असहमति:
विदेशी पर्व अवश्य मनाएं
मित्रों!
वैलेंटाइन दिवस एक संत की स्मृति में मनाया जानेवाला विदेशी पर्व है.उस देश के तत्कालीन सत्ताधीशों की रीति-नीति से असंतुष्ट जनगण की कामनाओं को अभिव्यक्त करें और अनुचित आदेश की अवज्ञा करने हेतु संत ने इस पर्व का उपयोग किया. युवाओं के मिलने को खतरा माननेवाली सत्ता का प्रतिकार युवाओं ने खुलेआम मिलकर किया. यह पर्व स्वतंत्र चेतना और निर्भीक अभिव्यक्ति का प्रतीक बन गया. कालांतर में देश की सीमा लांघकर यह वैश्विक पर्व बन गया.
युवाओं के मिलन पर्व को राष्ट्रीय चेतना और सामाजिक परिवर्तन का अवसर न रहने देकर इसे दैहिक प्रेम की अभिव्यक्ति का पर्याय बनानेवालों ने संत के विचारों और आदर्शों की हत्या वैसे ही की जैसे गाँधीवादियों ने सत्ताप्रेमी बनकर गाँधी की है. आइये! हम इस पर्व की मूल भावना को जीवित रखें और इसे नव जागरण पर्व के रूप में मनाएँ..
स्वदेशी पर्वों की कमी है क्या जो विदेशी पर्व मनाएँ?
यह प्रश्न है उनका जो भारतीय संस्कृति के पक्षधर होने का दावा करते हैं. 'वसुधैव कुटुम्बकम', 'विश्वैकनीडम', 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' के पक्षधर भारतीय पर्व दीवाली, दशहरा, होली आदि विदेशों में मनाये जाने पर प्रसन्न होते हैं. फिर उन्हें भारत में विदेशी पर्व मनाये जाने पर आपत्ति क्यों है? विदेशी संस्कृति से अपरिचित भारतीय क्या विश्व बन्धुत्व ला सकेंगे?
अपने आचार-विचार और परम्पराओं को टाक पर रखकर फूहड़ता और बेहूदगी करनेवालों से भी मैं असहमत हूँ.
असहमत तो मैं डंडा फटकारने वालों से भी हूँ. होली पर हुडदंग होता है तो क्या होली बंद कर दी जाये?, पटाखों से दुर्घटना होती है तो क्या दीवाली पर प्रतिबन्ध हो?
हम संतुलित, समझदार और समन्वयवादी हों तो देश-विदेश का कोई भी पर्व मनाएँ सौहार्द ही बढेगा.
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010
असहमति: विदेशी पर्व अवश्य मनाएं
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