गीतिका
तितलियाँ
संजीव 'सलिल'
*
यादों की बारात तितलियाँ.
कुदरत की सौगात तितलियाँ..
बिरले जिनके कद्रदान हैं.
दर्द भरे नग्मात तितलियाँ..
नाच रहीं हैं ये बिटियों सी
शोख-जवां ज़ज्बात तितलियाँ..
बद से बदतर होते जाते.
जो, हैं वे हालात तितलियाँ..
कली-कली का रस लेती पर
करें न धोखा-घात तितलियाँ..
हिल-मिल रहतीं नहीं जानतीं
क्या हैं शाह औ' मात तितलियाँ..
'सलिल' भरोसा कर ले इन पर
हुईं न आदम-जात तितलियाँ..
*********************************
Acharya Sanjiv Salil
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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रविवार, 3 जनवरी 2010
गीतिका: तितलियाँ --संजीव 'सलिल'
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सरस्वती वंदना : 1 अम्ब विमल मति दे संजीव 'सलिल'
सरस्वती वंदना : 1
संजीव 'सलिल'
अम्ब विमल मति दे
हे हंस वाहिनी! ज्ञानदायिनी!!
अम्ब विमल मति दे.....
नन्दन कानन हो यह धरती।
पाप-ताप जीवन का हरती।
हरियाली विकसे.....
बहे नीर अमृत सा पावन।
मलयज शीतल शुद्ध सुहावन।
अरुण निरख विहसे.....
कंकर से शंकर गढ़ पायें।
हिमगिरि के ऊपर चढ़ जाएँ।
वह बल-विक्रम दे.....
हरा-भरा हो सावन-फागुन।
रम्य ललित त्रैलोक्य लुभावन।
सुख-समृद्धि सरसे.....
नेह-प्रेम से राष्ट्र सँवारें।
स्नेह समन्वय मन्त्र उचारें।
' सलिल' विमल प्रवहे.....
************************
Acharya Sanjiv Salil
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संजीव 'सलिल'
अम्ब विमल मति दे
हे हंस वाहिनी! ज्ञानदायिनी!!
अम्ब विमल मति दे.....
नन्दन कानन हो यह धरती।
पाप-ताप जीवन का हरती।
हरियाली विकसे.....
बहे नीर अमृत सा पावन।
मलयज शीतल शुद्ध सुहावन।
अरुण निरख विहसे.....
कंकर से शंकर गढ़ पायें।
हिमगिरि के ऊपर चढ़ जाएँ।
वह बल-विक्रम दे.....
हरा-भरा हो सावन-फागुन।
रम्य ललित त्रैलोक्य लुभावन।
सुख-समृद्धि सरसे.....
नेह-प्रेम से राष्ट्र सँवारें।
स्नेह समन्वय मन्त्र उचारें।
' सलिल' विमल प्रवहे.....
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Acharya Sanjiv Salil
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शनिवार, 2 जनवरी 2010
गीतिका: तुमने कब चाहा दिल दरके? --संजीव वर्मा 'सलिल'
गीतिका
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
तुमने कब चाहा दिल दरके?
हुए दिवाने जब दिल-दर के।
जिन पर हमने किया भरोसा
वे निकले सौदाई जर के..
राज अक्ल का नहीं यहाँ पर
ताज हुए हैं आशिक सर के।
नाम न चाहें काम करें चुप
वे ही जिंदा रहते मर के।
परवाजों को कौन नापता?
मुन्सिफ हैं सौदाई पर के।
चाँद सी सूरत घूँघट बादल
तृप्ति मिले जब आँचल सरके.
'सलिल' दर्द सह लेता हँसकर
सहन न होते अँसुआ ढरके।
**********************
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
तुमने कब चाहा दिल दरके?
हुए दिवाने जब दिल-दर के।
जिन पर हमने किया भरोसा
वे निकले सौदाई जर के..
राज अक्ल का नहीं यहाँ पर
ताज हुए हैं आशिक सर के।
नाम न चाहें काम करें चुप
वे ही जिंदा रहते मर के।
परवाजों को कौन नापता?
मुन्सिफ हैं सौदाई पर के।
चाँद सी सूरत घूँघट बादल
तृप्ति मिले जब आँचल सरके.
'सलिल' दर्द सह लेता हँसकर
सहन न होते अँसुआ ढरके।
**********************
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करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
शुक्रवार, 1 जनवरी 2010
नए वर्ष तुम्हारा स्वागत क्यों करुँ ...?
एक कविता:
नया वर्ष:
*
रस्म अदायगी के लिए
भेज देतें हैं लोग चंद एस एम एस
तुम्हारे आने की खुशियाँ इस लिए मनातें हैं क्योंकि
इस रस्म को निबाहना भी ज़रूरी है
किसी किसी की मज़बूरी है
किन्तु मैं नए वर्ष तुम्हारा स्वागत क्यों करुँ ...?
अनावश्यक आभासी रस्मों में रंग क्यों भरूँ ?
पहले तुम्हें आजमाऊंगा
कोई कसाबी-वृत्ति से विश्व को मुक्त करते हो तो
तो मैं हर इंसान से एक दूसरे को बधाई संदेशे भिजवाउंगा
खुद सबके बीच जाकर जश्न तुम्हारी कामयाबी का मनाऊँगा
तुम सियासत का चेहरा धो दोगे न ?
तुम न्याय ज़ल्द दिला दोगे न ?
तुम मज़दूर मज़बूर के चेहरे पर मुस्कान सजा दोगे न ?
तुम विश्व बंधुत्व की अलख जगा दोगे न ?
यदि ये सब करोगे तो शायद मैं आखरी दिन
31 /12 /2010 को रात अपनी बेटी के जन्म दिन के साथ
तुम्हें आभार कहूँगा....!
तुम्हारे लिए बिदाई गीत गढ़ूंगा !!
तुम विश्वास तो भरो
मेरी कृतज्ञता का इंतज़ार करो ?
********
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में।
शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी
छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन
सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर
गुरुवार, 31 दिसंबर 2009
काव्यांजलि : शुभकामनायें सभी को... संजीव वर्मा 'सलिल'
शुभकामनायें सभी को...
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
शुभकामनायें सभी को, आगत नवोदित साल की,
शुभ की करें सब साधना, चाहत समय खुशहाल की।
शुभ 'सत्य' होता स्मरण कर, आत्म अवलोकन करें,
शुभ प्राप्य तब जब स्वेद-सीकर राष्ट्र को अर्पण करें।
शुभ 'शिव' बना, हमको गरल के पान की सामर्थ्य दे,
शुभ सृजन कर, कंकर से शंकर, भारती को अर्घ्य दें।
शुभ वही 'सुन्दर' जो जनगण को मृदुल मुस्कान दे,
शुभ वही स्वर, कंठ हर अवरुद्ध को जो ज्ञान दे।
शुभ तंत्र 'जन' का तभी जब हर आँख को अपना मिले,
शुभ तंत्र 'गण' का तभी जब साकार हर सपना मिले।
शुभ तंत्र वह जिसमें, 'प्रजा' राजा बने, चाकर नहीं,
शुभ तंत्र रच दे 'लोक' नव, मिलकर- मदद पाकर नहीं।
शुभ चेतना की वंदना, दायित्व को पहचान लें,
शुभ जागृति की प्रार्थना, कर्त्तव्य को सम्मान दें।
शुभ अर्चना अधिकार की, होकर विनत दे प्यार लें,
शुभ भावना बलिदान की, दुश्मन को फिर ललकार दें।
शुभ वर्ष नव आओ! मिली निर्माण की आशा नयी,
शुभ काल की जयकार हो, पुष्पा सके भाषा नयी।
शुभ किरण की सुषमा, बने 'मावस भी पूनम अब 'सलिल',
शुभ वरण राजिव-चरण धर, क्षिप्रा बने जनमत विमल।
शुभ मंजुला आभा उषा, विधि भारती की आरती,
शुभ कीर्ति मोहिनी दीप्तिमय, संध्या-निशा उतारती।
शुभ नर्मदा है नेह की, अवगाह देह विदेह हो,
शुभ वर्मदा कर गेह की, किंचित नहीं संदेह हो।
शुभ 'सत-चित-आनंद' है, शुभ नाद लय स्वर छंद है,
शुभ साम-ऋग-यजु-अथर्वद, वैराग-राग अमंद है।
शुभ करें अंकित काल के इस पृष्ट पर, मिलकर सभी,
शुभ रहे वन्दित कल न कल, पर आज इस पल औ' अभी।
शुभ मन्त्र का गायन- अजर अक्षर अमर कविता करे,
शुभ यंत्र यह स्वाधीनता का, 'सलिल' जन-मंगल वरे।
*
प्रेषक : आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
शुभकामनायें सभी को, आगत नवोदित साल की,
शुभ की करें सब साधना, चाहत समय खुशहाल की।
शुभ 'सत्य' होता स्मरण कर, आत्म अवलोकन करें,
शुभ प्राप्य तब जब स्वेद-सीकर राष्ट्र को अर्पण करें।
शुभ 'शिव' बना, हमको गरल के पान की सामर्थ्य दे,
शुभ सृजन कर, कंकर से शंकर, भारती को अर्घ्य दें।
शुभ वही 'सुन्दर' जो जनगण को मृदुल मुस्कान दे,
शुभ वही स्वर, कंठ हर अवरुद्ध को जो ज्ञान दे।
शुभ तंत्र 'जन' का तभी जब हर आँख को अपना मिले,
शुभ तंत्र 'गण' का तभी जब साकार हर सपना मिले।
शुभ तंत्र वह जिसमें, 'प्रजा' राजा बने, चाकर नहीं,
शुभ तंत्र रच दे 'लोक' नव, मिलकर- मदद पाकर नहीं।
शुभ चेतना की वंदना, दायित्व को पहचान लें,
शुभ जागृति की प्रार्थना, कर्त्तव्य को सम्मान दें।
शुभ अर्चना अधिकार की, होकर विनत दे प्यार लें,
शुभ भावना बलिदान की, दुश्मन को फिर ललकार दें।
शुभ वर्ष नव आओ! मिली निर्माण की आशा नयी,
शुभ काल की जयकार हो, पुष्पा सके भाषा नयी।
शुभ किरण की सुषमा, बने 'मावस भी पूनम अब 'सलिल',
शुभ वरण राजिव-चरण धर, क्षिप्रा बने जनमत विमल।
शुभ मंजुला आभा उषा, विधि भारती की आरती,
शुभ कीर्ति मोहिनी दीप्तिमय, संध्या-निशा उतारती।
शुभ नर्मदा है नेह की, अवगाह देह विदेह हो,
शुभ वर्मदा कर गेह की, किंचित नहीं संदेह हो।
शुभ 'सत-चित-आनंद' है, शुभ नाद लय स्वर छंद है,
शुभ साम-ऋग-यजु-अथर्वद, वैराग-राग अमंद है।
शुभ करें अंकित काल के इस पृष्ट पर, मिलकर सभी,
शुभ रहे वन्दित कल न कल, पर आज इस पल औ' अभी।
शुभ मन्त्र का गायन- अजर अक्षर अमर कविता करे,
शुभ यंत्र यह स्वाधीनता का, 'सलिल' जन-मंगल वरे।
*
प्रेषक : आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
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करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
बुधवार, 30 दिसंबर 2009
नव वर्ष पर नवगीत: महाकाल के महाग्रंथ का --संजीव 'सलिल'
नव वर्ष पर नवगीत
संजीव 'सलिल'
*
महाकाल के महाग्रंथ का
नया पृष्ठ फिर आज खुल रहा....
*
वह काटोगे,
जो बोया है.
वह पाओगे,
जो खोया है.
सत्य-असत, शुभ-अशुभ तुला पर
कर्म-मर्म सब आज तुल रहा....
*
खुद अपना
मूल्यांकन कर लो.
निज मन का
छायांकन कर लो.
तम-उजास को जोड़ सके जो
कहीं बनाया कोई पुल रहा?...
*
तुमने कितने
बाग़ लगाये?
श्रम-सीकर
कब-कहाँ बहाए?
स्नेह-सलिल कब सींचा?
बगिया में आभारी कौन गुल रहा?...
*
स्नेह-साधना करी
'सलिल' कब.
दीन-हीन में
दिखे कभी रब?
चित्रगुप्त की कर्म-तुला पर
खरा कौन सा कर्म तुल रहा?...
*
खाली हाथ?
न रो-पछताओ.
कंकर से
शंकर बन जाओ.
ज़हर पियो, हँस अमृत बाँटो.
देखोगे मन मलिन धुल रहा...
**********************
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संजीव 'सलिल'
*
महाकाल के महाग्रंथ का
नया पृष्ठ फिर आज खुल रहा....
*
वह काटोगे,
जो बोया है.
वह पाओगे,
जो खोया है.
सत्य-असत, शुभ-अशुभ तुला पर
कर्म-मर्म सब आज तुल रहा....
*
खुद अपना
मूल्यांकन कर लो.
निज मन का
छायांकन कर लो.
तम-उजास को जोड़ सके जो
कहीं बनाया कोई पुल रहा?...
*
तुमने कितने
बाग़ लगाये?
श्रम-सीकर
कब-कहाँ बहाए?
स्नेह-सलिल कब सींचा?
बगिया में आभारी कौन गुल रहा?...
*
स्नेह-साधना करी
'सलिल' कब.
दीन-हीन में
दिखे कभी रब?
चित्रगुप्त की कर्म-तुला पर
खरा कौन सा कर्म तुल रहा?...
*
खाली हाथ?
न रो-पछताओ.
कंकर से
शंकर बन जाओ.
ज़हर पियो, हँस अमृत बाँटो.
देखोगे मन मलिन धुल रहा...
**********************
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मंगलवार, 29 दिसंबर 2009
नव गीत : ओढ़ कुहासे की चादर... --संजीव 'सलिल'
नव गीत : संजीव 'सलिल'
ओढ़ कुहासे की चादर,
धरती लगाती दादी.
ऊँघ रहा सतपुडा,
लपेटे मटमैली खादी...
सूर्य अँगारों की सिगडी है,
ठण्ड भगा ले भैया.
श्वास-आस संग उछल-कूदकर
नाचो ता-ता थैया.
तुहिन कणों को हरित दूब,
लगती कोमल गादी...
कुहरा छाया संबंधों पर,
रिश्तों की गरमी पर.
हुए कठोर आचरण अपने,
कुहरा है नरमी पर.
बेशरमी नेताओं ने,
पहनी-ओढी-लादी...
नैतिकता की गाय काँपती,
संयम छत टपके.
हार गया श्रम कोशिश कर,
कर बार-बार अबके.
मूल्यों की ठठरी मरघट तक,
ख़ुद ही पहुँचा दी...
भावनाओं को कामनाओं ने,
हरदम ही कुचला.
संयम-पंकज लालसाओं के
पंक-फँसा, फिसला.
अपने घर की अपने हाथों
कर दी बर्बादी...
बसते-बसते उजड़ी बस्ती,
फ़िर-फ़िर बसना है.
बस न रहा ख़ुद पर तो,
परबस 'सलिल' तरसना है.
रसना रस ना ले, लालच ने
लज्जा बिकवा दी...
हर 'मावस पश्चात्
पूर्णिमा लाती उजियारा.
मृतिका दीप काटता तम् की,
युग-युग से कारा.
तिमिर पिया, दीवाली ने
जीवन जय गुंजा दी...
*****
ओढ़ कुहासे की चादर,
धरती लगाती दादी.
ऊँघ रहा सतपुडा,
लपेटे मटमैली खादी...
सूर्य अँगारों की सिगडी है,
ठण्ड भगा ले भैया.
श्वास-आस संग उछल-कूदकर
नाचो ता-ता थैया.
तुहिन कणों को हरित दूब,
लगती कोमल गादी...
कुहरा छाया संबंधों पर,
रिश्तों की गरमी पर.
हुए कठोर आचरण अपने,
कुहरा है नरमी पर.
बेशरमी नेताओं ने,
पहनी-ओढी-लादी...
नैतिकता की गाय काँपती,
संयम छत टपके.
हार गया श्रम कोशिश कर,
कर बार-बार अबके.
मूल्यों की ठठरी मरघट तक,
ख़ुद ही पहुँचा दी...
भावनाओं को कामनाओं ने,
हरदम ही कुचला.
संयम-पंकज लालसाओं के
पंक-फँसा, फिसला.
अपने घर की अपने हाथों
कर दी बर्बादी...
बसते-बसते उजड़ी बस्ती,
फ़िर-फ़िर बसना है.
बस न रहा ख़ुद पर तो,
परबस 'सलिल' तरसना है.
रसना रस ना ले, लालच ने
लज्जा बिकवा दी...
हर 'मावस पश्चात्
पूर्णिमा लाती उजियारा.
मृतिका दीप काटता तम् की,
युग-युग से कारा.
तिमिर पिया, दीवाली ने
जीवन जय गुंजा दी...
*****
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गीतिका: वक्त और हालात की बातें --संजीव 'सलिल'
गीतिका
संजीव 'सलिल'
वक्त और हालात की बातें
खालिस शह औ' मात की बातें..
दिलवर सुन ले दिल कहता है .
अनकहनी ज़ज्बात की बातें ..
मिलीं भरोसे को बदले में,
महज दगा-छल-घात की बातें..
दिन वह सुनने से भी डरता
होती हैं जो रात की बातें ..
क़द से बहार जब भी निकलो
मत भूलो औकात की बातें ..
खिदमत ख़ुद की कर लो पहले
तब सोचो खिदमात की बातें ..
'सलिल' मिले दीदार उसी को
जो करता है जात की बातें..
***************
संजीव 'सलिल'
वक्त और हालात की बातें
खालिस शह औ' मात की बातें..
दिलवर सुन ले दिल कहता है .
अनकहनी ज़ज्बात की बातें ..
मिलीं भरोसे को बदले में,
महज दगा-छल-घात की बातें..
दिन वह सुनने से भी डरता
होती हैं जो रात की बातें ..
क़द से बहार जब भी निकलो
मत भूलो औकात की बातें ..
खिदमत ख़ुद की कर लो पहले
तब सोचो खिदमात की बातें ..
'सलिल' मिले दीदार उसी को
जो करता है जात की बातें..
***************
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करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
लेख: भू गर्भीय हलचल और भूकंपीय श्रंखला -प्रो. विनय कुमार श्रीवास्तव
विशेष आलेख:
भू गर्भीय हलचल और भूकंपीय श्रंखला : एक दृष्टिकोण
प्रो. विनय कुमार श्रीवास्तव, अध्यक्ष, इन्डियन जिओटेक्निकल सोसायटी जबलपुर चैप्टर
विश्व में कहीं न कहीं दो-चार दिनों के अंतराल में छोटे-बड़े भूकंप आते रहते हैं किन्तु भारत के मध्यवर्ती क्षेत्र जिसे सुरक्षित क्षेत्र (शील्ड एरिया) मन जाता है, में भूकम्पों की आवृत्ति भू वैज्ञानिक दृष्टि से अजूबा होने के साथ-साथ चिंता का विषय है. दिनाँक २२ मई १९९७ को आये भीषण भूकंप के बाद १७ अक्टूबर को ५.२ शक्ति के भूकंप ने नर्मदा घाटी में जबलपुर के समीपवर्ती क्षेत्र को भूकंप संवेदी बना दिया है. गत वर्षों में आये ५ भूकम्पों से ऐसा प्रतीत होता है कि १९९७ के भूकंप को छोड़कर उत्तरोत्तर बढ़ती भूकंपीय आवृत्ति का पैटर्न भावी विनाशक भूकंप की पूर्व सूचना तो नहीं है?
विशव में अन्यत्र आ रहे भूकम्पों पर दृष्टिपात करें तो विदित होता है कि गत ४ वर्षों से भूकंपीय गतिविधियाँ दक्षिण-पूर्व एशिया में केन्द्रित हैं. विश्व के अन्य बड़े महाद्वीपों यथा अफ्रीका, उत्तर अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अमेरिका तथा यूंरेशिया आदि में केवल १-२ बड़े भूक्न्म आये हैं जबकि भारत, चीन. जापान. ईराक, ईरान, तुर्की, ताइवान, फिल्लिपींस, न्यूजीलैंड्स, एवं इंडोनेशिया में प्रति २-३ दिनों के अन्तराल में कहीं न कहीं एक बड़ा भूकम्प आ जाता है या एक ज्वालामुखी फूट पड़ता है. यहाँ तक कि हिंद महासागर में एक नए द्वीप नव भी जन्म ले लिया है.
दक्षिणी-पूर्व एशिया की भू-गर्भीय हलचलें अब जापान, ताइवान एवं भारत में होनेवाली भूकंपीय गतिविधियों में केन्द्रित हैं. दक्षिण ताइवान में ४ अप्रैल को आये भूकंप (५.२) से प्रारंभ करें तो ५ अप्रैल को माउंट एटनाविध्वंसक विस्फोट के साथ सक्रिय हुआ. इसके साथ ही भारत में ७, ११ एवं २७ अप्रैल को क्रमशः महाराष्ट्र, त्रिपुरा एवं शिमला में तथा २ मई को छिंदवाड़ा में भूकंप के झटके महसूस किये गए. २५ मई को कोयना में झटके आये तथा २६ मई को नए द्वीप का जन्म हुआ. दिनांक ३.६.२०० को सुमात्रा में ७.९ तीव्रता का भूकंप आया. ५.६.२००० को तुर्की में ५.९ तीव्रता का, ७ व ८ जून को क्रमशः जापान (४.४), म्यांमार (६.५), अरुणांचल (५.८), सुमात्रा (६.२) तथा १०-११ जून को ताइवान(६.७) व (५.०) तीव्रता के भूकम्पों ने दिल दहला दिया.
इसके अतिरिक्त १६ से २० जून के बीच ७.५ से ४.९ तीव्रता के भूकम्पों की एक लम्बी श्रंखला कोकस आईलैंड्स, इंडोनेशिया, ताइवान, मनीला, लातूर, शोलापुर, उस्मानाबाद आदि स्थानों में रही. २३.६.२०० नागपुर एवं चंद्रपुर (२.८) २५.६.२००० जापान (५.६) के अतिरिक्त इम्फाल, शिलोंग, व म्यांमार (४.२) में भी भूकप का झटके कहर ढाते रहे.
५ जुलाई २००० को जापान में ४ झटके, ७ जुलाई को भारत में खरगौन तथा ८ जुलाई को जापान में ज्वालामुखीय उदगार, ११ जुलाई को जापान में बड़ा भूकंप, १३ जुलाई को जापान में बड़ा सक्रिय ज्वाला मुखी १८ से २४ जुलाई तक जापान में २, ताईवान में ३ एवं एवं इंडोनेशिया में १ भूकंप दर्ज हुआ जिसके साथ भारत में पंधाना, भावनगर एवं कराड में झटके महसूस किये गए. २ अगस्त को उत्तरी जापान में तीसरा ज्वालामुखी सक्रिय रहा. १ सितम्बर से १२ सितम्बर तक भारत में ४ भूकंप दर्ज हुए. १४ सितम्बर को जापान में ५.३ तीव्रता तीव्रता का भूकंप आया. ६ अक्तूबर को पश्चिमी जापान में ७.१, अंडमान में ५.४, सरगुजा में लंबी दरारें पड़ना, तथा अंबिकापुर में भूकंप के हलके झटके अनुभव किये गए. १२.१०.२००० को हिमाचल प्रदेश में तथा १७.१०.२००० को जबलपुर (५.२), १९.१०.२००० को भारत-पाक सीमा तथा कोयना क्षेत्र में भूकंप आया. २७.१०.२०० को जापान में चौथा ज्वालामुखी सक्रिय हुआ.
अद्यतन ये भूगर्भीय हलचलें जो गहरी ज्वालामुखीय घटनाओं को प्रेरित कर रही हैं, इनके कारण ही भूकम्पों की बारम्बार पुनरावृत्ति हो रहे ऐसी मेरी मान्यता है.
*************
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volcano
सोमवार, 28 दिसंबर 2009
सामयिक दोहे संजीव 'सलिल'
सामयिक दोहे
संजीव 'सलिल'
पत्थर से हर शहर में मिलते मकां हजारों.
मैं ढूंढ-ढूंढ हरा, घर एक नहीं मिलता..
रश्मि रथी की रश्मि के दर्शन कर जग धन्य.
तुम्हीं चन्द्र की ज्योत्सना, सचमुच दिव्य अनन्य..
राज सियारों का हुआ, सिंह का मिटा भविष्य.
लोकतंत्र के यज्ञ में, काबिल हुआ हविष्य..
कहता है इतिहास यह, राक्षस थे बलवान.
जिसने उनको मिटाया, वे सब थे इंसान..
इस राक्षस राठोड का होगा सत्यानाश.
साक्षी होंगे आप-हम, धरती जल आकाश..
नारायण के नाम पर, सचमुच लगा कलंक.
मैली चादर हो गयी, चुभा कुयश का डंक..
फंसे वासना पंक में, श्री नारायण दत्त.
जैसे मरने जा रहा, कीचड में गज मत्त.
कीचड में गज मत्त, लाज क्यों इन्हें न आयी.
कभी उठाई थी चप्पल. अब चप्पल खाई..
******************
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
संजीव 'सलिल'
पत्थर से हर शहर में मिलते मकां हजारों.
मैं ढूंढ-ढूंढ हरा, घर एक नहीं मिलता..
रश्मि रथी की रश्मि के दर्शन कर जग धन्य.
तुम्हीं चन्द्र की ज्योत्सना, सचमुच दिव्य अनन्य..
राज सियारों का हुआ, सिंह का मिटा भविष्य.
लोकतंत्र के यज्ञ में, काबिल हुआ हविष्य..
कहता है इतिहास यह, राक्षस थे बलवान.
जिसने उनको मिटाया, वे सब थे इंसान..
इस राक्षस राठोड का होगा सत्यानाश.
साक्षी होंगे आप-हम, धरती जल आकाश..
नारायण के नाम पर, सचमुच लगा कलंक.
मैली चादर हो गयी, चुभा कुयश का डंक..
फंसे वासना पंक में, श्री नारायण दत्त.
जैसे मरने जा रहा, कीचड में गज मत्त.
कीचड में गज मत्त, लाज क्यों इन्हें न आयी.
कभी उठाई थी चप्पल. अब चप्पल खाई..
******************
Acharya Sanjiv Salil
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रविवार, 27 दिसंबर 2009
: संस्था समाचार : इंडियन जिओटेक्निकल सोसाइटी जबलपुर पुनर्गठित
संस्था समाचार:
इंडियन जिओटेक्निकल सोसाइटी जबलपुर पुनर्गठित
जबलपुर, २७.१२.२००९. इंडियन जिओटेक्निकल सोसाइटी जबलपुर चैप्टर का पुनर्गठन सर्व सम्मति से संपन्न हुआ. तदनुसार अगले सत्र हेतु अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त प्रो. विनय कुमार श्रीवास्तव अध्यक्ष, इंजी. आर.के.श्रीवास्तव तथा इंजी. संजीव वर्मा 'सलिल' सह अध्यक्ष, इंजी. संजय वर्मा मानद सचिव, प्रो. अनिल सिंघई कोषाध्यक्ष, इंजी. प्रवीण बोहर तथा प्रो. योगेश बाजपेई सह सचिव, प्रो. राजीव खत्री, प्रो. आर.के.यादव तथा इंजी. पी.के.सोनी सम्पादक मंडल सदस्य एवं इंजी. अजय मालवीय व इंजी. अलोक श्रीवास्तव मीडिया लायजन ऑफिसर मनोनीत किये गए. उक्त के अतिरिक्त हर तकनीकी विभाग तथा शिक्षण संस्था से एक-एक कार्यकारिणी सदस्य चुनने हेतु अध्यक्ष को अधिकृत किया गया.
सर्वसम्मति से इंजी. संजीव वर्मा 'सलिल' द्वारा प्रस्तुत गत सत्र का लेखा-जोखा पारित किया गया. संपादक मंडल सदस्यों के सहयोग से संस्था का मुख पत्र प्रारम्भ करने हेतु इंजी. संजीव 'सलिल' को अधिकृत किया गया.
प्रो. विनय कुमार श्रीवास्तव ने अपने उद्बोधन में गत सत्र की गतिविधियों का विवरण प्रस्तुत करते हुए सदस्यों से तकनीक और समाज के बीच बने अंतर को पटाने हेतु प्राण-प्राण से समर्पित होने की अपेक्षा की.
संस्था के पूर्व सचिव प्रो. दिनेश कुमार खरे के आकस्मिक निधन पर इंजी. 'सलिल' द्वारा शोक-श्रृद्धांजलिपरक काव्यांजलि के पश्चात् सदस्यों के मौन रखकर श्रृद्धांजलि अर्पित की तथा भू-तकनीकी के क्षेत्र में उदित गंभीर समस्याओं के प्रति समाज में जाग्रति उत्पन्न करने व् उनके सम्यक समाधान के प्रति अपने हर संभव योगदान का संकल्प लिया. बैठक का कुशल सञ्चालन इंजी. संजय वर्मा ने किया.
इंडियन जिओटेक्निकल सोसाइटी जबलपुर पुनर्गठित
जबलपुर, २७.१२.२००९. इंडियन जिओटेक्निकल सोसाइटी जबलपुर चैप्टर का पुनर्गठन सर्व सम्मति से संपन्न हुआ. तदनुसार अगले सत्र हेतु अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त प्रो. विनय कुमार श्रीवास्तव अध्यक्ष, इंजी. आर.के.श्रीवास्तव तथा इंजी. संजीव वर्मा 'सलिल' सह अध्यक्ष, इंजी. संजय वर्मा मानद सचिव, प्रो. अनिल सिंघई कोषाध्यक्ष, इंजी. प्रवीण बोहर तथा प्रो. योगेश बाजपेई सह सचिव, प्रो. राजीव खत्री, प्रो. आर.के.यादव तथा इंजी. पी.के.सोनी सम्पादक मंडल सदस्य एवं इंजी. अजय मालवीय व इंजी. अलोक श्रीवास्तव मीडिया लायजन ऑफिसर मनोनीत किये गए. उक्त के अतिरिक्त हर तकनीकी विभाग तथा शिक्षण संस्था से एक-एक कार्यकारिणी सदस्य चुनने हेतु अध्यक्ष को अधिकृत किया गया.
सर्वसम्मति से इंजी. संजीव वर्मा 'सलिल' द्वारा प्रस्तुत गत सत्र का लेखा-जोखा पारित किया गया. संपादक मंडल सदस्यों के सहयोग से संस्था का मुख पत्र प्रारम्भ करने हेतु इंजी. संजीव 'सलिल' को अधिकृत किया गया.
प्रो. विनय कुमार श्रीवास्तव ने अपने उद्बोधन में गत सत्र की गतिविधियों का विवरण प्रस्तुत करते हुए सदस्यों से तकनीक और समाज के बीच बने अंतर को पटाने हेतु प्राण-प्राण से समर्पित होने की अपेक्षा की.
संस्था के पूर्व सचिव प्रो. दिनेश कुमार खरे के आकस्मिक निधन पर इंजी. 'सलिल' द्वारा शोक-श्रृद्धांजलिपरक काव्यांजलि के पश्चात् सदस्यों के मौन रखकर श्रृद्धांजलि अर्पित की तथा भू-तकनीकी के क्षेत्र में उदित गंभीर समस्याओं के प्रति समाज में जाग्रति उत्पन्न करने व् उनके सम्यक समाधान के प्रति अपने हर संभव योगदान का संकल्प लिया. बैठक का कुशल सञ्चालन इंजी. संजय वर्मा ने किया.
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er. r.k.shrivastav,
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pro v.k.shrivastav
करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
हिन्दी पद्यानुवाद मेघदूतम् श्लोक ५६ से ६० पद्यानुवादक प्रो.सी. बी. श्रीवास्तव विदग्ध
हिन्दी पद्यानुवाद मेघदूतम् श्लोक ५६ से ६०
पद्यानुवादक प्रो.सी. बी. श्रीवास्तव विदग्ध

तं चेद वायौ सरति सरलस्कन्धसंघट्टजन्मा
बाधेतोल्काक्षपितचमरीबालभारो दवाग्निः
अर्हस्य एनं शमयितुम अलं वारिधारासहस्रैर
आपन्नार्तिप्रशमनफलाः संपदो ह्य उत्तमानाम॥१.५६॥
आसीन कस्तूरिमृग नाभि की गंध
से रम्य जिसकी शिलायें सुगंधित
उसी जान्हवी के प्रभव स्त्रोत गिरि जो
हिमालय धवल हिम शिखर सतत मंडित
पहँच कर वहाँ मार्ग श्रम को मिटाने
किसी श्रंग पर लग्न लोगे सहारा
तो शिव के धवल वृषभ के श्रंग में लग्न
कर्दम सदृश रूप होगा तुम्हारा
ये संरम्भोत्पतनरभसाः स्वाङ्गभङ्गाय तस्मिन
मुक्ताध्वानं सपदि शरभा लङ्घयेयुर भवन्तम
तान कुर्वीथास तुमुलकरकावृष्टिपातावकीर्णन
के वा न स्युः परिभवपदं निष्फलारम्भयत्नाः॥१.५७॥
तभी यदि प्रभंजन चले , वृक्ष रगड़ें
औ" घर्षण जनित दाव वन को जलायें
ज्वालायें यदि क्लेश दें चमरि गौ को
तथा पुच्छ के केश दल झुलस जायें
उचित तब तुम्हें तात ! जलधार वर्षण
अनल को बुझा जो सुखद शांति लाये
सफलता यही श्रेष्ठ की संपदा की
समय पर दुखी आर्त के काम आये
शब्दार्थ ... प्रभंजन... तेज हवा , आंधी
घर्षण जनित दाव ... वृक्षो के परस्पर घर्षण से उत्पन्न आग
चमरि गौ ... चमरी गाय जिसकी पूंछ के सफेद बालों से चौरी बनती है
तत्र व्यक्तं दृषदि चरणन्यासम अर्धेन्दुमौलेः
शश्वत सिद्धैर उपचितबलिं भक्तिनम्रः परीयाः
यस्मिन दृष्टे करणविगमाद ऊर्ध्वम उद्धूतपापाः
कल्पिष्यन्ते स्थिरगणपदप्राप्तये श्रद्दधानाः॥१.५८॥
आवेश में किन्तु भगते उछलते
शरभ स्वयंघाती करें आक्रमण जो
समझकर कि तुम मार्ग के बीच में आ ,
अचानक स्वयं वहाँ से हट गये हो
तो कर उपल वृष्टि गंभीर उन पर
उन्हें ताड़ना दे , हटा दूर देना
भला निरर्थक यत्नकारी जनों पर
कहां , कौन ऐसा कभी जो हँसे न ?
शब्दार्थ ..शरभ... एक जाति के वन्य जीव , हाथी का बच्चा
शब्दायन्ते मधुरम अनिलैः कीचकाः पूर्यमाणाः
संरक्ताभिस त्रिपुरविजयो गीयते किंनराभिः
निर्ह्रादस ते मुरज इव चेत कन्दरेषु ध्वनिः स्यात
संगीतार्थो ननु पशुपतेस तत्र भावी समग्रः॥१.५९॥
वहाँ शिला अंकित , सतत सिद्ध पूजित ,
चरण चिन्ह शिव के परम भाग्यकारी
करना परीया विनत भावना से
वे हैं पुण्यदायी सकल पापहारी
जिनके दरश मात्र से भक्तजन पाप
से मुक्त हो , जगत से मुक्ति पाते
तज देह को , मृत्यु के बाद दुर्लभ
अमरगण पद प्राप्ति अधिकार पाते
प्रालेयाद्रेर उपतटम अतिक्रम्य तांस तान विशेषान
हंसद्वारं भृगुपतियशोवर्त्म यत क्रौञ्चरन्ध्रम
तेनोदीचीं दिशम अनुसरेस तिर्यग आयामशोभी
श्यामः पादो बलिनियमनाभ्युद्यतस्येव विष्णोः॥१.६०॥
जहां वेणुवन मधु पवन के मिलन से
सुरीली सतत सौम्य ! वंशी बजाता !
सुसंगीत में रत जहाँ किन्नरीदल
कि त्रिपुरारि शिव के विजय गीत गाता
वहाँ यदि मुरजताल सम गर्जना तव
गुहा कन्दरा में गँभीरा ध्वनित हो
तो तब सत्य प्रिय पशुपति अर्चना में
सुसंगीत की विधि सकल पूर्ण इति हो
शब्दार्थ .. मुरजताल... एक प्रकार के वाद्य की आवाज , ढ़ोल या मृदंग की ध्वनि
पद्यानुवादक प्रो.सी. बी. श्रीवास्तव विदग्ध

तं चेद वायौ सरति सरलस्कन्धसंघट्टजन्मा
बाधेतोल्काक्षपितचमरीबालभारो दवाग्निः
अर्हस्य एनं शमयितुम अलं वारिधारासहस्रैर
आपन्नार्तिप्रशमनफलाः संपदो ह्य उत्तमानाम॥१.५६॥
आसीन कस्तूरिमृग नाभि की गंध
से रम्य जिसकी शिलायें सुगंधित
उसी जान्हवी के प्रभव स्त्रोत गिरि जो
हिमालय धवल हिम शिखर सतत मंडित
पहँच कर वहाँ मार्ग श्रम को मिटाने
किसी श्रंग पर लग्न लोगे सहारा
तो शिव के धवल वृषभ के श्रंग में लग्न
कर्दम सदृश रूप होगा तुम्हारा
ये संरम्भोत्पतनरभसाः स्वाङ्गभङ्गाय तस्मिन
मुक्ताध्वानं सपदि शरभा लङ्घयेयुर भवन्तम
तान कुर्वीथास तुमुलकरकावृष्टिपातावकीर्णन
के वा न स्युः परिभवपदं निष्फलारम्भयत्नाः॥१.५७॥
तभी यदि प्रभंजन चले , वृक्ष रगड़ें
औ" घर्षण जनित दाव वन को जलायें
ज्वालायें यदि क्लेश दें चमरि गौ को
तथा पुच्छ के केश दल झुलस जायें
उचित तब तुम्हें तात ! जलधार वर्षण
अनल को बुझा जो सुखद शांति लाये
सफलता यही श्रेष्ठ की संपदा की
समय पर दुखी आर्त के काम आये
शब्दार्थ ... प्रभंजन... तेज हवा , आंधी
घर्षण जनित दाव ... वृक्षो के परस्पर घर्षण से उत्पन्न आग
चमरि गौ ... चमरी गाय जिसकी पूंछ के सफेद बालों से चौरी बनती है
तत्र व्यक्तं दृषदि चरणन्यासम अर्धेन्दुमौलेः
शश्वत सिद्धैर उपचितबलिं भक्तिनम्रः परीयाः
यस्मिन दृष्टे करणविगमाद ऊर्ध्वम उद्धूतपापाः
कल्पिष्यन्ते स्थिरगणपदप्राप्तये श्रद्दधानाः॥१.५८॥
आवेश में किन्तु भगते उछलते
शरभ स्वयंघाती करें आक्रमण जो
समझकर कि तुम मार्ग के बीच में आ ,
अचानक स्वयं वहाँ से हट गये हो
तो कर उपल वृष्टि गंभीर उन पर
उन्हें ताड़ना दे , हटा दूर देना
भला निरर्थक यत्नकारी जनों पर
कहां , कौन ऐसा कभी जो हँसे न ?
शब्दार्थ ..शरभ... एक जाति के वन्य जीव , हाथी का बच्चा
शब्दायन्ते मधुरम अनिलैः कीचकाः पूर्यमाणाः
संरक्ताभिस त्रिपुरविजयो गीयते किंनराभिः
निर्ह्रादस ते मुरज इव चेत कन्दरेषु ध्वनिः स्यात
संगीतार्थो ननु पशुपतेस तत्र भावी समग्रः॥१.५९॥
वहाँ शिला अंकित , सतत सिद्ध पूजित ,
चरण चिन्ह शिव के परम भाग्यकारी
करना परीया विनत भावना से
वे हैं पुण्यदायी सकल पापहारी
जिनके दरश मात्र से भक्तजन पाप
से मुक्त हो , जगत से मुक्ति पाते
तज देह को , मृत्यु के बाद दुर्लभ
अमरगण पद प्राप्ति अधिकार पाते
प्रालेयाद्रेर उपतटम अतिक्रम्य तांस तान विशेषान
हंसद्वारं भृगुपतियशोवर्त्म यत क्रौञ्चरन्ध्रम
तेनोदीचीं दिशम अनुसरेस तिर्यग आयामशोभी
श्यामः पादो बलिनियमनाभ्युद्यतस्येव विष्णोः॥१.६०॥
जहां वेणुवन मधु पवन के मिलन से
सुरीली सतत सौम्य ! वंशी बजाता !
सुसंगीत में रत जहाँ किन्नरीदल
कि त्रिपुरारि शिव के विजय गीत गाता
वहाँ यदि मुरजताल सम गर्जना तव
गुहा कन्दरा में गँभीरा ध्वनित हो
तो तब सत्य प्रिय पशुपति अर्चना में
सुसंगीत की विधि सकल पूर्ण इति हो
शब्दार्थ .. मुरजताल... एक प्रकार के वाद्य की आवाज , ढ़ोल या मृदंग की ध्वनि
सामाजिक लेखन हेतु ११ वें रेड एण्ड व्हाईट पुरस्कार से सम्मानित .
"रामभरोसे", "कौआ कान ले गया" व्यंग संग्रहों ," आक्रोश" काव्य संग्रह ,"हिंदोस्तां हमारा " , "जादू शिक्षा का " नाटकों के माध्यम से अपने भीतर के रचनाकार की विवश अभिव्यक्ति को व्यक्त करने का दुस्साहस ..हम तो बोलेंगे ही कोई सुने न सुने .
यह लेखन वैचारिक अंतर्द्वंद है ,मेरे जैसे लेखकों का जो अपना श्रम, समय व धन लगाकर भी सच को "सच" कहने का साहस तो कर रहे हैं ..इस युग में .
लेखकीय शोषण , व पाठकहीनता की स्थितियां हम सबसे छिपी नहीं है , पर समय रचनाकारो के इस सारस्वत यज्ञ की आहुतियों का मूल्यांकन करेगा इसी आशा और विश्वास के साथ ..
गीत/प्रति गीत: अब पहले सी बात न होगी/फिर पहले सी बातें होंगी मानोशी चटर्जी/संजीव 'सलिल'
गीत
मानोशी चटर्जी
अब पहले सी बात न होगी
उम्र की वह सौग़ात न होगी
खिलना खिल-खिल हँसना,
झिलमिल तारों के संग आँख-मिचौली
दौड़म भागी, खींचातानी
लड़ना रोना, हँसी-ठिठोली
सच्चे-झूठे किस्सों के संग
दादी की वह रात न होगी
उम्र की वह सौग़ात न होगी
खुले आसमां के नीचे होती थी
सरगो़शी में बातें
सन्नाटा पी कर बेसुध जब
हो जाती थी बेकल रातें
धीमे-धीमे जलती थी जो,
बिना हवा सुलगती थी जो
फिर से आग जला भी लें गर
अब पहले सी बात न होगी
उम्र की वह सौग़ात न होगी
अटक गये कुछ पल सूई पर,
समय ठगा सा टंगा रह गया
जीवन लाठी टेक के चलते-चलते
ठिठक के खड़ा रह गया
बूढ़ी झुर्री टेढ़ी काया
सर पर रख कर भारी टुकनी
सांझ के सूरज की देहरी पर
पहले सी बरसात न होगी
उम्र की वह सौग़ात न होगी
************
प्रति गीत:
फिर पहले सी बातें होंगी
संजीव 'सलिल'
*
दिल में अगर हौसला हो तो,
फिर पहले सी बातें होंगी...
*
कहा किसी ने- 'नहीं लौटता
पुनः नदी में बहता पानी'.
पर नाविक आता है तट पर
बार-बार ले नई कहानी..
हर युग में दादी होती है,
होते हैं पोती और पोते.
समय देखता लाड-प्यार के
रिश्तों में दुःख-पीड़ा खोते.
नयी कहानी, नयी रवानी,
सुखमय सारी रातें होंगी.
दिल में अगर हौसला हो तो,
फिर पहले सी बातें होंगी...
*
सखा-सहेली अब भी मिलते,
छिड़ते किस्से, दिल भी खिलते.
रूठ मनाना, बात बनाना.
आँख दिखाना, हँस मुस्काना.
समय नदी के दूर तटों पर-
यादों की बारातें होंगी.
दिल में अगर हौसला हो तो,
फिर पहले सी बातें होंगी...
*
तन बूढा हो साथ समय के,
मन जवान रख देव प्रलय के.
'सलिल'-श्वास रस-खान, न रीते-
हो विदेह सुन गान विलय के.
ढाई आखर की सरगम सुन
कहीं न शह या मातें होंगी.
दिल में अगर हौसला हो तो,
फिर पहले सी बातें होंगी...
*
मानोशी चटर्जी
अब पहले सी बात न होगी
उम्र की वह सौग़ात न होगी
खिलना खिल-खिल हँसना,
झिलमिल तारों के संग आँख-मिचौली
दौड़म भागी, खींचातानी
लड़ना रोना, हँसी-ठिठोली
सच्चे-झूठे किस्सों के संग
दादी की वह रात न होगी
उम्र की वह सौग़ात न होगी
खुले आसमां के नीचे होती थी
सरगो़शी में बातें
सन्नाटा पी कर बेसुध जब
हो जाती थी बेकल रातें
धीमे-धीमे जलती थी जो,
बिना हवा सुलगती थी जो
फिर से आग जला भी लें गर
अब पहले सी बात न होगी
उम्र की वह सौग़ात न होगी
अटक गये कुछ पल सूई पर,
समय ठगा सा टंगा रह गया
जीवन लाठी टेक के चलते-चलते
ठिठक के खड़ा रह गया
बूढ़ी झुर्री टेढ़ी काया
सर पर रख कर भारी टुकनी
सांझ के सूरज की देहरी पर
पहले सी बरसात न होगी
उम्र की वह सौग़ात न होगी
************
प्रति गीत:
फिर पहले सी बातें होंगी
संजीव 'सलिल'
*
दिल में अगर हौसला हो तो,
फिर पहले सी बातें होंगी...
*
कहा किसी ने- 'नहीं लौटता
पुनः नदी में बहता पानी'.
पर नाविक आता है तट पर
बार-बार ले नई कहानी..
हर युग में दादी होती है,
होते हैं पोती और पोते.
समय देखता लाड-प्यार के
रिश्तों में दुःख-पीड़ा खोते.
नयी कहानी, नयी रवानी,
सुखमय सारी रातें होंगी.
दिल में अगर हौसला हो तो,
फिर पहले सी बातें होंगी...
*
सखा-सहेली अब भी मिलते,
छिड़ते किस्से, दिल भी खिलते.
रूठ मनाना, बात बनाना.
आँख दिखाना, हँस मुस्काना.
समय नदी के दूर तटों पर-
यादों की बारातें होंगी.
दिल में अगर हौसला हो तो,
फिर पहले सी बातें होंगी...
*
तन बूढा हो साथ समय के,
मन जवान रख देव प्रलय के.
'सलिल'-श्वास रस-खान, न रीते-
हो विदेह सुन गान विलय के.
ढाई आखर की सरगम सुन
कहीं न शह या मातें होंगी.
दिल में अगर हौसला हो तो,
फिर पहले सी बातें होंगी...
*
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शनिवार, 26 दिसंबर 2009
नव गीत: पग की किस्मत / सिर्फ भटकना -संजीव 'सलिल'
-: नव गीत :-
पग की किस्मत / सिर्फ भटकना
संजीव 'सलिल'
*
राज मार्ग हो
या पगडंडी,
पग की किस्मत
सिर्फ भटकना....
*
सावन-मेघ
बरसते आते.
रवि गर्मी भर
आँख दिखाते.
ठण्ड पड़े तो
सभी जड़ाते.
कभी न थमता
पौ का फटना.
राज मार्ग हो
या पगडंडी,
पग की किस्मत
सिर्फ भटकना....
*
मीरा, राधा,
सूर, कबीरा,
तुलसी, वाल्मीकि
मतिधीरा.
सुख जैसे ही
सह ली पीड़ा.
नाम न छोड़ा
लेकिन रटना.
राज मार्ग हो
या पगडंडी,
पग की किस्मत
सिर्फ भटकना....
*
लोकतंत्र का
महापर्व भी,
रहता जिस पर
हमें गर्व भी.
न्यूनाधिक
गुण-दोष समाहित,
कोई न चाहे-
कहीं अटकना.
राज मार्ग हो
या पगडंडी,
पग की किस्मत
सिर्फ भटकना....
*
समय चक्र
चलता ही जाये.
बार-बार
नव वर्ष मनाये.
नाश-सृजन को
संग-संग पाए.
तम-प्रकाश से
'सलिल' न हटना.
राज मार्ग हो
या पगडंडी,
पग की किस्मत
सिर्फ भटकना....
*
थक मत, रुक मत,
झुक मत, चुक मत.
फूल-शूल सम-
हार न हिम्मत.
'सलिल' चलाचल
पग-तल किस्मत.
मौन चलाचल
नहीं पलटना.
राज मार्ग हो
या पगडंडी,
पग की किस्मत
सिर्फ भटकना....
*
पग की किस्मत / सिर्फ भटकना
संजीव 'सलिल'
*
राज मार्ग हो
या पगडंडी,
पग की किस्मत
सिर्फ भटकना....
*
सावन-मेघ
बरसते आते.
रवि गर्मी भर
आँख दिखाते.
ठण्ड पड़े तो
सभी जड़ाते.
कभी न थमता
पौ का फटना.
राज मार्ग हो
या पगडंडी,
पग की किस्मत
सिर्फ भटकना....
*
मीरा, राधा,
सूर, कबीरा,
तुलसी, वाल्मीकि
मतिधीरा.
सुख जैसे ही
सह ली पीड़ा.
नाम न छोड़ा
लेकिन रटना.
राज मार्ग हो
या पगडंडी,
पग की किस्मत
सिर्फ भटकना....
*
लोकतंत्र का
महापर्व भी,
रहता जिस पर
हमें गर्व भी.
न्यूनाधिक
गुण-दोष समाहित,
कोई न चाहे-
कहीं अटकना.
राज मार्ग हो
या पगडंडी,
पग की किस्मत
सिर्फ भटकना....
*
समय चक्र
चलता ही जाये.
बार-बार
नव वर्ष मनाये.
नाश-सृजन को
संग-संग पाए.
तम-प्रकाश से
'सलिल' न हटना.
राज मार्ग हो
या पगडंडी,
पग की किस्मत
सिर्फ भटकना....
*
थक मत, रुक मत,
झुक मत, चुक मत.
फूल-शूल सम-
हार न हिम्मत.
'सलिल' चलाचल
पग-तल किस्मत.
मौन चलाचल
नहीं पलटना.
राज मार्ग हो
या पगडंडी,
पग की किस्मत
सिर्फ भटकना....
*
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शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009
'बड़ा दिन' संजीव 'सलिल'
'बड़ा दिन'
संजीव 'सलिल'
हम ऐसा कुछ काम कर सकें
हर दिन रहे बड़ा दिन अपना.
बनें सहायक नित्य किसी के-
पूरा करदें उसका सपना.....
*
केवल खुद के लिए न जीकर
कुछ पल औरों के हित जी लें.
कुछ अमृत दे बाँट, और खुद
कभी हलाहल थोडा पी लें.
बिना हलाहल पान किये, क्या
कोई शिवशंकर हो सकता?
बिना बहाए स्वेद धरा पर
क्या कोई फसलें बो सकता?
दिनकर को सब पूज रहे पर
किसने चाहा जलना-तपना?
हम ऐसा कुछ काम कर सकें
हर दिन रहे बड़ा दिन अपना.....
*
निज निष्ठा की सूली पर चढ़,
जो कुरीत से लड़े निरंतर,
तन पर कीलें ठुकवा ले पर-
न हो असत के सम्मुख नत-शिर.
करे क्षमा जो प्रतिघातों को
रख सद्भाव सदा निज मन में.
बिना स्वार्थ उपहार बाँटता-
फिरे नगर में, डगर- विजन में.
उस ईसा की, उस संता की-
'सलिल' सीख ले माला जपना.
हम ऐसा कुछ काम कर सकें
हर दिन रहे बड़ा दिन अपना.....
*
जब दाना चक्की में पिसता,
आटा बनता, क्षुधा मिटाता.
चक्की चले समय की प्रति पल
नादां पिसने से घबराता.
स्नेह-साधना कर निज प्रतिभा-
सूरज से कर जग उजियारा.
देश, धर्म, या जाति भूलकर
चमक गगन में बन ध्रुवतारा.
रख ऐसा आचरण बने जो,
सारी मानवता का नपना.
हम ऐसा कुछ काम कर सकें
हर दिन रहे बड़ा दिन अपना.....
*
(भारत में क्रिसमस को 'बड़ा दिन' कहा जाता है.)
http://divyanarmada.blogspot.com
संजीव 'सलिल'
हम ऐसा कुछ काम कर सकें
हर दिन रहे बड़ा दिन अपना.
बनें सहायक नित्य किसी के-
पूरा करदें उसका सपना.....
*
केवल खुद के लिए न जीकर
कुछ पल औरों के हित जी लें.
कुछ अमृत दे बाँट, और खुद
कभी हलाहल थोडा पी लें.
बिना हलाहल पान किये, क्या
कोई शिवशंकर हो सकता?
बिना बहाए स्वेद धरा पर
क्या कोई फसलें बो सकता?
दिनकर को सब पूज रहे पर
किसने चाहा जलना-तपना?
हम ऐसा कुछ काम कर सकें
हर दिन रहे बड़ा दिन अपना.....
*
निज निष्ठा की सूली पर चढ़,
जो कुरीत से लड़े निरंतर,
तन पर कीलें ठुकवा ले पर-
न हो असत के सम्मुख नत-शिर.
करे क्षमा जो प्रतिघातों को
रख सद्भाव सदा निज मन में.
बिना स्वार्थ उपहार बाँटता-
फिरे नगर में, डगर- विजन में.
उस ईसा की, उस संता की-
'सलिल' सीख ले माला जपना.
हम ऐसा कुछ काम कर सकें
हर दिन रहे बड़ा दिन अपना.....
*
जब दाना चक्की में पिसता,
आटा बनता, क्षुधा मिटाता.
चक्की चले समय की प्रति पल
नादां पिसने से घबराता.
स्नेह-साधना कर निज प्रतिभा-
सूरज से कर जग उजियारा.
देश, धर्म, या जाति भूलकर
चमक गगन में बन ध्रुवतारा.
रख ऐसा आचरण बने जो,
सारी मानवता का नपना.
हम ऐसा कुछ काम कर सकें
हर दिन रहे बड़ा दिन अपना.....
*
(भारत में क्रिसमस को 'बड़ा दिन' कहा जाता है.)
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-acharya sanjiv 'salil',
Contemporary Hindi Poetry,
geet/navgeet/samyik hindi kavya
करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
बुधवार, 23 दिसंबर 2009
गीतिका: बिना नाव पतवार हुए हैं --संजीव 'सलिल'
गीतिका:
संजीव 'सलिल'
बिना नाव पतवार हुए हैं.
क्यों गुलाब के खार हुए हैं.
दर्शन बिन बेज़ार बहुत थे.
कर दर्शन बेज़ार हुए हैं.
तेवर बिन लिख रहे तेवरी.
जल बिन भाटा-ज्वार हुए हैं.
माली लूट रहे बगिया को-
जनप्रतिनिधि बटमार हुए हैं.
कल तक थे मनुहार मृदुल जो,
बिना बात तकरार हुए हैं.
सहकर चोट, मौन मुस्काते,
हम सितार के तार हुए हैं.
महानगर की हवा विषैली.
विघटित घर-परिवार हुए हैं.
सुधर न पाई है पगडण्डी,
अनगिन मगर सुधार हुए हैं.
समय-शिला पर कोशिश बादल,
'सलिल' अमिय की धार हुए हैं.
* * * * *
संजीव 'सलिल'
बिना नाव पतवार हुए हैं.
क्यों गुलाब के खार हुए हैं.
दर्शन बिन बेज़ार बहुत थे.
कर दर्शन बेज़ार हुए हैं.
तेवर बिन लिख रहे तेवरी.
जल बिन भाटा-ज्वार हुए हैं.
माली लूट रहे बगिया को-
जनप्रतिनिधि बटमार हुए हैं.
कल तक थे मनुहार मृदुल जो,
बिना बात तकरार हुए हैं.
सहकर चोट, मौन मुस्काते,
हम सितार के तार हुए हैं.
महानगर की हवा विषैली.
विघटित घर-परिवार हुए हैं.
सुधर न पाई है पगडण्डी,
अनगिन मगर सुधार हुए हैं.
समय-शिला पर कोशिश बादल,
'सलिल' अमिय की धार हुए हैं.
* * * * *
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मंगलवार, 22 दिसंबर 2009
स्मृति दीर्घा: --संजीव 'सलिल'
स्मृति दीर्घा:
संजीव 'सलिल'
*
स्मृतियों के वातायन से, झाँक रहे हैं लोग...
*
पाला-पोसा खड़ा कर दिया, बिदा हो गए मौन.
मुझमें छिपे हुए हुए है, जैसे भोजन में हो नौन..
चाहा रोक न पाया उनको, खोया है दुर्योग...
*
ठोंक-ठोंक कर खोट निकली, बना दिया इंसान.
शत वन्दन उनको, दी सीख 'न कर मूरख अभिमान'.
पत्थर परस करे पारस का, सुखमय है संयोग...
*
टाँग मार कर कभी गिराया, छुरा पीठ में भोंक.
जिनने अपना धर्म निभाया, उन्नति पथ को रोक.
उन का आभारी, बचाव के सीखे तभी प्रयोग...
*
मुझ अपूर्ण को पूर्ण बनाने, आई तज घर-द्वार.
कैसे बिसराऊँ मैं उनको, वे मेरी सरकार.
मुझसे मुझको ले मुझको दे, मिटा रहीं हर सोग...
*
बिन शर्तों के नाते जोड़े, दिया प्यार निष्काम.
मित्र-सखा मेरे जो उनको सौ-सौ बार सलाम.
दुःख ले, सुख दे, सदा मिटाए मम मानस के रोग...
*
ममता-वात्सल्य के पल, दे नव पीढी ने नित्य.
मुझे बताया नव रचना से थका न अभी अनित्य.
'सलिल' अशुभ पर जयी सदा शुभ, दे तू भी निज योग...
*
स्मृति-दीर्घा में आ-जाकर, गया पीर सब भूल.
यात्रा पूर्ण, नयी यात्रा में साथ फूल कुछ शूल.
लेकर आया नया साल, मिल इसे लगायें भोग...
***********
संजीव 'सलिल'
*
स्मृतियों के वातायन से, झाँक रहे हैं लोग...
*
पाला-पोसा खड़ा कर दिया, बिदा हो गए मौन.
मुझमें छिपे हुए हुए है, जैसे भोजन में हो नौन..
चाहा रोक न पाया उनको, खोया है दुर्योग...
*
ठोंक-ठोंक कर खोट निकली, बना दिया इंसान.
शत वन्दन उनको, दी सीख 'न कर मूरख अभिमान'.
पत्थर परस करे पारस का, सुखमय है संयोग...
*
टाँग मार कर कभी गिराया, छुरा पीठ में भोंक.
जिनने अपना धर्म निभाया, उन्नति पथ को रोक.
उन का आभारी, बचाव के सीखे तभी प्रयोग...
*
मुझ अपूर्ण को पूर्ण बनाने, आई तज घर-द्वार.
कैसे बिसराऊँ मैं उनको, वे मेरी सरकार.
मुझसे मुझको ले मुझको दे, मिटा रहीं हर सोग...
*
बिन शर्तों के नाते जोड़े, दिया प्यार निष्काम.
मित्र-सखा मेरे जो उनको सौ-सौ बार सलाम.
दुःख ले, सुख दे, सदा मिटाए मम मानस के रोग...
*
ममता-वात्सल्य के पल, दे नव पीढी ने नित्य.
मुझे बताया नव रचना से थका न अभी अनित्य.
'सलिल' अशुभ पर जयी सदा शुभ, दे तू भी निज योग...
*
स्मृति-दीर्घा में आ-जाकर, गया पीर सब भूल.
यात्रा पूर्ण, नयी यात्रा में साथ फूल कुछ शूल.
लेकर आया नया साल, मिल इसे लगायें भोग...
***********
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-acharya sanjiv 'salil',
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करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
दोहा गीतिका 'सलिल'
(अभिनव प्रयोग)
दोहा गीतिका
'सलिल'
*
तुमको मालूम ही नहीं शोलों की तासीर।
तुम क्या जानो ख्वाब की कैसे हो ताबीर?
बहरे मिलकर सुन रहे गूँगों की तक़रीर।
बिलख रही जम्हूरियत, सिसक रही है पीर।
दहशतगर्दों की हुई है जबसे तक्सीर
वतनपरस्ती हो गयी खतरनाक तक्सीर।
फेंक द्रौपदी खुद रही फाड़-फाड़ निज चीर।
भीष्म द्रोण कूर कृष्ण संग, घूरें पांडव वीर।
हिम्मत मत हारें- करें, सब मिलकर तदबीर।
प्यार-मुहब्बत ही रहे मजहब की तफसीर।
सपनों को साकार कर, धरकर मन में धीर।
हर बाधा-संकट बने, पानी की प्राचीर।
हिंद और हिंदी करे दुनिया को तन्वीर।
बेहतर से बेहतर बने इन्सां की तस्वीर।
हाय! सियासत रह गयी, सिर्फ स्वार्थ-तज़्वीर।
खिदमत भूली, कर रही बातों की तब्ज़ीर।
तरस रहा मन 'सलिल' दे वक़्त एक तब्शीर।
शब्दों के आगे झुके, जालिम की शमशीर।
*********************************
तासीर = असर/ प्रभाव, ताबीर = कहना, तक़रीर = बात/भाषण, जम्हूरियत = लोकतंत्र, दहशतगर्दों = आतंकवादियों, तकसीर = बहुतायत, वतनपरस्ती = देशभक्ति, तकसीर = दोष/अपराध, तदबीर = उपाय, तफसीर = व्याख्या, तनवीर = प्रकाशित, तस्वीर = चित्र/छवि, ताज्वीर = कपट, खिदमत = सेवा, कौम = समाज, तब्जीर = अपव्यय, तब्शीर = शुभ-सन्देश, ज़ालिम = अत्याचारी, शमशीर = तलवार..
दोहा गीतिका
'सलिल'
*
तुमको मालूम ही नहीं शोलों की तासीर।
तुम क्या जानो ख्वाब की कैसे हो ताबीर?
बहरे मिलकर सुन रहे गूँगों की तक़रीर।
बिलख रही जम्हूरियत, सिसक रही है पीर।
दहशतगर्दों की हुई है जबसे तक्सीर
वतनपरस्ती हो गयी खतरनाक तक्सीर।
फेंक द्रौपदी खुद रही फाड़-फाड़ निज चीर।
भीष्म द्रोण कूर कृष्ण संग, घूरें पांडव वीर।
हिम्मत मत हारें- करें, सब मिलकर तदबीर।
प्यार-मुहब्बत ही रहे मजहब की तफसीर।
सपनों को साकार कर, धरकर मन में धीर।
हर बाधा-संकट बने, पानी की प्राचीर।
हिंद और हिंदी करे दुनिया को तन्वीर।
बेहतर से बेहतर बने इन्सां की तस्वीर।
हाय! सियासत रह गयी, सिर्फ स्वार्थ-तज़्वीर।
खिदमत भूली, कर रही बातों की तब्ज़ीर।
तरस रहा मन 'सलिल' दे वक़्त एक तब्शीर।
शब्दों के आगे झुके, जालिम की शमशीर।
*********************************
तासीर = असर/ प्रभाव, ताबीर = कहना, तक़रीर = बात/भाषण, जम्हूरियत = लोकतंत्र, दहशतगर्दों = आतंकवादियों, तकसीर = बहुतायत, वतनपरस्ती = देशभक्ति, तकसीर = दोष/अपराध, तदबीर = उपाय, तफसीर = व्याख्या, तनवीर = प्रकाशित, तस्वीर = चित्र/छवि, ताज्वीर = कपट, खिदमत = सेवा, कौम = समाज, तब्जीर = अपव्यय, तब्शीर = शुभ-सन्देश, ज़ालिम = अत्याचारी, शमशीर = तलवार..
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करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
रविवार, 20 दिसंबर 2009
HINDI POETRIC TRANSLATION OF MEGHDOOTAM 51 to 55
HINDI POETRIC TRANSLATION OF MEGHDOOTAM 51 to 55
by Prof. C. B.Shrivastava
contact 0 9425806252
Note ... Publisher required
ब्रह्मावर्तं जनपदम अथ च्चायया गाहमानः
क्षेत्रं क्षत्रप्रधनपिशुनं कौरवं तद भजेथाः
राजन्यानां शितशरशतैर यत्र गाण्डीवधन्वा
धारापातैस त्वम इव कमलान्य अभ्यवर्षन मुखानि॥१.५१॥
उसे पार कर , रमणियों के नयन में
झूलाते हुये रूप अपना सुहाना
दशपुर निवासिनि चपल श्याम स्वेता
भ्रमर कुंद सी भ्रूलता में दिखाना
शब्दार्थ .. भ्रूलता भौंह रूपी लता अर्थात भौहो का चपल संचालन
हित्वा हालाम अभिमतरसां रेवतीलोचनाङ्कां
बन्धुप्रीत्या समरविमुखो लाङ्गली याः सिषेवे
कृत्वा तासाम अधिगमम अपां सौम्य सारस्वतीनाम
अन्तः शुद्धस त्वम अपि भविता वर्णमात्रेण कृष्णः॥१.५२॥
फिर छांहतन ! जा वहां पार्थ ने की
जहाँ वाण वर्षा कुरुक्षेत्र रण में
नृपति मुख विवर में कि ज्यों हो तुम्हारी
सघन धार वर्षा कमल पुष्प वन में
तस्माद गच्चेर अनुकनखलं शैलराजावतीर्णां
जाह्नोः कन्यां सगरतनयस्वर्गसोपानपङ्क्तिम
गौरीवक्त्रभ्रुकुटिरचनां या विहस्येव फेनैः
शम्भोः केशग्रहणम अकरोद इन्दुलग्नोर्मिहस्ता॥१.५३॥
गृहयुद्ध रत बन्धुजन प्रेम हित हो
विमुख युद्ध से त्याग मादक सुरा को
जिसे रेवती की मदिर दृष्टि ने
प्रेमरस घोलकर और मादक किया हो
बलराम ने जिस नदी नीर का सौभ्य
सेवन किया औ" लिया था सहारा
उसी सरस्वती का मधुर नीर पी
श्याम रंगतन ! हृदय शुद्ध होगा तुम्हारा
तस्याः पातुं सुरगज इव व्योम्नि पश्चार्धलम्बी
त्वं चेद अच्चस्फटिकविशदं तर्कयेस तिर्यग अम्भः
संसर्पन्त्या सपदि भवतः स्रोतसि च्चाययासौ
स्याद अस्थानोपगतयमुनासंगमेवाभिरामा॥१.५४॥
आगे तुम्हें हिमालय से उतरती
कनखल निकट मिलेगी जन्हुकन्या
सगर पुत्र हित स्वर्ग सोपान जो बन
धरा स्वर्ग संयोगिनी स्वयं धन्या
धरे चंद्र की कोर को उर्मिकर से
उमा का भृकुटि भंग उपहास करके
फेनिल तरल , मुक्त मधुहासिनी जो
जहाँ केश से लिप्त शंकर शिखर के
शब्दार्थ .. कनखल... हरिद्वार के निकट एक स्थान
जन्हुकन्या..गंगा नदी
आसीनानां सुरभितशिलं नाभिगन्धैर मृगाणां
तस्या एव प्रभवम अचलं प्राप्य गौरं तुषारैः
वक्ष्यस्य अध्वश्रमविनयेन तस्य शृङ्गे निषण्णः
शोभां शुभ्रां त्रिनयनवृषोत्खातपङ्कोपमेयम॥१.५५॥
सुरगज सदृश अर्द्ध अवनत गगनगंग
अति स्वच्छ जलपान उपक्रम करो जो
चपल नीर की धार में बिम्ब तो तब
दिखेगा कि अस्थान यमुना मिलन हो
शब्दार्थ .. गगनगंग..आकाशगंगा
अस्थान यमुना मिलन .. गंगा यमुना मिलन स्थल तो प्रयाग है , पर अस्थान ामिलन अर्थात प्रयाग के अतिरिक्त कही अंयत्र मिलना
by Prof. C. B.Shrivastava
contact 0 9425806252
Note ... Publisher required
ब्रह्मावर्तं जनपदम अथ च्चायया गाहमानः
क्षेत्रं क्षत्रप्रधनपिशुनं कौरवं तद भजेथाः
राजन्यानां शितशरशतैर यत्र गाण्डीवधन्वा
धारापातैस त्वम इव कमलान्य अभ्यवर्षन मुखानि॥१.५१॥
उसे पार कर , रमणियों के नयन में
झूलाते हुये रूप अपना सुहाना
दशपुर निवासिनि चपल श्याम स्वेता
भ्रमर कुंद सी भ्रूलता में दिखाना
शब्दार्थ .. भ्रूलता भौंह रूपी लता अर्थात भौहो का चपल संचालन
हित्वा हालाम अभिमतरसां रेवतीलोचनाङ्कां
बन्धुप्रीत्या समरविमुखो लाङ्गली याः सिषेवे
कृत्वा तासाम अधिगमम अपां सौम्य सारस्वतीनाम
अन्तः शुद्धस त्वम अपि भविता वर्णमात्रेण कृष्णः॥१.५२॥
फिर छांहतन ! जा वहां पार्थ ने की
जहाँ वाण वर्षा कुरुक्षेत्र रण में
नृपति मुख विवर में कि ज्यों हो तुम्हारी
सघन धार वर्षा कमल पुष्प वन में
तस्माद गच्चेर अनुकनखलं शैलराजावतीर्णां
जाह्नोः कन्यां सगरतनयस्वर्गसोपानपङ्क्तिम
गौरीवक्त्रभ्रुकुटिरचनां या विहस्येव फेनैः
शम्भोः केशग्रहणम अकरोद इन्दुलग्नोर्मिहस्ता॥१.५३॥
गृहयुद्ध रत बन्धुजन प्रेम हित हो
विमुख युद्ध से त्याग मादक सुरा को
जिसे रेवती की मदिर दृष्टि ने
प्रेमरस घोलकर और मादक किया हो
बलराम ने जिस नदी नीर का सौभ्य
सेवन किया औ" लिया था सहारा
उसी सरस्वती का मधुर नीर पी
श्याम रंगतन ! हृदय शुद्ध होगा तुम्हारा
तस्याः पातुं सुरगज इव व्योम्नि पश्चार्धलम्बी
त्वं चेद अच्चस्फटिकविशदं तर्कयेस तिर्यग अम्भः
संसर्पन्त्या सपदि भवतः स्रोतसि च्चाययासौ
स्याद अस्थानोपगतयमुनासंगमेवाभिरामा॥१.५४॥
आगे तुम्हें हिमालय से उतरती
कनखल निकट मिलेगी जन्हुकन्या
सगर पुत्र हित स्वर्ग सोपान जो बन
धरा स्वर्ग संयोगिनी स्वयं धन्या
धरे चंद्र की कोर को उर्मिकर से
उमा का भृकुटि भंग उपहास करके
फेनिल तरल , मुक्त मधुहासिनी जो
जहाँ केश से लिप्त शंकर शिखर के
शब्दार्थ .. कनखल... हरिद्वार के निकट एक स्थान
जन्हुकन्या..गंगा नदी
आसीनानां सुरभितशिलं नाभिगन्धैर मृगाणां
तस्या एव प्रभवम अचलं प्राप्य गौरं तुषारैः
वक्ष्यस्य अध्वश्रमविनयेन तस्य शृङ्गे निषण्णः
शोभां शुभ्रां त्रिनयनवृषोत्खातपङ्कोपमेयम॥१.५५॥
सुरगज सदृश अर्द्ध अवनत गगनगंग
अति स्वच्छ जलपान उपक्रम करो जो
चपल नीर की धार में बिम्ब तो तब
दिखेगा कि अस्थान यमुना मिलन हो
शब्दार्थ .. गगनगंग..आकाशगंगा
अस्थान यमुना मिलन .. गंगा यमुना मिलन स्थल तो प्रयाग है , पर अस्थान ामिलन अर्थात प्रयाग के अतिरिक्त कही अंयत्र मिलना
सामाजिक लेखन हेतु ११ वें रेड एण्ड व्हाईट पुरस्कार से सम्मानित .
"रामभरोसे", "कौआ कान ले गया" व्यंग संग्रहों ," आक्रोश" काव्य संग्रह ,"हिंदोस्तां हमारा " , "जादू शिक्षा का " नाटकों के माध्यम से अपने भीतर के रचनाकार की विवश अभिव्यक्ति को व्यक्त करने का दुस्साहस ..हम तो बोलेंगे ही कोई सुने न सुने .
यह लेखन वैचारिक अंतर्द्वंद है ,मेरे जैसे लेखकों का जो अपना श्रम, समय व धन लगाकर भी सच को "सच" कहने का साहस तो कर रहे हैं ..इस युग में .
लेखकीय शोषण , व पाठकहीनता की स्थितियां हम सबसे छिपी नहीं है , पर समय रचनाकारो के इस सारस्वत यज्ञ की आहुतियों का मूल्यांकन करेगा इसी आशा और विश्वास के साथ ..
नव गीत: सारे जग को/जान रहे हम -संजीव 'सलिल'
नव गीत:
सारे जग को/जान रहे हम
*
संजीव 'सलिल'
सारे जग को
जान रहे हम,
लेकिन खुद को
जान न पाए...
जब भी मुड़कर
पीछे देखा.
गलत मिला
कर्मों का लेखा.
एक नहीं
सौ बार अजाने
लाँघी थी निज
लछमन रेखा.
माया ममता
मोह लोभ में,
फँस पछताए-
जन्म गँवाए...
पाँच ज्ञान की,
पाँच कर्म की,
दस इन्द्रिय
तज राह धर्म की.
दशकन्धर तन
के बल ऐंठी-
दशरथ मन में
पीर मर्म की.
श्रवण कुमार
सत्य का वध कर,
खुद हैं- खुद से
आँख चुराए...
जो कैकेयी
जान बचाए.
स्वार्थ त्याग
सर्वार्थ सिखाये.
जनगण-हित
वन भेज राम को-
अपयश गरल
स्वयम पी जाये.
उस सा पौरुष
जिसे विधाता-
दे वह 'सलिल'
अमर हो जाये...
******************
सारे जग को/जान रहे हम
*
संजीव 'सलिल'
सारे जग को
जान रहे हम,
लेकिन खुद को
जान न पाए...
जब भी मुड़कर
पीछे देखा.
गलत मिला
कर्मों का लेखा.
एक नहीं
सौ बार अजाने
लाँघी थी निज
लछमन रेखा.
माया ममता
मोह लोभ में,
फँस पछताए-
जन्म गँवाए...
पाँच ज्ञान की,
पाँच कर्म की,
दस इन्द्रिय
तज राह धर्म की.
दशकन्धर तन
के बल ऐंठी-
दशरथ मन में
पीर मर्म की.
श्रवण कुमार
सत्य का वध कर,
खुद हैं- खुद से
आँख चुराए...
जो कैकेयी
जान बचाए.
स्वार्थ त्याग
सर्वार्थ सिखाये.
जनगण-हित
वन भेज राम को-
अपयश गरल
स्वयम पी जाये.
उस सा पौरुष
जिसे विधाता-
दे वह 'सलिल'
अमर हो जाये...
******************
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करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
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