सत्ता की जय बोलिए, दुनिया का दस्तूर.
सत्ता पा मदमस्त हो, रहें नशे में चूर..
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है विनाश की दिशा यह, भूल रहे सब जान.
वंशज हम धृतराष्ट्र के, सके न सच पहचान.
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जो निज मन को जीत ले, उसे नमन कर मौन.
निज मन से यह पूछिए, छिपा आपमें कौन?.
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मुझे तुम न भूलीं, मुझे ज्ञात है यह.
तभी तो उषामय, मधुर प्रात है यह..
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ये बासंती मौसम, हवा में खुनक सी-
परिंदों की चह-चह सा ज़ज्बात है यह..
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काल ग्रन्थ की पांडुलिपि, लिखता जाने कौन?
जब-जब पूछा प्रश्न यह, उत्तर पाया मौन..
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जय प्रकाश की बोलिए, मानस होगा शांत.
'सलिल' मिटाकर तिमिर को, पथ पायें निर्भ्रांत..
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परिंदा नन्हा है छोटे पर मगर है हौसला.
बना ले तूफ़ान में भी, जोड़ तिनका घोंसला..
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अश्वारोही रश्मि की, प्रभा निहारो मीत.
जीत तिमिर उजियार दे, जग मनभावन रीत..
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हम 'मैं' बनकर जी रहे, 'तुम' से होकर दूर.
काश कभी 'हम एक' हों, खुसी मिले भरपूर..
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अनिल अनल भू नभ सलिल, मिल भरते हैं रंग.
समझ न पाता साम्य तो, होता मानव तंग.
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एक नहीं दो-दो मात्राएँ, नर से ज्यादा भारी.
आज नहीं चिर काल से, रहती आयी नारी..
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मैन आप वूमैन वह, किसमें ज्यादा भार?
सत्य जान करिए नमन, करिए पायें प्यार.
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010
आज की रचना: संजीव 'सलिल'
चिप्पियाँ Labels:
-acharya sanjiv 'salil',
Contemporary Hindi Poetry,
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करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
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