*
आज वैश्विक मानसिक स्वास्थ्य दिवस
सॉनेट
*
तन वीणा मन तार साथ हों तो जीवन में हो आनंद
कम न एक से तनिक दूसरा यही सनातन सत्य सखे!
एक टूटता तो दूजा भी खंडित हो गा सके न छंद
इसको काँटा अगर चुभे तो वह भी पीड़ित रहे सखे!!
तन हो स्वस्थ्य और मन भी तो उसे रतन टाटा जानो
जो न कमाया जोड़े; बाँटे खुश हो सुख दे औरों को
जो जोड़े बिन काम उसे ही दीन-दुखी दानव मानो
देता-लेता ऊपरवाला माध्यम बना रहा हमको
सत्य समझ देकर मत दाता होने का घमंड पालो
मतदाता हो जिसे चुनोगे वही तुम्हें धोखा देगा
सुत ही आग लगाएगा यह जान उसे देखो-पालो
तुमने लिया पिता से जैसे वैसे सुत तुमसे लेगा
हल पल स्वास्थ्य दिवस जीवन में तन का मन का ध्यान रखो
अपने साथ दूसरों का भी स्वास्थ्य सुधारो मान रखो
***
कजरी
हरे रामा! चंद्रयान एक भेजा हरिकोटा से हे रामा!
हरे रामा! बाईस अक्टूबर सन दो हजार अठ हे रामा!
हरे रामा! भूवैज्ञानिक फ़ोटू खनिज रसायन रे रामा!
हरे रामा! सौ किलोमीटर दूरी से खींचे फ़ोटू रामा!
हरे रामा! हाई रिजोल्यूशन सेन्सिंग रिमोट से की रामा!
हरे रामा! चंद्रयान एक भेजा हरिकोटा से हे रामा!
हरे रामा! चंद्रयान दो भेजा हरिकोटा से हे रामा!
हरे रामा! बाईस जुलाई उन्नीस को उड़ पाया रे रामा!
हरे रामा! जीएसएलवी तीन करे प्रक्षेपित रे रामा!
हरे रामा! आर्बिटर-रोवर-लैंडर शामिल रे रामा!
हरे रामा! दक्षिण ध्रुव पर क्रेटर पानी पाना रे रामा!
हरे रामा! यान करे प्रक्षेपित रॉकेट बूस्टर रे रामा!
हरे रामा! डी आरबिटिंग मैनोवर नौ सेकेंड रहा रामा!
हरे रामा! आर्गन चालीस पाया बाहरी मण्डल में रामा!
हरे रामा! साराभाई क्रेटर का खींचा फोटू रामा!
हरे रामा! सात सितंबर उन्नीस लैंडिंग विफल हुई रामा!
हरे रामा! यान तीन एल वी एम थ्री ने लांच किया रामा!
हरे रामा! चौदह जुलाई तेइस को यह यान उड़ा रामा!
हरे रामा तेइस अगस्त तेइस को शशि पर उतरा रामा!
हरे रामा! सॉफ्ट लैंडिंग दक्षिण ध्रुव पर कीर्तिमान रामा!
हरे रामा! आल्टी मीटर, वेलोसिटी मीटर साथ गए रामा!
हरे रामा! लैंडर और प्रणोदन दो मॉड्यूल जुड़े रामा!
हरे रामा! प्लाज्मा के घनत्व का मापन किया हरे रामा!
हरे रामा! भू पर्पटी-मेंटल संरचना समझी रामा!
हरे रामा! खनिज-मृदा-पानी का किया अध्ययन रे रामा!
हरे रामा! दुनिया लोहा माने भारत कुशल-दक्ष रामा!
हरे रामा! फहर तिरंगा छोड़े चिह्न पदों के हे रामा!
हरे रामा! बिंदु शक्ति-शिव नामित नमन करें हम हे रामा!
१०.१०.२०२४
***
राजस्थानी मुक्तिका
*
घाघरियो घुमकाय
मरवण घणी सुहाय
*
गोरा-गोरा गाल
मरते दम मुसकाय
*
नैणा फोटू खैंच
हिरदै लई मँढाय
*
तारां छाई रात
जाग-जगा भरमाय
*
जनम-जनम रै संग
ऐसो लाड़ लड़ाय
*
देवी-देव मनाय
मरियो साथै जाय
१०-१०-२०२०
***
मुक्तिका
(१४ मात्रिक मानव जातीय छंद, यति ५-९)
मापनी- २१ २, २२ १ २२
*
आँख में बाकी न पानी
बुद्धि है कैसे सयानी?
.
है धरा प्यासी न भूलो
वासना, हावी न मानी
.
कौन है जो छोड़ देगा
स्वार्थ, होगा कौन दानी?
.
हैं निरुत्तर प्रश्न सारे
भूल उत्तर मौन मानी
.
शेष हैं नाते न रिश्ते
हो रही है खींचतानी
.
देवता भूखे रहे सो
पंडितों की मेहमानी
.
मैं रहूँ सच्चा विधाता!
तू बना देना न ज्ञानी
.
संजीव, १०.१०.२०१८
***
वन्दन
शरणागत हम
*
शरणागत हम
चित्रगुप्त प्रभु!
हाथ पसारे आये।
*
अनहद, अक्षय,अजर,अमर हे!
अमित, अभय,अविजित अविनाशी
निराकार-साकार तुम्हीं हो
निर्गुण-सगुण देव आकाशी।
पथ-पग, लक्ष्य, विजय-यश तुम हो
तुम मत-मतदाता प्रत्याशी।
तिमिर हटाने
अरुणागत हम
द्वार तिहांरे आये।
*
वर्ण, जात, भू, भाषा, सागर
अनिल, अनल,दिश, नभ, नद,गागर
तांडवरत नटराज ब्रम्ह तुम,
तुम ही बृज-रज के नटनागर।
पैग़ंबर, ईसा,गुरु बनकर
तारों अंश सृष्टि हे भास्वर!
आत्म जगा दो
चरणागत हम
झलक निहारें आये।
*
आदि-अंत, क्षय-क्षर विहीन हे!
असि-मसि,कलम-तूलिका हो तुम
गैर न कोई सब अपने हैं-
काया में हैं आत्म सभी हम।
जन्म-मरण,यश-अपयश चक्रित
छाया-माया,सुख-दुःख हो सम।
द्वेष भुला दो
करुणाकर हे!
सुनों पुकारें, आये।
*****
गुजराती अनुवाद
વન્દના
શરણાગત અમે
શરણાગત અમે
ચિત્રગુપ્ત પ્રભુ
હાથ પસારી આવ્યા .
અમાપ ,અખુંટા ,અજર ,અમર છે
અમિત ,અભય, અવિજયી, અવિનાશી,
નિરાકાર, સાકાર તમે છો
નિર્ગુણ ,સગુણ દેવ આકાશી
પથ -પગ લક્ષ્ય વિજય,યશ તમે છો
તમેજ મત -મતદાતા ,પ્રત્યાશી
અંધકાર મટાવા
સૂર્ય સમક્ષ અમે
દ્વાર તમારે આવ્યા .
વર્ણ ,જાત , ભૂ, ભાષા ,સાગર
અનિલ, અગ્નિ ,ખૂણો ,નભ, નદી ,ગાગર
તાંડવકરનાર નટરાજ બ્રહ્મ તમે
તમેજ બૃજ -રજ ના નટનાગર
પૈગમ્બર,ઈસા, ગુરુ બનીને
તારાજ અંશ શ્રુષ્ટિ છે ભાસ્વર
આત્મા જગાડવાને
ચરણાગત અમે
ઝલક નિહારવાને આવ્યા.
આદિ -અંત ,ક્ષય -ક્ષર વિહીન છે
કટાર-અંજન , કલમ તૂલિકા તમે છો
પારકા નથી કોઈ બધાંજ તમે છો
કાયા માં છે પોતાના બધા અમે
જન્મ -મરણ , યશ-અપયશ ચક્રીત
છાયા-માયા ,સુખ -દુઃખ સર્વ સરખા
દ્વેષ ભુલાવો
કરુણાકર છો
સાંભળો પોકારવાને આવ્યા .
મૂળ રચના :આચાર્ય સંજીવ વર્મા "સલિલ"
ભાવાનુવાદ :કલ્પના ભટ્ટ
***
मुक्तक सलिला
*
जीवन की आपाधापी ही है सरगम-संगीत
रास-लास परिहास इसी में मन से मन की प्रीत
जब जी चाहे चाहों-बाँहों का आश्रय गह लो
आँख मिचौली खेल समय सँग, हँसकर पा लो जीत
*
प्रीत की रीत सरस गीत हुई
मीत सँग श्वास भी संगीत हुई
आस ने प्यास को बुझने न दिया
बिन कहे खूब बातचीत हुई
*
क्या कहूँ, किस तरह कहूँ बोलो?
नित नई कल्पना का रस घोलो
रोक देना न कलम प्रभु! मेरी
छंद ही श्वास-श्वास में घोलो
*
छंद समझे बिना कहे जाते
ज्यों लहर-साथ हम बहे जाते
बुद्धि का जब अधिक प्रयोग किया
यूं लगा घाट पर रहे जाते
*
गेयता हो, न हो भाव रहे
रस रहे, बिम्ब रहे, चाव रहे
बात ही बात में कुछ बात बने
बीच पानी में 'सलिल' नाव रहे
*
छंद आते नहीं मगर लिखता
देखने योग्य नहीं, पर दिखता
कैसा बेढब है बजारी मौसम
कम अमृत पर अधिक गरल बिकता
*
छंद में ही सवाल करते हो
छंद का क्यों बवाल करते हो?
है जगत दन्द-फन्द में उलझा
छंद देकर निहाल करते हो
*
छंद-छंद में बसे हैं, नटखट आनंदकंद
भाव बिम्ब रस के कसे कितने-कैसे फन्द
सुलझा-समझाते नहीं, कहते हैं खुद बूझ
तब ही सीखेगा 'सलिल' विकसित होगी सूझ
*
खून न अपना अब किंचित बहने देंगे
आतंकों का अरि-खूं से बदला लेंगे
सहनशीलता की सीमा अब ख़त्म हुई
हर ईंटे के बदले में पत्थर देंगे
*
खून न अपना अब किंचित बहने देंगे
आतंकों का अरि-खूं से बदला लेंगे
सहनशीलता की सीमा अब ख़त्म हुई
हर ईंटे के बदले में पत्थर देंगे
* ·
कहाँ और कैसे हो कुछ बतलाओ तो
किसी सवेरे आ कुण्डी खटकाओ तो
बहुत दिनों से नहीं ठहाके लगा सका
बहुत जल चुका थोड़ा खून बढ़ाओ तो
*
क्षणिका :
पुज परनारी संग
श्री गणेश गोबर हुए
रूप - रूपए का खेल
पुजें परपुरुष साथ पर
लांछित हुईं न लक्ष्मी
दोहा :
तुलसी जब तुल सी गयी, नागफनी के साथ
वह अंदर यह हो गयी, बाहर विवश अनाथ.
सोरठा :
घटे रमा की चाह, चाह शारदा की बढ़े
गगन न देता छाँह, भले शीश पर जा चढ़े
जनक छंद :
नोबल आया हाथ जब
उठा गर्व से माथ तब
आँख खोलना शेष अब
हाइकु :
ईंट रेत का
मंदिर मनहर
देव लापता
मुक्तक :
मेरा गीत शहीद हो गया, दिल-दरवाज़ा नहीं खुला
दुनियादारी हुई तराज़ू, प्यार न इसमें कभी तुला
राह देख पथराती अखियाँ, आस निराश-उदास हुई
किस्मत गुपचुप रही देखती, कभी न पाई विहँस बुला
शे'र :
लिए हाथों में अपना सर चले पर
नहीं मंज़िल को सर कर सके अब तक
१०-१०-२०१६
***
लघुकथा:
बुद्धिजीवी और बहस
*
'आप बताते हैं कि बचपन में चौपाल पर रोज जाते थे और वहाँ बहुत कुछ सीखने को मिलता थ. क्या वहाँ पर ट्यूटर आते थे?'
'नहीं बेटा! वहाँ कुछ सयाने लोग आते थे जिनकी बातें शेष सभी लोग सुनते-समझते और उनसे पूछते भी थे.'
'अच्छा, तो वहाँ टी. वी. की तरह बहस और आरोप भी लगते होंगे?'
'नहीं, ऐसा तो कभी नहीं होता था'
'यह कैसे हो सकता है? लोग हों, वह भी बुद्धिजीवी और बहस न हो... आप गप्प तो नहीं मार रहे?'
दादा समझाते रहे पर पोता संतुष्ट न हो सका.
१०-१०-२०१४
***
दोहा सलिला :
*
शत वंदन मैया सजा, अद्भुत रूप अनूप
पूनम का राकेश हँस, निरखे रूप अरूप
सलिल-धार बरसा रहे, दर्शन कर घन श्याम
किये नीरजा ने सभी, कमल तुम्हारे नाम
मृदुल कीर्ति का कर रहीं, शार्दूला गुणगान
प्रतिभा अनुपम दिव्य तव, सकता कौन बखान
कुसुम किरण जिस चमन में, करती शर संधान
वहाँ बहार न लुट सके, मधुकर करते गान
मैया भारत भूमि को, ऐसे दें महिपाल
श्री प्रकाश से दीप्त हो, जिनका उन्नत भाल
कर महेश की वंदना, मिले अचल आनंद
ॐ प्रकाश निहारिये, रचकर सुमधुर छंद
प्रणव नाद कर भारती से पायें आशीष
सीता-राम सदय रहें, कृपा करें जगदीश
कंकर-कंकर में बसे, असित अजित अमरीश
धूप-छाँव सुख-दुःख तुम्हीं, श्वेत-श्याम अवनीश
ललित लास्य तुम हास्य तुम, रुदन तुम्हीं हो मौन
कहाँ न तुम?, क्या तुम नहीं? कह सकता है कौन?
रहा ज्ञान पर बुद्धि का, अंकुश प्रति पल नाथ
प्रभु-प्रताप से छंद रच, धन्य कलम ले हाथ
प्रभु सज्जन अमिताभ की, किरण छुए आकाश
नव दुर्गा को नमन कर, पाये दिव्य-प्रकाश
स्नेह-सलिल का आचमन, हरता सकल विकार
कलकल छलछल निनादित, नेह नर्मदा धार
१०-१०-२०१३
----
*
घाघरियो घुमकाय
मरवण घणी सुहाय
*
गोरा-गोरा गाल
मरते दम मुसकाय
*
नैणा फोटू खैंच
हिरदै लई मँढाय
*
तारां छाई रात
जाग-जगा भरमाय
*
जनम-जनम रै संग
ऐसो लाड़ लड़ाय
*
देवी-देव मनाय
मरियो साथै जाय
१०-१०-२०२०
***
मुक्तिका
(१४ मात्रिक मानव जातीय छंद, यति ५-९)
मापनी- २१ २, २२ १ २२
*
आँख में बाकी न पानी
बुद्धि है कैसे सयानी?
.
है धरा प्यासी न भूलो
वासना, हावी न मानी
.
कौन है जो छोड़ देगा
स्वार्थ, होगा कौन दानी?
.
हैं निरुत्तर प्रश्न सारे
भूल उत्तर मौन मानी
.
शेष हैं नाते न रिश्ते
हो रही है खींचतानी
.
देवता भूखे रहे सो
पंडितों की मेहमानी
.
मैं रहूँ सच्चा विधाता!
तू बना देना न ज्ञानी
.
संजीव, १०.१०.२०१८
***
वन्दन
शरणागत हम
*
शरणागत हम
चित्रगुप्त प्रभु!
हाथ पसारे आये।
*
अनहद, अक्षय,अजर,अमर हे!
अमित, अभय,अविजित अविनाशी
निराकार-साकार तुम्हीं हो
निर्गुण-सगुण देव आकाशी।
पथ-पग, लक्ष्य, विजय-यश तुम हो
तुम मत-मतदाता प्रत्याशी।
तिमिर हटाने
अरुणागत हम
द्वार तिहांरे आये।
*
वर्ण, जात, भू, भाषा, सागर
अनिल, अनल,दिश, नभ, नद,गागर
तांडवरत नटराज ब्रम्ह तुम,
तुम ही बृज-रज के नटनागर।
पैग़ंबर, ईसा,गुरु बनकर
तारों अंश सृष्टि हे भास्वर!
आत्म जगा दो
चरणागत हम
झलक निहारें आये।
*
आदि-अंत, क्षय-क्षर विहीन हे!
असि-मसि,कलम-तूलिका हो तुम
गैर न कोई सब अपने हैं-
काया में हैं आत्म सभी हम।
जन्म-मरण,यश-अपयश चक्रित
छाया-माया,सुख-दुःख हो सम।
द्वेष भुला दो
करुणाकर हे!
सुनों पुकारें, आये।
*****
गुजराती अनुवाद
વન્દના
શરણાગત અમે
શરણાગત અમે
ચિત્રગુપ્ત પ્રભુ
હાથ પસારી આવ્યા .
અમાપ ,અખુંટા ,અજર ,અમર છે
અમિત ,અભય, અવિજયી, અવિનાશી,
નિરાકાર, સાકાર તમે છો
નિર્ગુણ ,સગુણ દેવ આકાશી
પથ -પગ લક્ષ્ય વિજય,યશ તમે છો
તમેજ મત -મતદાતા ,પ્રત્યાશી
અંધકાર મટાવા
સૂર્ય સમક્ષ અમે
દ્વાર તમારે આવ્યા .
વર્ણ ,જાત , ભૂ, ભાષા ,સાગર
અનિલ, અગ્નિ ,ખૂણો ,નભ, નદી ,ગાગર
તાંડવકરનાર નટરાજ બ્રહ્મ તમે
તમેજ બૃજ -રજ ના નટનાગર
પૈગમ્બર,ઈસા, ગુરુ બનીને
તારાજ અંશ શ્રુષ્ટિ છે ભાસ્વર
આત્મા જગાડવાને
ચરણાગત અમે
ઝલક નિહારવાને આવ્યા.
આદિ -અંત ,ક્ષય -ક્ષર વિહીન છે
કટાર-અંજન , કલમ તૂલિકા તમે છો
પારકા નથી કોઈ બધાંજ તમે છો
કાયા માં છે પોતાના બધા અમે
જન્મ -મરણ , યશ-અપયશ ચક્રીત
છાયા-માયા ,સુખ -દુઃખ સર્વ સરખા
દ્વેષ ભુલાવો
કરુણાકર છો
સાંભળો પોકારવાને આવ્યા .
મૂળ રચના :આચાર્ય સંજીવ વર્મા "સલિલ"
ભાવાનુવાદ :કલ્પના ભટ્ટ
***
मुक्तक सलिला
*
जीवन की आपाधापी ही है सरगम-संगीत
रास-लास परिहास इसी में मन से मन की प्रीत
जब जी चाहे चाहों-बाँहों का आश्रय गह लो
आँख मिचौली खेल समय सँग, हँसकर पा लो जीत
*
प्रीत की रीत सरस गीत हुई
मीत सँग श्वास भी संगीत हुई
आस ने प्यास को बुझने न दिया
बिन कहे खूब बातचीत हुई
*
क्या कहूँ, किस तरह कहूँ बोलो?
नित नई कल्पना का रस घोलो
रोक देना न कलम प्रभु! मेरी
छंद ही श्वास-श्वास में घोलो
*
छंद समझे बिना कहे जाते
ज्यों लहर-साथ हम बहे जाते
बुद्धि का जब अधिक प्रयोग किया
यूं लगा घाट पर रहे जाते
*
गेयता हो, न हो भाव रहे
रस रहे, बिम्ब रहे, चाव रहे
बात ही बात में कुछ बात बने
बीच पानी में 'सलिल' नाव रहे
*
छंद आते नहीं मगर लिखता
देखने योग्य नहीं, पर दिखता
कैसा बेढब है बजारी मौसम
कम अमृत पर अधिक गरल बिकता
*
छंद में ही सवाल करते हो
छंद का क्यों बवाल करते हो?
है जगत दन्द-फन्द में उलझा
छंद देकर निहाल करते हो
*
छंद-छंद में बसे हैं, नटखट आनंदकंद
भाव बिम्ब रस के कसे कितने-कैसे फन्द
सुलझा-समझाते नहीं, कहते हैं खुद बूझ
तब ही सीखेगा 'सलिल' विकसित होगी सूझ
*
खून न अपना अब किंचित बहने देंगे
आतंकों का अरि-खूं से बदला लेंगे
सहनशीलता की सीमा अब ख़त्म हुई
हर ईंटे के बदले में पत्थर देंगे
*
खून न अपना अब किंचित बहने देंगे
आतंकों का अरि-खूं से बदला लेंगे
सहनशीलता की सीमा अब ख़त्म हुई
हर ईंटे के बदले में पत्थर देंगे
* ·
कहाँ और कैसे हो कुछ बतलाओ तो
किसी सवेरे आ कुण्डी खटकाओ तो
बहुत दिनों से नहीं ठहाके लगा सका
बहुत जल चुका थोड़ा खून बढ़ाओ तो
*
क्षणिका :
पुज परनारी संग
श्री गणेश गोबर हुए
रूप - रूपए का खेल
पुजें परपुरुष साथ पर
लांछित हुईं न लक्ष्मी
दोहा :
तुलसी जब तुल सी गयी, नागफनी के साथ
वह अंदर यह हो गयी, बाहर विवश अनाथ.
सोरठा :
घटे रमा की चाह, चाह शारदा की बढ़े
गगन न देता छाँह, भले शीश पर जा चढ़े
जनक छंद :
नोबल आया हाथ जब
उठा गर्व से माथ तब
आँख खोलना शेष अब
हाइकु :
ईंट रेत का
मंदिर मनहर
देव लापता
मुक्तक :
मेरा गीत शहीद हो गया, दिल-दरवाज़ा नहीं खुला
दुनियादारी हुई तराज़ू, प्यार न इसमें कभी तुला
राह देख पथराती अखियाँ, आस निराश-उदास हुई
किस्मत गुपचुप रही देखती, कभी न पाई विहँस बुला
शे'र :
लिए हाथों में अपना सर चले पर
नहीं मंज़िल को सर कर सके अब तक
१०-१०-२०१६
***
लघुकथा:
बुद्धिजीवी और बहस
*
'आप बताते हैं कि बचपन में चौपाल पर रोज जाते थे और वहाँ बहुत कुछ सीखने को मिलता थ. क्या वहाँ पर ट्यूटर आते थे?'
'नहीं बेटा! वहाँ कुछ सयाने लोग आते थे जिनकी बातें शेष सभी लोग सुनते-समझते और उनसे पूछते भी थे.'
'अच्छा, तो वहाँ टी. वी. की तरह बहस और आरोप भी लगते होंगे?'
'नहीं, ऐसा तो कभी नहीं होता था'
'यह कैसे हो सकता है? लोग हों, वह भी बुद्धिजीवी और बहस न हो... आप गप्प तो नहीं मार रहे?'
दादा समझाते रहे पर पोता संतुष्ट न हो सका.
१०-१०-२०१४
***
दोहा सलिला :
*
शत वंदन मैया सजा, अद्भुत रूप अनूप
पूनम का राकेश हँस, निरखे रूप अरूप
सलिल-धार बरसा रहे, दर्शन कर घन श्याम
किये नीरजा ने सभी, कमल तुम्हारे नाम
मृदुल कीर्ति का कर रहीं, शार्दूला गुणगान
प्रतिभा अनुपम दिव्य तव, सकता कौन बखान
कुसुम किरण जिस चमन में, करती शर संधान
वहाँ बहार न लुट सके, मधुकर करते गान
मैया भारत भूमि को, ऐसे दें महिपाल
श्री प्रकाश से दीप्त हो, जिनका उन्नत भाल
कर महेश की वंदना, मिले अचल आनंद
ॐ प्रकाश निहारिये, रचकर सुमधुर छंद
प्रणव नाद कर भारती से पायें आशीष
सीता-राम सदय रहें, कृपा करें जगदीश
कंकर-कंकर में बसे, असित अजित अमरीश
धूप-छाँव सुख-दुःख तुम्हीं, श्वेत-श्याम अवनीश
ललित लास्य तुम हास्य तुम, रुदन तुम्हीं हो मौन
कहाँ न तुम?, क्या तुम नहीं? कह सकता है कौन?
रहा ज्ञान पर बुद्धि का, अंकुश प्रति पल नाथ
प्रभु-प्रताप से छंद रच, धन्य कलम ले हाथ
प्रभु सज्जन अमिताभ की, किरण छुए आकाश
नव दुर्गा को नमन कर, पाये दिव्य-प्रकाश
स्नेह-सलिल का आचमन, हरता सकल विकार
कलकल छलछल निनादित, नेह नर्मदा धार
१०-१०-२०१३
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