सुन जिसे झूमें सभी...
संजीव 'सलिल'
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सुन जिसे झूमें सभी वह गान है.
करे हृद-स्पर्श जो वह तान है..
दिल से दिल को जो मिला, वह नेह है.
मन ने मन को जो दिया, सम्मान है..
सिर्फ खुद को सही समझा, था गलत.
परखकर पाया महज अभिमान है..
ज़िदगी भर जोड़ता क्यों तू रहा.
चंद पल का जब कि तू महमान है..
व्याकरण-पिंगल तजा, रचना रची.
'सलिल' तुझ सा कोई क्या नादान है?
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