दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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रविवार, 10 नवंबर 2013
chhand salila: kakubh / kukabh
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chhand salila: tatank chhand - sanjiv
छंद सलिला:
ताटंक छंद :
संजीव
*
(छंद विधान: यति १६ - १४, पदांत मगण, सम पदान्ती द्विपदिक मात्रिक छंद)
मराठी का लावणी छंद भी १६ - १४ मात्राओं का छन्द है किन्तु उसमें पदांत में मात्रा सम्बन्धी कोई नियम नहीं होता।)
ताटंक छंद :
संजीव
*
(छंद विधान: यति १६ - १४, पदांत मगण, सम पदान्ती द्विपदिक मात्रिक छंद)
मराठी का लावणी छंद भी १६ - १४ मात्राओं का छन्द है किन्तु उसमें पदांत में मात्रा सम्बन्धी कोई नियम नहीं होता।)
*
सोलह-चौदह यतिमय दो पद, मगण अंत में आया हो.
रचें छंद ताटंक कर्ण का, आभूषण लहराया हो..
*
सोलह-चौदह यतिमय दो पद, मगण अंत में आया हो.
रचें छंद ताटंक कर्ण का, आभूषण लहराया हो..
*
आये हैं लड़ने चुनाव जो, सब्ज़ बाग़ दिखलायें क्यों?
झूठे वादे करते नेता, किंचित नहीं निभायें क्यों?
सत्ता पा घपले-घोटाले, करें नहीं शर्मायें क्यों?
न्यायालय से दंडित हों, खुद को निर्दोष बतायें क्यों?
जनगण को भारत माता को, करनी से भरमायें क्यों?
जनगण को भारत माता को, करनी से भरमायें क्यों?
ईश्वर! आँखें मूंदें बैठे, 'सलिल' न पिंड छुड़ायें क्यों?
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Sanjiv verma 'Salil'
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शनिवार, 9 नवंबर 2013
chhand salila: tatank chhand: - Dr. Satish Saxena
छंद सलिला:
ताटंक छंद
मुझको हिन्दी प्यारी है
ताटंक छंद
डॉ. सतीश सक्सेना'शून्य'
मुझको हिन्दी प्यारी है
(छंद विधान-ताटंक:मात्रा ३०=१६,१४ पर विराम)
देवों की भाषा यह अनुपम जन मन गण की उत्थानी
सादा सरल सरस सुन्दर शुचि सुद्रढ़ सांस्कृतिक संधानी
सबका प्यार इसीने पाया सबकी ये जननी प्यारी
शब्द सरोबर अतुल राशि जल नवल उर्मियाँ अति प्यारी
ज्ञान और विज्ञान विपुल सत्चिन्तन की धारा भारी
विश्व रहेगा ऋणी सदा मानवता है जब तक जारी
अब भी अवसर है तुम चेतो वरना हार तुम्हारी है
करो प्रतिज्ञा आज सभी मिल हमको हिन्दी प्यारी है
मुझ को हिन्दी प्यारी है
सब को हिन्दी प्यारी है
अंग्रेज़ी वलिहारी है
(छंद विधान- वीर छंद मात्रा ३१=१६,१५ पर विराम )
पूज्य पिताजी' डेड' कहाते सड़ी लाश 'मम्मी' प्यारी
कहलाते स्वर्गीय 'लेट' जो शब्दों कीयह गति न्यारी
'ख़' को तो खागई विचारी 'घ','ड.' का तो पता नहीं
'च' 'छ' 'ज' 'झ' मिले कहीं ना 'त' 'थ' 'द' 'ध' नाम नहीं
'भ' का भाग भले ही फूटे 'श' 'ष' करी किनारी है
नहीं रीढ़ की अस्थि मगर व्याकरण कबड्डी जारी है
लिखें और कुछ पढ़ें और कुछ ये कैसी वीमारी है
तू तो 'तू' है तुम भी 'तुम' हो 'आप' नहीं लाचारी है
अंग्रेज़ी वलिहारी है ...
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doha salila: sanjiv
दोहा सलिला:
संजीव
*
नट के करतब देखकर, राधा पूछे मौन
नट मत नटवर नट कसे, कहाँ बता कब कौन??
*
हहर-हहर-हर रही हर, लहर-लहर सुख-चैन
सिहर-सिहर लख प्राण-मन, आठ प्रहर दिन-रैन
*
पलकर पल भर भूल मत, पालक का अहसान
रूप-गंध, रस-स्वाद बिन, पालक गुण की खान
*
संजीव
*
नट के करतब देखकर, राधा पूछे मौन
नट मत नटवर नट कसे, कहाँ बता कब कौन??
*
हहर-हहर-हर रही हर, लहर-लहर सुख-चैन
सिहर-सिहर लख प्राण-मन, आठ प्रहर दिन-रैन
*
पलकर पल भर भूल मत, पालक का अहसान
रूप-गंध, रस-स्वाद बिन, पालक गुण की खान
*
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aalekh: Laghukatha: ek Parichay
आलेख :
लघुकथा : एक परिचय
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
*
हिंदी साहित्य की लोकप्रिय विधा है.
हिंदी साहित्य की अन्य विधाओं की तरह लघुकथा का मूल भी संस्कृत साहित्य में
हैं जहाँ बोध कथा, दृष्टान्त कथा, उपदेश कथा के रूप में
वैदिक-पौराणिक-औपनिषदिक काल में इसका उपयोग एक अथवा अनेक व्यक्तियों के मानस को दिशा देने के लिये सफलतापूर्वक किया गया. हितोपदेश तथा पंचतंत्र की कहानियाँ, बौद्ध साहित्य की जातक कथाएँ आधुनिक लघुकथा का पूर्व रूप कही जा सकती हैं. लोक आश्रित्य में लघुकथा का अनगढ़ रूप मिलता है. भारतीय पर्वों में महिलाएँ पूजन अथवा व्रत का समापन करते हुए बहुधा कहानियाँ कहतीं है जिनमें लोक हितैषी सन्देश अन्तर्निहित होता है. साहित्यिक दृष्टि से लघुकथा न होते हुए भी ये आमजन के नज़रिये से कम शब्दों में बड़ा सन्देश देने के कारण लघुकथा के निकट कही जा सकती हैं.
आधुनिक लघु कथा:
हिंदी के आधुनिक साहित्य ने लघुकथा को पश्चिम से ग्रहण किया है. आधुनिक लघुकथा में किसी अनुभव अथवा घटना से उपजी टीस और कचोट को गहराई से अनावृत्त अथवा उद्घाटित किया जाता है. पारिस्थितिक वैषम्य, विडम्बना और विसंगति वर्त्तमान लघुकथा को मर्मवेधी बनाती है. लघुकथा में संक्षिप्तता, सरलता तथा मारकता अपरिहार्य है. लघुकथा हास्य नहीं व्यंग्य को पोषित करती है. अभिव्यंजना में प्रतीक और सटीक बिम्बात्मकता लघुकथा को प्रभावी बनाती है.
लघुकथा का इष्ट नकारात्मक आलोचना मात्र नहीं होता, वह सकारात्मक उद्वेलन से यथार्थ का विवेचनकर परोक्ष
मार्गदर्शन करती है. विसंगति को इंगित करने का उद्देश्य बिना उपदेश दिए
पाठक के अंतर्मन में विसंगति से मुक्त होने का मनोभाव उत्पन्न करना होता
है. यहीं लघुकथा उपदेश कथा, बोध कथा अथवा दृष्टान्त कथा से अलग है.
लघुकथा
की भाषा सहज-सरल किन्तु ताना-बाना गसा हुआ होना आवश्यक है. एक भी अनावश्यक शब्द
लघुकथा के कथ्य को कमजोर बना देता है. लघुकथा जीवन के अल्प कालखंड का अप्रगटित सत्यांश सामने लाती है. लघुकथा की कसौटी लघुता, तीक्ष्णता, लाक्षणिकता, प्रतीकात्मकता, कलात्मकता, गहनता, तेवर तथा व्यंजना है. लघुकथा मनोरंजन नहीं मनोमंथन के लिये लिखी जाती है. लघुकथा रुचिपूर्ण हो सकती है, रोचक नहीं।
वर्त्तमान लघुकथा का कथ्य वर्णात्मक, संवादात्मक, व्यंग्यात्मक, व्याख्यात्मक, विश्लेषणात्मक, संस्मरणात्मक हो सकता है किन्तु उसका लघ्वाकरी और मारक होना आवश्यक है. लघुकथा यथार्थ से जुड़कर चिंतन को धार देती है. लघुकथा प्रखर संवेदना की कथात्मक और कलात्मक अभिव्यक्ति है. लघुकथा यथार्थ के सामान्य-कटु, श्लील-अश्लील, छिपे-नग्न, दारुण-निर्मम किसी रूप से परहेज नहीं करती।
लघुकथा में विषयवस्तु से अधिक महत्त्व प्रस्तुति का होता है. विषयवस्तु पहले से उपस्थित और पाठक को विदित होने पर भी उसकी प्रस्तुति ही पाठक को उद्वेलित करती है. प्रस्तुति को विशिष्ट बनती है लघुकथाकार की शैली और कथ्य का शिल्प। लघुकथा की रचना में शीर्षक भी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है. शीर्षक ही पाठक के मन में कौतूहल उत्पन्न करता है. शिल्प को प्लेटो ने और कार्य के चरित का योग (total of structure, meaning and character of the work as a whole) कहा है. लघुकथा विसंगति को पहचानती-इंगित करती है, उसका उपचार नहीं करती। कहानी के आवश्यक तत्व कथोपकथन, चरित्रचित्रण, पृष्भूमि, संवाद आदि लघुकथा में नहीं होते।
हिंदी की लघुकथा में अंग्रेजी की 'शॉर्ट स्टोरी' और 'सैटायर' के तत्व देखे जा सकते हैं किन्तु उसे 'कहानी का सार तत्व' नहीं कहा जा सकता। लघुकथा एक प्रयोगधर्मी विधा है किन्तु असामाजिक अनुभवों की अभिव्यक्ति का साधन नहीं। लघुकथा किसी के उपहास का माध्यम भी नहीं है.
सशक्त लघुकथा अधिक शब्दों कि नहीं बात को सामने रखने के सही तरीके की मांग करती है.
आनंद लें कुछ अच्छी लघुकथाओं का-
आनंद लें कुछ अच्छी लघुकथाओं का-
१. काजी का घर -सआदत हसन मंटो
एक गरीब भूखा काजी के घर गया, कहने लगा: 'मैं भूखा हूँ, मुझे कुछ दो तो मैं खाऊँ।'
काजी ने कहा: 'यह काजी का घर है, कसम खा और चला जा.'
२. मुँह तोड़ जवाब - भारतेन्दु हरिश्चंद्र
एक ने कहा: ' न जेन इस लड़के में इतनी बुरी आदतें कहाँ से आयीं? हमें यकीन है इसने कोइ बुरी बात हमसे नहीं सीखी।'
लड़का चाट से बोल उठा: 'बहुत ठीक है क्योंकि हमने आपसे बुरी आदतें पाई होतीं तो आपमें बहुत सी कम हो जातीं।'
३. तोता-मैना - प्रज्ञा पाठक
तोता और मैना प्रेम-वार्ता में तल्लीन थे. मैना मान भरे स्वर में बोली: 'शादी के बाद मुझे बड़ा स्स घर बनवा दोगे ना?'
तोते ने मनुहार के स्वर में कहा: 'प्रिये! हम छोटे से घर को अपने असीम प्रेम से बड़ा बना देंगे।'
यह सुनते ही मैना फुर्र से उड़कर दूसरे तोते की बगल में जा बैठी।
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गुरुवार, 7 नवंबर 2013
QUOTEs OF THE DAY
QUOTEs OF THE DAY
आँख, दृष्टि और खुशी
"जिन लोगों की आँखें हैं, वे सचमुच बहुत कम देखते हैं । जबकि इस नियामत से
जिंदगी को खुशियों के इंद्रधनुषी रंगों से हरा-भरा किया सकता है ।"
आँख, दृष्टि और खुशी
"जिन लोगों की आँखें हैं, वे सचमुच बहुत कम देखते हैं । जबकि इस नियामत से
जिंदगी को खुशियों के इंद्रधनुषी रंगों से हरा-भरा किया सकता है ।"
- हेलेन केलर, दृष्टिहीन, अमेरिकन लेखिका
Leaders must be close enough to relate to others, but far enough ahead to motivate them.
~ John Maxwell.
nagari lipi parishad
नागरी लिपि परिषद
36वाँ अखिल भारतीय नागरी लिपि सम्मेलन
8-9 नवम्बर, 2013, दीमापुर (नागालैंड
नागरी लिपि परिषद, 19, गाँधी स्मारक निधि, राजघाट, नई दिल्ली-110002
की ओर से 36वाँ अखिल भारतीय नागरी लिपि सम्मेलन, दीमापुर (नागालैंड) में
हिन्दी कॉलेज, पदमपुखुरी परिसर में दिनांक 8-9 नवम्बर, 2013 को आयोजित किया
जा रहा है। इस सम्मेलन में देश-विदेश के अनेक भाषाविद् लिपि विशेषज्ञ एवं
विद्वान भाग लेंगे।
आज देश में विशेष रूप से पूर्वोत्तर भारत में ऐसी अनेक
भाषा(बोलियाँ) हैं, जिनकी कोई लिपि नहीं है। नागरी लिपि परिषद् ऐसी बोलियों
को नागरी लिपि अपनाने के लिए प्रेरित करती है जिससे कि उनके साहित्य को
सुरक्षित रखा जा सके और वे देश की मुख्यधारा के साथ मिलकर विकास के पथ पर
आगे बढ़ सकें। इसी उद्देश्य से यह सम्मेलन नागालैंड में रखा गया है।
इस सम्मेलन में प्रतिष्ठित विद्वानों, लिपि-विशेषज्ञों और
भाषाविदों की उपस्थिति में मुख्य रूप से नागालैंड की लिपि रहित बोलियों के
लिए नागरी लिपि के उपयोग पर चर्चा होगी।
- हरिराम
सम्मलेन की सफलता हेतु दिव्य नर्मदा परिवार की हार्दिक शुभ कामनाएं
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nagari lipi parishad
doha salila: sanjiv
प्रयोगात्मक यमकीय दोहे:
संजीव
*
फेस न करते फेस को, छिपते फिरते नित्य
संजीव
*
फेस न करते फेस को, छिपते फिरते नित्य
बुक न करे बुक फोकटिया, पाठक सलिल अनित्य
*सर! प्राइज़ किसको मिला, अब तो खोलें राज
सरप्राइज़ हो खत्म तो, करें शेष जो काज
*
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muktika: sanjiv
मुक्तिका:
संजीव
*
मन मचला करता यह कर ले
संजीव
*
मन मचला करता यह कर ले
मन चाहा करता वह कर ले
तन खो जाए इसके पहले
नव यादों की गठरी भर ले
नव यादों की गठरी भर ले
नव अनुभव, साथी नये-नये
नव राहों पर कुछ पग धर ले
जो फूल-शूल, आनंद-खलिश
जब सहज मिले चुप रह वर ले
मिल सके न तन क्यों इसका गम
मन मिलें स्नेह दीपक बर ले
तू नहीं अगर तो और सही
जो कर थामे उसका कर ले
हैं महाकाल के अनुयायी
क्यों फ़िक्र काल की निज सर लें
बहते जाएँ निर्मल होकर
सागर-गागर निज घर कर लें
फिर वाष्प मेघ हो बरस पड़ें
फिर सलिल धार होकर तर लें ****
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बुधवार, 6 नवंबर 2013
mukatak: sanjiv
मुक्तक सलिला:
संजीव
*
*
संजीव
*
श्री सम्पत को पूजते, सभी झुककर माथ
रिद्धि-सिद्धि पति-हरिप्रिया, सदा सदय हों नाथ
चित्र गुप्त परमात्म का आत्म-आत्म में देख
प्रमुदित 'सलिल' मिला सके ह्रदय नयन मन हाथ*
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doha salila: sanjiv
दोहा सलिला:
संजीव
अ
संजीव
अ
जड़ पकड़े चेतन तजे, हो खयाल या माल
खलिश तभी आनंद हो, झूमे दे-दे ताल
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मंगलवार, 5 नवंबर 2013
shakuntala devi
कंप्यूटर को हराने वाली शकुलंता देवी (नवंबर 4, 1939 बैंगलूरु, भारत-) पर गूगल का डूडल

आपने आज गूगल खोला होगा तो आपको एक ख़ास डूडल के दर्शन हुए होंगे. इसमें
कैलकुलेटर जैसी तस्वीर में गूगल के साथ एक महिला की तस्वीर दिखी होगी. गूगल का यह डूडल समर्पित है शकुंतला देवी को जिन्हें ह्यूमन कंप्यूटर कहा जाता था. सोमवार को उनका 84वां जन्मदिन है.
अद्भुत प्रतिभा की धनी शकुंतला का मस्तिष्क किसी कैलकुलेटर से कम नहीं था.
वो चुटकियों में बड़ी बड़ी गणनाएं कर दिया करती थीं जो उन्हें ह्यूमन
कंप्यूटर कहे जाने को सार्थक करता था.
उनका नाम 1982 में ‘गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ में भी शामिल किया गया.
दिलचस्प बात यह है कि बचपन में किसी औपचारिक शिक्षा के बिना ही उनमें
चीज़ों को याद करने और संख्याओं की गणना करने की अद्भुत प्रतिभा थी.
कंप्यूटर को हरायाउनके पिता एक सर्कस में काम करते थे और उन्होंने तब अपनी
बेटी की इस प्रतिभा को पहचान लिया था जब वो सिर्फ तीन साल की थीं.
अमरीका में 1977 में शकुंतला ने कंप्यूटर से मुक़ाबला किया. इस में 188132517 का घनमूल बता कर शकुंतला देवी ने जीत हासिल की.
1980 में उन्होंने लंदन के इंपीरियल कॉलेज में स्वछंद तरीके से चुनी गईं
13 अंकों वाली दो संख्याओं 7,686,369,774,870 और 2,465,099,745,779 का
गुणनफल तुरत फुरत बता दिया.
इसी तरह लंबी लंबी गणनाओं से सबको हैरान कर
देने वाली शकुंलता पर 1988 में कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी के मनोविज्ञान
के प्रोफ़ेसर आर्थर जेंसन ने अध्ययन किया.
जेंसन ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि उनके नोटबुक पर उत्तर लिखने से पहले ही शकुंतला जबाव दे देती थीं.
इसी साल अप्रैल में शकुलंता देवी का 83 वर्ष की आयु में बंगलौर में निधन हो गया था.
Shakuntala Devi (Kannada: ಶಕುಂತಲಾ ದೇವಿ) is a calculating prodigy who was born on November 4, 1939[1] in Bangalore, India. Her father worked in a "Brahmin circus" as a trapeze and tightrope performer, and later as a lion tamer and a human cannonball.[2] Her calculating gifts first demonstrated themselves while she was doing card tricks with her father when she was three. They report she "beat" them by memorization of cards rather than by sleight of hand. By age six she demonstrated her calculation and memorization abilities at the University of Mysore.[3] At the age of eight she had success at Annamalai University by doing the same. Unlike many other calculating prodigies, for example Truman Henry Safford, her abilities did not wane in adulthood. In 1977 she extracted the 23rd root of a 201-digit number mentally. On June 18, 1980 she demonstrated the multiplication of two 13-digit numbers 7,686,369,774,870 x 2,465,099,745,779 picked at random by the Computer Department of Imperial College, London. She answered the question in 28 seconds. However, this time is more likely the time for dictating the answer (a 26-digit number) than the time for the mental calculation (the time of 28 seconds was quoted on her own website). Her correct answer was 18,947,668,177,995,426,462,773,730. This event is mentioned on page 26 of the 1995 Guinness Book of Records ISBN 0-553-56942-2. In 1977, she published the first[4] study of homosexuality in India.[5] According to Subhash Chandra's review of Ana Garcia-Arroyo's book The Construction of Queer Culture in India: Pioneers and Landmarks,[6] For Garcia-Arroyo the beginning of the debate on homosexuality in the twentieth century is made with Shakuntala Devi's book The World of Homosexuals published in 1977. [...] Shakuntala Devi's (the famous mathematician) book appeared. This book went almost unnoticed, and did not contribute to queer discourse or movement. [...] The reason for this book not making its mark was because Shakuntala Devi was famous for her mathematical wizardry and nothing of substantial import in the field of homosexuality was expected from her. Another factor for the indifference meted out to the book could perhaps be a calculated silence because the cultural situation in India was inhospitable for an open and elaborate discussion on this issue. In 2006 she has released a new book called In the Wonderland of Numbers with Orient Paperbacks which talks about a girl Neha and her fascination for numbers.
साभार: इन.कॉम
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शनिवार, 2 नवंबर 2013
kavya salila: sanjiv
काव्य सलिला:
संजीव
*
कल तक थे साथ
आज जो भी साथ नहीं हैं
हम एक दिया तो
उनकी याद में जलायें मीत
सर काट शत्रु ले गए
जिनके नमन उन्हें
हँसते समय दो अश्रु
उन्हें भी चढ़ाएं मीत.
जो लुट गयी
उस अस्मिता के पोंछ ले आँसू
जो गिर गया उठा लें
गले से लगाएं मीत.
कुटिया में अँधेरा न हो
यह सोच लें पहले
झालर के पहले
दीप में बाती जलाएं मीत.
*
संजीव
*
कल तक थे साथ
आज जो भी साथ नहीं हैं
हम एक दिया तो
उनकी याद में जलायें मीत
सर काट शत्रु ले गए
जिनके नमन उन्हें
हँसते समय दो अश्रु
उन्हें भी चढ़ाएं मीत.
जो लुट गयी
उस अस्मिता के पोंछ ले आँसू
जो गिर गया उठा लें
गले से लगाएं मीत.
कुटिया में अँधेरा न हो
यह सोच लें पहले
झालर के पहले
दीप में बाती जलाएं मीत.
*
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kavya salila
mahalakshyamashtak stotram Hindi kavyanuvaad: tadrin - sanjiv
II ॐ II
II श्री महालक्ष्यमष्टक स्तोत्र II
( मूल पाठ-तद्रिन हिंदी काव्यानुवाद-संजीव 'सलिल' )
नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते I
शंख चक्र गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोsस्तुते II१II
सुरपूजित श्रीपीठ विराजित, नमन महामाया शत-शत.
शंख चक्र कर-गदा सुशोभित, नमन महालक्ष्मी शत-शत..
नमस्ते गरुड़ारूढ़े कोलासुर भयंकरी I
सर्व पापहरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II२II
कोलाsसुरमर्दिनी भवानी, गरुड़ासीना नम्र नमन.
सरे पाप-ताप की हर्ता, नमन महालक्ष्मी शत-शत..
सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्ट भयंकरी I
सर्व दु:ख हरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II३II
सर्वज्ञा वरदायिनी मैया, अरि-दुष्टों को भयकारी.
सब दुःखहरनेवाली, नमन महालक्ष्मी शत-शत..
सिद्धि-बुद्धिप्रदे देवी भुक्ति-मुक्ति प्रदायनी I
मन्त्रमूर्ते सदा देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II४II
भुक्ति-मुक्तिदात्री माँ कमला, सिद्धि-बुद्धिदात्री मैया.
सदा मन्त्र में मूर्तित हो माँ, नमन महालक्ष्मी शत-शत..
आद्यांतर हिते देवी आदिशक्ति महेश्वरी I
योगजे योगसंभूते महालक्ष्मी नमोsस्तुते II५II
हे महेश्वरी! आदिशक्ति हे!, अंतर्मन में बसो सदा.
योग्जनित संभूत योग से, नमन महालक्ष्मी शत-शत..
स्थूल-सूक्ष्म महारौद्रे महाशक्ति महोsदरे I
महापापहरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II६II
महाशक्ति हे! महोदरा हे!, महारुद्रा सूक्ष्म-स्थूल.
महापापहारी श्री देवी, नमन महालक्ष्मी शत-शत..
पद्मासनस्थिते देवी परब्रम्ह स्वरूपिणी I
परमेशीजगन्मातर्महालक्ष्मी नमोsस्तुते II७II
कमलासन पर सदा सुशोभित, परमब्रम्ह का रूप शुभे.
जगज्जननि परमेशी माता, नमन महालक्ष्मी शत-शत..
श्वेताम्बरधरे देवी नानालंकारभूषिते I
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोsस्तुते II८II
दिव्य विविध आभूषणभूषित, श्वेतवसनधारे मैया.
जग में स्थित हे जगमाता!, नमन महालक्ष्मी शत-शत..
महा लक्ष्यमष्टकस्तोत्रं य: पठेद्भक्तिमान्नर: I
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यंप्राप्नोति सर्वदा II९II
जो नर पढ़ते भक्ति-भाव से, महालक्ष्मी का स्तोत्र.
पाते सुख धन राज्य सिद्धियाँ, नमन महालक्ष्मी शत-शत..
एककालं पठेन्नित्यं महापाप विनाशनं I
द्विकालं य: पठेन्नित्यं धन-धान्यसमन्वित: II१०II
एक समय जो पाठ करें नित, उनके मिटते पाप सकल.
पढ़ें दो समय मिले धान्य-धन, नमन महालक्ष्मी शत-शत..
त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रु विनाशनं I
महालक्ष्मीर्भवैन्नित्यं प्रसन्नावरदाशुभा II११II
तीन समय नित अष्टक पढ़िये, महाशत्रुओं का हो नाश.
हो प्रसन्न वर देती मैया, नमन महालक्ष्मी शत-शत..
II तद्रिन्कृत: श्री महालक्ष्यमष्टकस्तोत्रं संपूर्णं II
तद्रिंरचित, सलिल-अनुवादित, महालक्ष्मी अष्टक पूर्ण.
नित पढ़ श्री समृद्धि यश सुख लें, नमन महालक्ष्मी शत-शत..
********************************************
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laxmi,
mahalakshyamashtak stotra,
tadrin
गुरुवार, 31 अक्टूबर 2013
ullala salila: abhiyanta -sanjiv
उल्लाला सलिला:
संजीव
*
*
(छंद विधान १३-१३, १३-१३, चरणान्त में यति, सम चरण सम तुकांत, पदांत एक गुरु या दो लघु)
*
*
अभियंता निज सृष्टि रच, धारण करें तटस्थता।
भोग करें सब अनवरत, कैसी है भवितव्यता।।
*
*
मुँह न मोड़ते फ़र्ज़ से, करें कर्म की साधना।
जगत देखता है नहीं अभियंता की भावना।।
*
*
सूर सदृश शासन मुआ, करता अनदेखी सतत।
अभियंता योगी सदृश, कर्म करें निज अनवरत।।
*
*
भोगवाद हो गया है, सब जनगण को साध्य जब।
यंत्री कैसे हरिश्चंद्र, हो जी सकता कहें अब??
*
*
भृत्यों पर छापा पड़े, मिलें करोड़ों रुपये तो।
कुछ हजार वेतन मिले, अभियंता को क्यों कहें?
*
नेता अफसर प्रेस भी, सदा भयादोहन करें।
गुंडे ठेकेदार तो, अभियंता क्यों ना डरें??
*
समझौता जो ना करे, उसे तंग कर मारते।
यह कड़वी सच्चाई है, सरे आम दुत्कारते।।
*
हर अभियंता विवश हो, समझौते कर रहा है।
बुरे काम का दाम दे, बिन मारे मर रहा है।।
*
मिले निलम्बन-ट्रान्सफर, सख्ती से ले काम तो।
कोई न यंत्री का सगा, दोषारोपण सब करें।।
*
कुछ हजार वेतन मिले, अभियंता को क्यों कहें?
*
नेता अफसर प्रेस भी, सदा भयादोहन करें।
गुंडे ठेकेदार तो, अभियंता क्यों ना डरें??
*
समझौता जो ना करे, उसे तंग कर मारते।
यह कड़वी सच्चाई है, सरे आम दुत्कारते।।
*
हर अभियंता विवश हो, समझौते कर रहा है।
बुरे काम का दाम दे, बिन मारे मर रहा है।।
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मिले निलम्बन-ट्रान्सफर, सख्ती से ले काम तो।
कोई न यंत्री का सगा, दोषारोपण सब करें।।
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बुधवार, 30 अक्टूबर 2013
geet; andhera dhara par -sanjiv
जलो दीप बनकर अमावस में ऐसे
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए…
*
गीत:
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए…
संजीव
*
पलो आँख में स्वप्न बनकर सदा तुम
नयन-जल में काजल कहीं बह न जाए.जलो दीप बनकर अमावस में ऐसे
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए…
*
अपनों ने अपना सदा रंग दिखाया,
न नपनों ने नपने को दिल में बसाया.
लगन लग गयी तो अगन ही सगन को
सहन कर न पायी पलीता लगाया.
दिलवर का दिल वर लो, दिल में छिपा लो
जले दिलजले जलजले आ न पाए...
*
कुटिया ही महलों को देती उजाला
कंकर के शंकर को पूजे शिवाला.
मुट्ठी बँधी बाँधती कर्म-बंधन
खोलो न मोले तनिक काम-कंचन.
बहो, जड़ बनो मत शिलाओं सरीखे
नरमदा सपरना न मन भूल जाए...
*
सहो पीर धर धीर बनकर फकीरा
जले दिलजले जलजले आ न पाए...
*
कुटिया ही महलों को देती उजाला
कंकर के शंकर को पूजे शिवाला.
मुट्ठी बँधी बाँधती कर्म-बंधन
खोलो न मोले तनिक काम-कंचन.
बहो, जड़ बनो मत शिलाओं सरीखे
नरमदा सपरना न मन भूल जाए...
*
सहो पीर धर धीर बनकर फकीरा
तभी हो सको सूर मीरा कबीरा.
पढ़ो ढाई आखर, नहा स्नेह-सागर
भरो फेफड़ों में सुवासित समीरा.
मगन हो गगन को निहारो, सुनाओ
'सलिल' नाद अनहद कहीं खो जाए...
*
सगन = शगुन, जलजला = भूकंप, नरमदा = नर्मदा, सपरना = स्नान करना
*
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मंगलवार, 29 अक्टूबर 2013
tribhangi chhand - sanjiv
त्रिभंगी सलिला:
हम हैं अभियंता
संजीव
*
*
(छंद विधान: १० ८ ८ ६ = ३२ x ४)
*
*
हम हैं अभियंता नीति नियंता, अपना देश सँवारेंगे
हर संकट हर हर मंज़िल वरकर, सबका भाग्य निखारेंगे
पथ की बाधाएँ दूर हटाएँ, खुद को सब पर वारेंगे
भारत माँ पावन जन मन भावन, सीकर चरण पखारेंगे
*
*
अभियंता मिलकर आगे चलकर, पथ दिखलायें जग देखे
कंकर को शंकर कर दें हँसकर मंज़िल पाएं कर लेखे
शशि-मंगल छूलें, धरा न भूलें, दर्द दीन का हरना है
आँसू न बहायें , जन-गण गाये, पंथ वही तो वरना है
*
*
श्रम-स्वेद बहाकर, लगन लगाकर, स्वप्न सभी साकार करें
गणना कर परखें, पुनि-पुनि निरखें, त्रुटि न तनिक भी कहीं वरें
उपकरण जुटायें, यंत्र बनायें, नव तकनीक चुनें न रुकें
आधुनिक प्रविधियाँ, मनहर छवियाँ, उन्नत देश करें न चुकें
*
*
नव कथा लिखेंगे, पग न थकेंगे, हाथ करेंगे काम काम सदा
किस्मत बदलेंगे, नभ छू लेंगे, पर न कहेंगे 'यही बदा'
प्रभु भू पर आयें, हाथ बटायें, अभियंता संग-साथ रहें
श्रम की जयगाथा, उन्नत माथा, सत नारायण कथा कहें
श्रम की जयगाथा, उन्नत माथा, सत नारायण कथा कहें
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vimarsh: rough- fair -S.N.Sharma 'kamal' -sanjiv
विमर्श :

आ० आचार्य जी , निम्नलिखित वाक्य में रफ और फेयर के लिए हिंदी के शब्द क्या होंगे ?
यह रफ लिखा है इसे फेयर करना है "
रफ-फेयर के लिए कच्चा-पक्का का उपयोग मुझे कम रुचता है
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harigitika: abhiyantriki -sanjiv
हरिगीतिका सलिला
संजीव
*
*
(छंद विधान: १ १ २ १ २ x ४, पदांत लघु गुरु, चौकल पर जगण निषिद्ध, तुक दो-दो चरणों पर, यति १६-१२ या १४-१४ या ७-७-७-७ पर)
*
कण जोड़ती, तृण तोड़ती, पथ मोड़ती, अभियांत्रिकी *
बढ़ती चले, चढ़ती चले, गढ़ती चले, अभियांत्रिकी
उगती रहे, पलती रहे, खिलती रहे, अभियांत्रिकी
रचती रहे, बसती रहे, सजती रहे, अभियांत्रिकी
*
*
नव रीत भी, नव गीत भी, संगीत भी, तकनीक है
कुछ हार है, कुछ प्यार है, कुछ जीत भी, तकनीक है
गणना नयी, रचना नयी, अव्यतीत भी, तकनीक है
श्रम मंत्र है, नव यंत्र है, सुपुनीत भी तकनीक है
*
*
यह देश भारत वर्ष है, इस पर हमें अभिमान है
कर दें सभी मिल देश का, निर्माण यह अभियान है
गुणयुक्त हों अभियांत्रिकी, श्रम-कोशिशों का गान है
परियोजना त्रुटिमुक्त हो, दुनिया कहे प्रतिमान है
*
*
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सोमवार, 28 अक्टूबर 2013
chitr par kavita: kundali -sanjiv


प्रथम पेट पूजा करें, लक्ष्मी-पूजन बाद
मुँह में पानी आ रहा, सोच मिले कब स्वाद
सोच मिले कब स्वाद, भोग पहले खुद खा ले
दास राम का अधिक, राम से यह दिखला दे
कहे 'सलिल' कविराय, न चूकेंगे अवसर हम
बन घोटाला वीर, लगायें भोग खुद प्रथम
pratham pet pooja karen , lakshami poojan baad
munh men pani aa raha, soch mile kab swad
soch mile kab swad, bhog pahle khud khaa le
चित्र पर कविता: कुंडली
प्रथम पेट पूजा करें
प्रथम पेट पूजा करें
संजीव


प्रथम पेट पूजा करें, लक्ष्मी-पूजन बाद
मुँह में पानी आ रहा, सोच मिले कब स्वाद
सोच मिले कब स्वाद, भोग पहले खुद खा ले
दास राम का अधिक, राम से यह दिखला दे
कहे 'सलिल' कविराय, न चूकेंगे अवसर हम
बन घोटाला वीर, लगायें भोग खुद प्रथम
pratham pet pooja karen , lakshami poojan baad
munh men pani aa raha, soch mile kab swad
soch mile kab swad, bhog pahle khud khaa le
daas ram ka adhik ram se, yah dikhla de
kahe 'salil' kaviraay, n chookenge avsar hm
ban ghotala veer, lagayen bhog khud pratham
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