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रविवार, 21 फ़रवरी 2010

सामाजिक प्रश्न: एक चिंतन ---आचार्य संजीव 'सलिल'

'गोत्र' तथा 'अल्ल' 


'गोत्र' तथा 'अल्ल' के अर्थ तथा महत्व संबंधी प्रश्न राष्ट्रीय कायस्थ महापरिषद् का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष होने के नाते मुझसे पूछे जाते हैं.

स्कन्दपुराण में वर्णित श्री चित्रगुप्त प्रसंग के अनुसार उनके बारह पुत्रों
को बारह ऋषियों के पास विविध विषयों की शिक्षा हेतु भेजा गया था. इन से ही कायस्थों की बारह उपजातियों का श्री गणेश हुआ. ऋषियों के नाम ही उनके शिष्यों के गोत्र हुए. इसी कारण विभिन्न जातियों में एक ही गोत्र मिलता है चूंकि ऋषि के पास विविध जाती के शिष्य अध्ययन करते थे. आज कल जिस तरह मॉडल स्कूल में पढ़े विद्यार्थी 'मोडेलियन' रोबेर्त्सों कोलेज में पढ़े विद्यार्थी 'रोबर्टसोनियन' आदि कहलाते हैं, वैसे ही ऋषियों के शिष्यों के गोत्र गुरु के नाम पर हुए. आश्रमों में शुचिता बनाये रखने के लिए सभी शिष्य आपस में गुरु भाई तथा गुरु बहिनें मानी जाती थीं. शिष्य गुरु के आत्मज (संततिवत) मान्य थे. अतः, उनमें आपस में विवाह वर्जित होना उचित ही था.

एक 'गोत्र' के अंतर्गत कई 'अल्ल' होती हैं. 'अल्ल' कूट शब्द (कोड) या पहचान चिन्ह है जो कुल के किसी प्रतापी पुरुष, मूल स्थान, आजीविका, विशेष योग्यता, मानद उपाधि या अन्य से सम्बंधित होता है. एक 'अल्ल' में विवाह सम्बन्ध सामान्यतया वर्जित मन जाता है किन्तु आजकल अधिकांश लोग अपने 'अल्ल' की जानकारी नहीं रखते. 


हमारा गोत्र 'कश्यप' है जो अधिकांश कायस्थों का है तथा उनमें आपस में विवाह सम्बन्ध होते हैं. हमारी अल्ल 'उमरे' है. मुझे इस अल्ल का अब तक केवल एक अन्य व्यक्ति मिला है. मेरे फूफा जी की अल्ल 'बैरकपुर के भले' है. उनके पूर्वज बैरकपुर से नागपुर जा बसे थे .
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4 टिप्‍पणियां:

मनोज कुमार ... ने कहा…

अच्छी जानकारी।

देवसूफी राम कु० बंसल ... ने कहा…

गोत्र का अर्थ 'निवासी' होता है, यह लैटिन भाषा के शब्द cotarius से बना है. अतः गोत्र वही होता है जो व्यक्ति का कभी मूल गाँव हुआ करता था अर्थात जहाँ उसके पूर्वज आरंभ में बसे थे. यह प्रथा सभी जातियों तथा उपजातियों में है. समयांतराल के कारण बहुत से गाँव उजाड़ गये हैं तथा गोत्र नाम विकृत हो गये हैं जिससे उन्हें मूल गाँव से संबद्ध करना कठिन हो गया है.

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'... ने कहा…

हो सकता है प्रारंभ में गोत्र का अर्थ निवासी से रहा हो किन्तु वर्तमान में कायस्थों, ब्राम्हणों, क्षत्रियों तथा विषयों में कई गोत्र एक जैसे हैं तथा ऋषियों के नाम पर हैं. कश्यप, गौतम, भारद्वाज, दालभ्य आदि ग्प्त्र ऋषियों के नाम पर ही हैं.

बेनामी ने कहा…

. आचार्य जी ,
प्रणाम,बहुत उपयोगी जानकारी दी है आपने.मैं आभारी हूँ .
सादर ,
प्रतिभा.


"Pratibha Saksena"