दोहे चुनाव सुधार के :
संजीव 'सलिल'
बिन प्रचार के हों अगर, नूतन आम चुनाव.
भ्रष्टाचार मिटे 'सलिल', तनिक न हो दुर्भाव.
दल का दलदल ख़त्म हो, कोई न करे प्रचार.
सब प्रतिनिधि मिलकर गढ़ें, राष्ट्रीय सरकार.
मतदाता चाहे जिसे, लिखकर उसका नाम.
मतपेटी में डाल दे, प्रतिनिधि हो निष्काम..
भाषा भूषा प्रान्त औ' मजहब की तकरार.
बाँट रही है देश को, जनता है बेज़ार..
समय सम्पदा श्रम बचे, प्रतिनिधि होंगे श्रेष्ठ.
लोग उसी को चुनेंगे, जो सद्गुण में ज्येष्ठ..
संसद में सरकार संग, रहें समर्थक पक्ष.
कहीं विरोधी हो नहीं, दें सब शासन दक्ष..
सुलझा लें असद्भाव से, जब भी हों मतभेद.
'सलिल' सभी कोशिश करें, हो न सके मनभेद..
सब जन प्रतिनिधि हों एक तो, जग पाए सन्देश.
भारत से डरकर रहो, तभी कुशल हो शेष..
*****************************************
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010
दोहे चुनाव सुधार के : --संजीव 'सलिल'
चिप्पियाँ Labels:
-acharya sanjiv 'salil',
/samyik hindi kavya,
aam chunav,
doha : salil,
jantantra,
loktantra ke shahanshaah ki jaya,
prajatantra

सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
1 टिप्पणी:
ham sab appki is bhavana kesatha hai.
एक टिप्पणी भेजें