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बुधवार, 6 जनवरी 2010

सरस्वती वंदना : ४ संजीव 'सलिल'

सरस्वती वंदना : ४
संजीव 'सलिल'
*
हे हंसवाहिनी! ज्ञानदायिनी!
अम्ब विमल मति दे...
*
कलकल निर्झर सम सुर-सागर.
तड़ित-ताल के हों कर आगर.
कंठ विराजे सरगम हरदम-
कृपा करें नटवर-नटनागर.
पवन मुक्त प्रवहे...
*
विद्युत्छटा अलौकिक चमके.
चरणों में गतिमयता भर दे.
अंग-अंग से भाव-साधना-
चंचल चपल चारु चित कर दे.
तुहिन-बिंदु पुलके...
*
चित्र-गुप्त अक्षर संवेदन.
शब्द-ब्रम्ह का कलम निकेतन.
सृजे 'सलिल' साहित्य सनातन-
शाश्वत मूल्यों का शुचि मंचन.
मन्वंतर चहके...
*

4 टिप्‍पणियां:

मानोशी ने कहा…

khallopapa@yahoo.com

सलिल जी,

आपके सरस्वती वंदना पढ़ रही हूँ।

कभी अगर रिकार्ड कर पाई तो आपको भेजूँगी।

अत्यंत सुंदर कहना भी कम ही होगा।

सादर
मानोशी
www.manoshichatterjee.blogspot.com

दिव्य नर्मदा divya narmada ने कहा…

मानोशी जी!

वन्दे मातरम.

आप सरस्वती वन्दनाओं को स्वर दें तो हार्दिक प्रसन्नता होगी. इनका ध्वन्यांकन मिलने पर दिव्यनर्मदा ( divynarmada.blogspot.com) में लगाया जायगा.

अवनीश एस तिवारी ने कहा…

वाह सुन्दर |

अवनीश तिवारी

- anoop_bhargava@yahoo.com ने कहा…

आदरणीय संजीव जी:

आप की सभी सरस्वती वंदनाएं बहुत अच्छी लगी ।

सादर
अनूप