Rajni Saxena
प्रकाश का अनंत कोष, ज्यों लिए चले दिवस.
निशा के निशान जो,समेटता स्वभाव वश,
आपका अगाध तेज,उजास सिन्धु सा यही.
मर्म है बिखेरता,निशीथ सरित बन बही.
अंधकार निर्विकार,ज्योति कलश बना छलक.
अंशुमान रूप दिव्य,पाई आपकी झलक.
प्रत्येक पग पराग सा,सुबास है बिखेरता.
पीत प ट लपेट तन,दिव्यता उकेरता.
प्रकाश का अकाट सच,सौम्यता सहेज कर.
धरे शारीर आपका,बना विश्व तिमिर हर.
कौंध रहीं हैं दिशाएं,आपकी उजास से.
जगी दिव्य चेतना,आपके प्रयास से.
सत्व है उठान पर,सत्य अपनी आन पर.
तर्जनी घुमाइए,कोटि पग प्रयाण पर.
योग शास्त्र लिए आप,कलुषता समेटते.
दिव्य चेतना में दिव्य,प्राण हैं उकेरते.
पराशक्ति पंकजा सी,विहंसती समीप ही
घोर आँधियों में दीप्त,दिव्य दीप आप ही.
प्रमाण दे मिटा रहे,कुतर्कियों कि बात कों.
लाभार्थी ढाल से,रोक रहे घात कों.
प्रत्यक्ष कों प्रमाण क्या,कि बात स्वयं सिद्ध है
शोषकों कि कुटिल दृष्टि, बनी आज गिद्ध है.
किन्तु भक्त आपके,पद कमल पखारने.
देव पुत्र आपको, नयन भर निहारने.
निर्निमेष पंक्ति बद्ध,पांवड़े बिछाए हैं.
पुलकगात प्रीतिवश,अश्रु छलकाए हैं.
परार्थ का स्वरूप आप,विश्व में अशेष हैं.
परम स्वार्थ समय पर, धरे दधिची वेश हैं.
कामना है आपकी,आयु आयुष्मान हो
सूर्य चन्द्र के सदृश, आप में भी प्राण हों.
प्रकृति प्रफुल्ल आपसे,लहलहाई पौध है.
राष्ट्र कि धास-पात,बनी आज शोध है.
नौनिहाल भारती के,लाडले सपूत आप.
रामदेव रामदेव,विश्व करे नाम जप.
कृष्ण जन्म से ज्यों, कंस था डरा हुआ.
थरथराये छली आज,घोर भय भरा हुआ.
अनंत शुभ कामनाएं,साथ में हैं आपके.
दुखी गरीब बृद्धसभी,साथ में हैं आपके.
विश्व कि अतुलनीय, सौम्य सौगात आप.
योगिराज योग की,अतुल विसात आप.
खोल दिए दिव्य द्वार,गुफाओं में सील के.
वैदिक योग दर्शन, पाषण मील के.
ज्यों प्रजा राजद्वार, में प्रवेश पा गई.
क्षुधित-तृषित एक संग, अमिय पान पा गई.
सुधारस बिखेरते,आपके प्रयास सब.
पीड़ितों के तीन ताप,हो रहे दूर अब.
महा मृत्युंजय,आपके सुमंत्र हैं.
असाध्य रोगियों कों,रामबाण मन्त्र हैं.
अहर्निश गला रहे अस्थियाँ दधिची सी.
युद्ध-स्तर सी स्फूर्त,दीप्त शिखा दीप सी.
धन्य जनक आपके,जननी भी धन्य हुईं.
अहो भाग्य भारती,जगत में सुधन्य हुईं.
ग्वालियर शिविर के दौरान लिखी व बाबाजी को भेंट की गइ मेरी ये कविता ,हजारों ने सराही है योग सन्देश में भी निकली थी...बधाइयों का तांता लग गया था.माँ सरस्वती ने करवाई थी बाबाजी की यह वंदना...अब इसका अगला भाग लिखने जा रही हूँ.
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peet pat lapet tan divyta ukerata...
by Rajni Saxena on 02 जून 2011 को 23:52 बजे
Rajni Saxena
प्रकाश का अनंत कोष, ज्यों लिए चले दिवस.
निशा के निशान जो,समेटता स्वभाव वश,
आपका अगाध तेज,उजास सिन्धु सा यही.
मर्म है बिखेरता,निशीथ सरित बन बही.
अंधकार निर्विकार,ज्योति कलश बना छलक.
अंशुमान रूप दिव्य,पाई आपकी झलक.
प्रत्येक पग पराग सा,सुबास है बिखेरता.
पीत प ट लपेट तन,दिव्यता उकेरता.
प्रकाश का अकाट सच,सौम्यता सहेज कर.
धरे शारीर आपका,बना विश्व तिमिर हर.
कौंध रहीं हैं दिशाएं,आपकी उजास से.
जगी दिव्य चेतना,आपके प्रयास से.
सत्व है उठान पर,सत्य अपनी आन पर.
तर्जनी घुमाइए,कोटि पग प्रयाण पर.
योग शास्त्र लिए आप,कलुषता समेटते.
दिव्य चेतना में दिव्य,प्राण हैं उकेरते.
पराशक्ति पंकजा सी,विहंसती समीप ही
घोर आँधियों में दीप्त,दिव्य दीप आप ही.
प्रमाण दे मिटा रहे,कुतर्कियों कि बात कों.
लाभार्थी ढाल से,रोक रहे घात कों.
प्रत्यक्ष कों प्रमाण क्या,कि बात स्वयं सिद्ध है
शोषकों कि कुटिल दृष्टि, बनी आज गिद्ध है.
किन्तु भक्त आपके,पद कमल पखारने.
देव पुत्र आपको, नयन भर निहारने.
निर्निमेष पंक्ति बद्ध,पांवड़े बिछाए हैं.
पुलकगात प्रीतिवश,अश्रु छलकाए हैं.
परार्थ का स्वरूप आप,विश्व में अशेष हैं.
परम स्वार्थ समय पर, धरे दधिची वेश हैं.
कामना है आपकी,आयु आयुष्मान हो
सूर्य चन्द्र के सदृश, आप में भी प्राण हों.
प्रकृति प्रफुल्ल आपसे,लहलहाई पौध है.
राष्ट्र कि धास-पात,बनी आज शोध है.
नौनिहाल भारती के,लाडले सपूत आप.
रामदेव रामदेव,विश्व करे नाम जप.
कृष्ण जन्म से ज्यों, कंस था डरा हुआ.
थरथराये छली आज,घोर भय भरा हुआ.
अनंत शुभ कामनाएं,साथ में हैं आपके.
दुखी गरीब बृद्धसभी,साथ में हैं आपके.
विश्व कि अतुलनीय, सौम्य सौगात आप.
योगिराज योग की,अतुल विसात आप.
खोल दिए दिव्य द्वार,गुफाओं में सील के.
वैदिक योग दर्शन, पाषण मील के.
ज्यों प्रजा राजद्वार, में प्रवेश पा गई.
क्षुधित-तृषित एक संग, अमिय पान पा गई.
सुधारस बिखेरते,आपके प्रयास सब.
पीड़ितों के तीन ताप,हो रहे दूर अब.
महा मृत्युंजय,आपके सुमंत्र हैं.
असाध्य रोगियों कों,रामबाण मन्त्र हैं.
अहर्निश गला रहे अस्थियाँ दधिची सी.
युद्ध-स्तर सी स्फूर्त,दीप्त शिखा दीप सी.
धन्य जनक आपके,जननी भी धन्य हुईं.
अहो भाग्य भारती,जगत में सुधन्य हुईं.
ग्वालियर शिविर के दौरान लिखी व बाबाजी को भेंट की गइ मेरी ये कविता ,हजारों ने सराही है योग सन्देश में भी निकली थी...बधाइयों का तांता लग गया था.माँ सरस्वती ने करवाई थी बाबाजी की यह वंदना...अब इसका अगला भाग लिखने जा रही हूँ.
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1:13pm Jun 3

प्रकाश का अनंत कोष, ज्यों लिए चले दिवस.
निशा के निशान जो,समेटता स्वभाव वश,
आपका अगाध तेज,उजास सिन्धु सा यही.
मर्म है बिखेरता,निशीथ सरित बन बही.
अंधकार निर्विकार,ज्योति कलश बना छलक.
अंशुमान रूप दिव्य,पाई आपकी झलक.
प्रत्येक पग पराग सा,सुबास है बिखेरता.
पीत प ट लपेट तन,दिव्यता उकेरता.
प्रकाश का अकाट सच,सौम्यता सहेज कर.
धरे शारीर आपका,बना विश्व तिमिर हर.
कौंध रहीं हैं दिशाएं,आपकी उजास से.
जगी दिव्य चेतना,आपके प्रयास से.
सत्व है उठान पर,सत्य अपनी आन पर.
तर्जनी घुमाइए,कोटि पग प्रयाण पर.
योग शास्त्र लिए आप,कलुषता समेटते.
दिव्य चेतना में दिव्य,प्राण हैं उकेरते.
पराशक्ति पंकजा सी,विहंसती समीप ही
घोर आँधियों में दीप्त,दिव्य दीप आप ही.
प्रमाण दे मिटा रहे,कुतर्कियों कि बात कों.
लाभार्थी ढाल से,रोक रहे घात कों.
प्रत्यक्ष कों प्रमाण क्या,कि बात स्वयं सिद्ध है
शोषकों कि कुटिल दृष्टि, बनी आज गिद्ध है.
किन्तु भक्त आपके,पद कमल पखारने.
देव पुत्र आपको, नयन भर निहारने.
निर्निमेष पंक्ति बद्ध,पांवड़े बिछाए हैं.
पुलकगात प्रीतिवश,अश्रु छलकाए हैं.
परार्थ का स्वरूप आप,विश्व में अशेष हैं.
परम स्वार्थ समय पर, धरे दधिची वेश हैं.
कामना है आपकी,आयु आयुष्मान हो
सूर्य चन्द्र के सदृश, आप में भी प्राण हों.
प्रकृति प्रफुल्ल आपसे,लहलहाई पौध है.
राष्ट्र कि धास-पात,बनी आज शोध है.
नौनिहाल भारती के,लाडले सपूत आप.
रामदेव रामदेव,विश्व करे नाम जप.
कृष्ण जन्म से ज्यों, कंस था डरा हुआ.
थरथराये छली आज,घोर भय भरा हुआ.
अनंत शुभ कामनाएं,साथ में हैं आपके.
दुखी गरीब बृद्धसभी,साथ में हैं आपके.
विश्व कि अतुलनीय, सौम्य सौगात आप.
योगिराज योग की,अतुल विसात आप.
खोल दिए दिव्य द्वार,गुफाओं में सील के.
वैदिक योग दर्शन, पाषण मील के.
ज्यों प्रजा राजद्वार, में प्रवेश पा गई.
क्षुधित-तृषित एक संग, अमिय पान पा गई.
सुधारस बिखेरते,आपके प्रयास सब.
पीड़ितों के तीन ताप,हो रहे दूर अब.
महा मृत्युंजय,आपके सुमंत्र हैं.
असाध्य रोगियों कों,रामबाण मन्त्र हैं.
अहर्निश गला रहे अस्थियाँ दधिची सी.
युद्ध-स्तर सी स्फूर्त,दीप्त शिखा दीप सी.
धन्य जनक आपके,जननी भी धन्य हुईं.
अहो भाग्य भारती,जगत में सुधन्य हुईं.
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