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गुरुवार, 11 फ़रवरी 2010

नव गीत: जीवन की / जय बोल --संजीव 'सलिल'

जीवन की

जय बोल,

धरा का दर्द

तनिक सुन...

तपता सूरज

आँख दिखाता,

जगत जल रहा.

पीर सौ गुनी

अधिक हुई है,

नेह गल रहा.

हिम्मत

तनिक न हार-

नए सपने

फिर से बुन...

निशा उषा

संध्या को छलता

सुख का चंदा.

हँसता है पर

काम किसी के

आये न बन्दा...

सब अपने

में लीन,

तुझे प्यारी

अपनी धुन...

महाकाल के

हाथ जिंदगी

यंत्र हुई है.

स्वार्थ-कामना ही

साँसों का

मन्त्र मुई है.

तंत्र लोक पर,

रहे न हावी

कर कुछ

सुन-गुन...
 
* * *

7 टिप्‍पणियां:

nadeem_sharma@yahoo.com ने कहा…

Amar Jyoti ekavita

सुन्दर!

sn Sharma ✆ ekavita ने कहा…

ahutee@gmail.com

आ० आचार्य जी,
मनुष्य को कर्तव्य का बोध कराता सुन्दर गीत
के लिये साधुवाद |

कमल

संजय भास्‍कर ने कहा…

आ० आचार्य जी,
मनुष्य को कर्तव्य का बोध कराता सुन्दर गीत
के लिये साधुवाद |

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

Krishna Kanhaiya ने कहा…

kanhaiyakrishna@hotmail.com

वाह-वाह आचार्य जी

-कृष्ण कन्हैया

amitabh.ald@gmail.com ने कहा…

आदरणीय आचार्य जी,

अच्छा नवगीत है
बधाई!
सादर

अमित
रचनाधर्मिता (http://amitabhald.blogspot.com)
Mob: +919450408917

योगेश स्वप्न ने कहा…

योगेश स्वप्न

ati uttam/ati sunder.