हरिगीतिका सलिला
संजीव
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(छंद विधान: १ १ २ १ २ x ४, पदांत लघु गुरु, चौकल पर जगण निषिद्ध, तुक दो-दो चरणों पर, यति १६-१२ या १४-१४ या ७-७-७-७ पर)
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कण जोड़ती, तृण तोड़ती, पथ मोड़ती, अभियांत्रिकी *
बढ़ती चले, चढ़ती चले, गढ़ती चले, अभियांत्रिकी
उगती रहे, पलती रहे, खिलती रहे, अभियांत्रिकी
रचती रहे, बसती रहे, सजती रहे, अभियांत्रिकी
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नव रीत भी, नव गीत भी, संगीत भी, तकनीक है
कुछ हार है, कुछ प्यार है, कुछ जीत भी, तकनीक है
गणना नयी, रचना नयी, अव्यतीत भी, तकनीक है
श्रम मंत्र है, नव यंत्र है, सुपुनीत भी तकनीक है
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यह देश भारत वर्ष है, इस पर हमें अभिमान है
कर दें सभी मिल देश का, निर्माण यह अभियान है
गुणयुक्त हों अभियांत्रिकी, श्रम-कोशिशों का गान है
परियोजना त्रुटिमुक्त हो, दुनिया कहे प्रतिमान है
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Sanjiv verma 'Salil'
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7 टिप्पणियां:
achal verma
हार्दिक शुभकामनाएँ ।
वैसे तो आपकी सभी रचनाएँ ही उच्चकोटि की होती है
उनमे भी इनका स्थान उपर होगा । स्वदेश की उन्नति के लिए हर भारतीय
कटिबद्ध रहे तो सफ़लता निश्चित है ॥ .....अचल.....
Shriprakash Shukla द्वारा yahoogroups.com
आदरणीय आचार्य जी ,
अति सुन्दर। क्या ऐसा भी लिखा जा सकता है?
अच्छा लिखा, सच्चा लिखा, पढ़ा तो मन, को भा गया (७,७,७,७,)
हर गीतिका का ये सृजन, मन को मेरे लुभा गया (१४,१४)
सिर खुजाया, याद आया, देखा इसे, तो है कहीं (७,७,७,७,)
कवि श्रेष्ठ तुलसीदास ने, निश्चित लिखा होगा कहीं (१४,१४)
सादर
श्रीप्रकाश शुक्ल
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Web:http://bikhreswar.blogspot.com/
माननीय
वंदे मातरम।
निम्न विमर्श एक मंदबुद्धि विद्यार्थी के नाते कर रहा हूँ. विद्वानों से जानी-अनजानी, देखी-अनदेखी भूलों तथा पाठ्य पुस्तकों में अवर्णित के उल्लेख हेतु क्षमा प्रार्थना के साथ निवेदन है कि गोस्वामी जी को हरिगीतिका छंद पर पूर्ण अधिकार था. मानस में अनेक प्रसंगों में यह छंद प्रयुक्त हुआ है. देखिये:
हरिगीतिका = १ १२१ x ४ = २८
श्री रामचन्द्र कृपालु भज मन हरण भव भय दारुणं = २८
नव कंज लोचन कंज मुख कर कंज पद कंजारुणं = २८
कंदर्प अगणित अमित छवि नव नील नीरज सुंदरं = २८
पट पीत मानहु तड़ित रूचि शुचि नवमी जनकसुता वरं = २९
अंतिम पंक्ति में नवमी में 'मी' का उच्चारण 'मि' है. गोस्वामी जी ने दो लघु क्को गुरु और गुरु को दो लघु करने कि छूट इस प्रकार ली है कि लय भंग न हो. अंतिम पंक्ति में दीर्घ 'मी' का लघु 'मि' उच्चारण अपवाद है, खटकता नहीं है किन्तु हम-आप ऐसा करें तो यह पिंगल की दृष्टि से दोष कहा जायेगा।
मानस से ही विविध प्रसंगों में प्रयुक्त कुछ अन्य पंक्तियाँ:
दुंदुभि जय धुनि वेद धुनि नभ, नगर कौतूहल भले = २७
यहाँ दुंदुभि का उच्चारण दुंदुभी होता है तब २८ मात्राएँ होती हैं.
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जननिहि बहुरि मिलि चलीं उचित असीस सब काहू दई = २८
यहाँ यति लीक से हटकर है, 'चलीं' पर अटकाव अनुभव होता है,'
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करुना निधा/न सुजान सी/ल सनेह जा/नत रावरो = २८
यति १५ पर
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इहि के ह्रदय बस जानकी जानकी उर मम बास है = २८
यति १६ पर
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केशवदास भी हरिगीतिका में सिद्धहस्त रहे हैं:
तब तासु छबि मद छक्यो अर्जुन हत्यो ऋषि जमदग्नि जू = ३०
यहाँ 'छक्यो' तथा 'हत्यों' को दो लघु या एक दीर्घ मात्रा की समयावधि में उच्चरित करना होगा। यति १७ पर
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अति किधौं सरित सुदेस मेरी करी दिवि खेलत भई = २८
यति १६ मात्रा पर
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भुँइ चलत लटपट गिरत पुनि उठि हँसत खिलखिल रघुपती = २८
'रघुपति' को 'रघुपती' करने पर २८ मात्राएँ
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अधिक जानकारी हेतु प्राकृत पैंगलम, छन्दार्णव, छंद प्रभाकर, हिंदी छन्दोलक्षण आदि ग्रन्थ देखे जा सकते हैं. इनमें गति-यति को लेकर मत-मतान्तर बहुत हैं. तत्कालीन भाषा और रचनाकार के परिवेश ने यह भिन्नता उत्पन्न की है. मुझे लगता है कि वर्त्तमान परिस्थितियों और भाषिक परिवर्तनों को देखते हुए छंद की लय को मुख्य आधार मानकर अन्य नियमों को शिथिल करना चाहिए ताकि नई कलमें इन्हें आजमाती रहें अन्यथा समय के अभाव और दुष्कर होने पर रूचि के अभाव में युवा इनसे दूर हो जायेंगे। *
आपका प्रयास सम्भवतः प्रथम है, सराहनीय है. कहीं-कहीं लय में अटकाव है. उक्त पंक्तियों कोको बार-बार गुनगुनाइए तथा उसी लय (तर्ज) में अपनी पंक्तियों को गुनगुनाइए , कोई शब्द अटकता लगे तो बदलकर सहज-सार्थक शब्द रखें। धीरे-धीर निर्दोष छंद बन जाता है.
हरिगीतिका परिवार से जुड़ने हेतु बधाई।
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'
sn Sharma द्वारा yahoogroups.com
आ० आचार्य जी ,
हरगीतिका छंदों को उसके विधान और उदाहरण के साथ प्रस्तुत करने
के लिए आपको साधुवाद । रचना के साथ उसकी विशद व्याकरणीय
विवेचना भी पाठकों को मिलने से ज्ञानार्जन में वृद्धि होती है । आपकी
लेखनी को पुनः नमन ।
सादर,
कमल
- munshiravi@gmail.com
हम इंजीनियरिंग से जुड़े सभी व्यक्तियों के लिये यह प्रेणनादायक रचना के लिये सलिल जी को कोटि कोटि धन्यवाद। धन्यवाद स्वीकार करें।
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Ravindra Munshi
- vijay3@comcast.net
संजीव जी,
हरिगीतिका का ज्ञान देने के लिए और उदाहरण देने के लिए धन्यवाद।
गीत बहुत अच्छा लगा।
विजय
- munshiravi@gmail.com
हम इंजीनियरिंग से जुड़े सभी व्यक्तियों के लिये यह प्रेणनादायक रचना के लिये सलिल जी को कोटि कोटि धन्यवाद। धन्यवाद स्वीकार करें।
--
Ravindra Munshi
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