मुक्तिका:
ज़ख्म कुरेदेंगे....
संजीव 'सलिल'
*
*
ज़ख्म कुरेदेंगे तो पीर सघन होगी.
शोले हैं तो उनके साथ अगन होगी..
छिपे हुए को बाहर लाकर क्या होगा?
रहा छिपा तो पीछे कहीं लगन होगी..
मत उधेड़-बुन को लादो, फुर्सत ओढ़ो.
होंगे बर्तन चार अगर खन-खन होगी..
फूलों के शूलों को हँसकर सहन करो.
वरना भ्रमरों के हाथों में गन होगी..
बीत गया जो रीत गया उसको भूलो.
कब्र न खोदो, कोई याद दफन होगी..
आज हमेशा कल को लेकर आता है.
स्वीकारो वरना कल से अनबन होगी..
नेह नर्मदा 'सलिल' हमेशा बहने दो.
अगर रुकी तो मलिन और उन्मन होगी..
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Acharya Sanjiv Salil
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गुरुवार, 1 जुलाई 2010
मुक्तिका: ज़ख्म कुरेदेंगे.... संजीव 'सलिल'
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आचार्य संजीव वर्मा सलिल
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13 टिप्पणियां:
सलिल जी,
आपकी रचनाशीलता प्रशंसनीय है. यह ग़ज़ल बहुत अच्छी कही गई है, विशेष रूप से--
ज़ख्म कुरेदेंगे तो पीर सघन होगी.
शोले हैं तो उनके साथ अगन होगी..
बीत गया जो रीत गया उसको भूलो.
कब्र न खोदो, कोई याद दफन होगी..
आज हमेशा कल को लेकर आता है.
स्वीकारो वरना कल से अनबन होगी..
***
निम्न में गन का प्रयोग (बंदूक के लिए) न जँचा.
सुझाव:
फूलों के शूलों को हँसकर सहन करो.
वरना भ्रमरों के हाथों में गन होगी..
>>>>
फूलों के शूलों को हँसकर सहन करो.
वरना इक दिन भौरों से अनबन होगी..
--ख़लिश
मुझे ग़ज़ल कहनी नहीं आती. हिन्दी व्याकरण और पिंगल के अनुसार मुक्तिका कहता हूँ.
वाह वाह आचार्य जी बहुत ही लाजवाब रचना कही है आपने ! इसको पढते हुए इसमें से किसी सुंदर सी गजल की सुगंध महसूस हुई मुझे ! यूँ तो हरेक पंक्ति ही बहुत प्रभावशाली है, लेकिन निम्नलिखित पंक्तियाँ सीधे दिल में उतर गईं:
//ज़ख्म कुरेदेंगे तो पीर सघन होगी.
शोले हैं तो उनके साथ अगन होगी..//
//बीत गया जो रीत गया उसको भूलो.
कब्र न खोदो, कोई याद दफन होगी.//.
मेरा सादर साधुवाद स्वीकार करें !
आदरणीय आचार्य जी
नेह नर्मदा 'सलिल' हमेशा बहने दो.
अगर रुकी तो मलिन और उन्मन होगी.. बहुत सुन्दर !
सादर
प्रताप
नमस्कार,
बहुत ही व्यवहारिक प्रेरणा दाई कविता
आचार्य सलिल जी,
अति सुन्दर!
"आज हमेशा कल को लेकर आता है.
स्वीकारो वरना कल से अनबन होगी.."
एक चिरन्तन सत्य!
सस्नेह
सीताराम चंदावरकर
आ० आचार्य जी,
" मुक्तिका " एक सुन्दर प्रस्तुति | हर पद प्रभावित करता हुआ | बधाई !
सादर,
कमल
Aasha hi Jeevan... Bahoot accha kaha
आज हमेशा कल को लेकर आता है.
स्वीकारो वरना कल से अनबन होगी..
sbiswani.blogspot.com
सुन्दर संदेश
नेह नर्मदा 'सलिल' हमेशा बहने दो.
अगर रुकी तो मलिन और उन्मन होगी..
नेह नर्मदा 'सलिल' सदा प्रवाहित एवं निर्मल बना रहे !
- प्रतिभा.
नेह-नर्मदा नहाकर, नित्य करें जो नाद.
'सलिल' नमन उनको करे, जो करते संवाद..
बीत गया जो रीत गया उसको भूलो.
कब्र न खोदो, कोई याद दफन होगी..
नमन है इस मुक्तिका के खजाने के आगे। आभार।
ज़ख्म कुरेदेंगे तो पीर सघन होगी.
शोले हैं तो उनके साथ अगन होगी..
मत उधेड़-बुन को लादो, फुर्सत ओढ़ो.
होंगे बर्तन चार अगर खन-खन होगी..
Waah Acharya waah , aap sabkey saujanya sey etani khubsurat rachnao ko padhney ko mil raha hai, bahut badhiya rachna, jai hoooooooo
सानदार प्रस्तुती के लिऐ आपका आभार
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