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शुक्रवार, 3 जून 2011

एक हरियाणवी ग़ज़ल आदिक भारती


एक हरियाणवी ग़ज़ल
आदिक भारती
*
और कित'णा लखावैगा* नत्थू ....( देखेगा )
आइना टूट जावैगा नत्थू

आटा सापड़* लिया सै* सारा - ए..( ख़त्म, है )
ईब* के* मन्नै* खावैगा नत्थू ..( अब, क्या, मुझको )

ठीक सै..खाते पीते घर की सै
पर के* झोटी नै* ब्याह्वैगा नत्थू ..( क्या, को )

दर्द लिकड़'न* नै सै रै आंख्यां* तै..( निकलने को आँखों से)
कद* तलक मुस्कुरावैगा नत्थू ....( कब )

एक बै* कुर्सी थ्या* जा* नत्थू नै ..( बार, मिल जाये )
देश नै लूट खावैगा नत्थू

शादी हो ले'ण* दे घर'आली के ..( लेने )
पैरां नै भी दबावैगा नत्थू

उसनै तेरे तै* सै ग़रज़ ' आदिक'....( तुझसे )
तेरे जूते भी ठावैगा* नत्थू ..( उठाएगा )
( डा. आदिक भारती )

1 टिप्पणी:

गुड्डोदादी ने कहा…

के कवे यो ने हरयाणवी कविता घण्णी चोखी
सूघ्डी से
मने हासा आयो
भाई रे तने बधाई होवे
नू लिख्या कर
सूरायेकी डा वी गीत होवे