मुक्तिका:
सुन जिसे झूमें सभी...
संजीव 'सलिल'
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सुन जिसे झूमें सभी वह गान है.
करे हृद-स्पर्श जो वह तान है..
दिल से दिल को जो मिला, वह नेह है.
मन ने मन को जो दिया, सम्मान है..
सिर्फ खुद को सही समझा, था गलत.
परखकर पाया महज अभिमान है..
ज़िदगी भर जोड़ता क्यों तू रहा.
चंद पल का जब कि तू महमान है..
व्याकरण-पिंगल तजा, रचना रची.
'सलिल' तुझ सा कोई क्या नादान है?
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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सोमवार, 19 जुलाई 2010
मुक्तिका: सुन जिसे झूमें सभी... संजीव 'सलिल'
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आचार्य संजीव वर्मा सलिल
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