सलिल सृजन अक्टूबर १६
*
सदा सुहागिन
बेला वेणी साथ ले, आए गेंदा राज।
सदासुहागिन छुइमुई, भागी आई लाज।।
*
बारह मासों साथ दे, धूप रहे या छाँव।
सदा सुहागिन सब जगह, नगर खेत या गाँव।।
*
साथ पवन के झूमते, श्वेत- बैंगनी फूल।
ठंडी-गरमी हँस सहें, नहीं चुभाते शूल।।
*
सर ला मैडम को रहे, भेंट सुमन गलहार।
सदा सुहागन हँस कहे, गीत रचो साभार।।
*
सॉनेट
सदा सुहागिन
•
खिलती-हँसती सदा सुहागिन।
प्रिय-बाहों में रहे चहकती।
वर्षा-गर्मी हँसकर सहती।।
करे मकां-घर सदा सुहागिन।।
गमला; क्यारी या वन-उपवन।
जड़ें जमा ले, नहीं भटकती।
बाधाओं से नहीं अटकती।।
कहीं न होती किंचित उन्मन।।
दूर व्याधियाँ अगिन भगाती।
अपनों को संबल दे-पाती।
जीवट की जय जय गुंजाती।।
है अविनाशी सदा सुहागिन।
प्रिय-मन-वासी सदा सुहागिन।
बारहमासी सदा सुहागिन
•••
मुक्तक
*
'पुष्पा' महका जीवन पूरा, 'गीता' पढ़कर हर मानव का।
'राम रतन' जड़ गया श्वास में, गहना आस ध्येय हो सबका।।
'छाया' है 'बसंत' की पल-पल, यह 'प्रताप' रेवा मैया का-
'निशि'-वासर 'जिज्ञासु' रहे मन, दर्श करें 'गिरीश' तांडव का।।
*
'आकांक्षा' 'अनुकृति' हो पाएँ, अपने आदर्शों की हम भी।
आँसू पोंछ सकें कोई हम, हों 'एकांश' प्रकृति संग ही।।
बनें सहारा निर्बल का हरि, दीनबंधु बन पाए सत्ता-
लिखें कहानी बार-बार हम, नचिकेता यम की।।
*
'विजय' वर सके 'ममता' नारी, 'श्रद्धा' की सींचें फुलवारी।
भाष 'सुभाष' छू सके दिल को, महका दें भारत की क्यारी।।
जगवाणी हो हिन्दी अपनी, बुद्धि 'विनीता' रहे हमेशा -
कंकर में शंकर देखें हम, आदमियत हो मंज़िल न्यारी।।
१६-१०-२०२१
***
गीत
*
लछमी मैया!
माटी का कछु कर्ज चुकाओ
*
देस बँट रहो,
नेह घट रहो,
लील रई दीपक खों झालर
नेह-गेह तज देह बजारू
भई; कैत है प्रगतिसील हम।
हैप्पी दीवाली
अनहैप्पी बैस्ट विशेज से पिंड छुड़ाओ
*
मूँड़ मुड़ाए
ओले पड़ रए
मूरत लगे अवध में भारी
कहूँ दूर बनवास बिता रई
अबला निबल सिया-सत मारी
हाय! सियासत
अंधभक्त हौ-हौ कर रए रे
तनिक चुपाओ
*
नकली टँसुए
रोज बहाउत
नेता गगनबिहारी बन खें
डूब बाढ़ में जनगण मर रओ
नित बिदेस में घूमें तन खें
दारू बेच;
पिला; मत पीना कैती जो
बो नीति मिटाओ
१६-१०-२०१९
***
स्थानापन्न शब्द
क्रमांक - वाक्यांश या शब्द-समूह - शब्द
०१.जिसका जन्म नहीं होता अजन्मा
०२. पुस्तकों की समीक्षा करने वाला समीक्षक , आलोचक
०३. जिसे गिना न जा सके अगणित
०४. जो कुछ भी नहीं जानता हो अज्ञ
०५ . जो बहुत थोड़ा जानता हो अल्पज्ञ
०६. जिसकी आशा न की गई हो अप्रत्याशित
०७. जो इन्द्रियों से परे हो अगोचर
०८. जो विधान के विपरीत हो अवैधानिक
०९. जो संविधान के प्रतिकूल हो असंवैधानिक
१०. जिसे भले -बुरे का ज्ञान न हो अविवेकी
११. जिसके समान कोई दूसरा न हो अद्वितीय
१२. जिसे वाणी व्यक्त न कर सके अनिर्वचनीय
१३. जैसा पहले कभी न हुआ हो अभूतपूर्व
१४. जो व्यर्थ का व्यय करता हो अपव्ययी
१५. बहुत कम खर्च करने वाला मितव्ययी
१६. सरकारी गजट में छपी सूचना अधिसूचना
१७. जिसके पास कुछ भी न हो अकिंचन
१८. दोपहर के बाद का समय अपराह्न
१९. जिसका निवारण न हो सके अनिवार्य
२०. देहरी पर चित्रकारी अल्पना
२१. आदि से अन्त तक
२२. जिसका परिहार सम्भव न हो अपरिहार्य
२३. जो ग्रहण करने योग्य न हो अग्राह्य
२४ जिसे प्राप्त न किया जा सके अप्राप्य
२५. जिसका उपचार सम्भव न हो असाध्य
२६. जिसे भगवान में विश्वास हो आस्तिक
२७. जिसे भगवान में विश्वास न हो नास्तिक
२८. आशा से अधिक आशातीत
२९. ऋषि की कही गई बात आर्ष
३०. पैर से मस्तक तक आपादमस्तक
३१. अत्यंत लगन एवं परिश्रम वाला अध्यवसायी
३२. आतंक फैलाने वाला आंतकवादी
३३. विदेश से कोई वस्तु मँगाना आयात
३४. जो तुरंत कविता बना सके आशुकवि
३५. नीले रंग का फूल इन्दीवर
३६. उत्तर-पूर्व का कोण ईशान
३७. जिसके हाथ में चक्र हो चक्रपाणि
३८. जिसके मस्तक पर चन्द्रमा हो चन्द्रमौलि
३९. जो दूसरों के दोष खोजे छिद्रान्वेषी
४०. जानने की इच्छा जिज्ञासा
४१. जानने को इच्छुक जिज्ञासु
४२. जीवित रहने की इच्छा जिजीविषा
४३. इन्द्रियों को जीतनेवाला जितेन्द्रिय
४४. जीतने की इच्छा वाला जिगीषु
४५. जहाँ सिक्के ढाले जाते हैं टकसाल
४६. जो त्यागने योग्य हो त्याज्य
४७. जिसे पार करना कठिन हो दुस्तर
४८. जंगल की आग दावाग्नि
४९. गोद लिया हुआ पुत्र दत्तक
५०. बिना पलक झपकाए हुए निर्निमेष
५१. जिसमें कोई विवाद ही न हो निर्विवाद
५२. जो निन्दा के योग्य हो निन्दनीय
५३. मांस रहित भोजन निरामिष
५४. रात्रि में विचरण करनेवाला निशाचर
५५. किसी विषय का पूर्ण ज्ञाता पारंगत
५६. पृथ्वी से सम्बन्धित पार्थिव
५७. रात्रि का प्रथम प्रहर प्रदोष
५८. जिसे तुरंत उचित उत्तर सूझ जाए प्रत्युत्पन्नमति
५९. मोक्ष का इच्छुक मुमुक्षु
६०. मृत्यु का इच्छुक मुमूर्षु
६१. युद्ध की इच्छा रखनेवाला युयुत्सु
६२. जो विधि के अनुकूल है वैध
६३. जो बहुत बोलता हो वाचाल
६४. शरण पाने का इच्छुक शरणार्थी
६५. सौ वर्ष का समय शताब्दी
६६. शिव का उपासक शैव
६७. देवी का उपासक शाक्त
६८. समान रूप से ठंडा और गर्म समशीतोष्ण
६९. जो सदा से चला आ रहा हो सनातन
७०. समान दृष्टि से देखने वाला समदर्शी
७१. जो क्षण भर में नष्ट हो जाए क्षणभंगुर
७२. फूलों का गुच्छा स्तवक
७३. संगीत जाननेवाला संगीतज्ञ
७४. जिसने मुकदमा किया है वादी
७५. जिसके विरुद्ध मुकदमा हो प्रतिवादी
७६. मधुर बोलने वाला मधुरभाषी
७७. धरती-आकाश के बीच का स्थान अंतरिक्ष
७८. महावत के हाथ का लोहे का हुक अंकुश
७९. जो बुलाया न गया हो अनाहूत,
८०. सीमा का अनुचित उल्लंघन अतिक्रमण
८१. जिसका पति विदेश चला गया हो प्रोषित पतिका
८२. जिसका पति विदेश से आया हो आगत पतिका
८३. जिसका पति परदेश जानेवाला हो प्रवत्स्यत्पतिका
८४. जिसका मन दूसरी ओर हो अन्यमनस्क
८५. संध्या और रात्रि के बीच की वेला गोधूलि
८६. माया करनेवाला मायावी
८७. टूटी-फूटी इमारत का अंश भग्नावशेष
८८. दोपहर से पहले का समय पूर्वाह्न
८९. कनक जैसी आभावाला कनकाभ
९०. हृदय को विदीर्ण कर देनेवाला हृदय विदारक
९१. हाथ से कार्य करने का कौशल हस्तलाघव
९२. स्त्रियों से हाव-भाववाला पुरुष स्त्रैण
९३. जो लौटकर आया है प्रत्यागत
९४. जो कार्य कठिनता से हो सके दुष्कर
९५. जो देखा न जा सके अलक्ष्य
९६. बाएँ हाथ से तीर चला सकनेवाला सव्यसाची
९७. वह स्त्री जिसे सूर्य ने भी न देखा हो असूर्यम्पश्या
९८. हाथी पर बैठने हेतु आसंदी हौदा
९९. जिसे साधना सम्भव न हो असाध्य
१००. अन्य की जगह अस्थाई नियुक्त स्थानापन्न***
***
क्रमांक - वाक्यांश या शब्द-समूह - शब्द
०१.जिसका जन्म नहीं होता अजन्मा
०२. पुस्तकों की समीक्षा करने वाला समीक्षक , आलोचक
०३. जिसे गिना न जा सके अगणित
०४. जो कुछ भी नहीं जानता हो अज्ञ
०५ . जो बहुत थोड़ा जानता हो अल्पज्ञ
०६. जिसकी आशा न की गई हो अप्रत्याशित
०७. जो इन्द्रियों से परे हो अगोचर
०८. जो विधान के विपरीत हो अवैधानिक
०९. जो संविधान के प्रतिकूल हो असंवैधानिक
१०. जिसे भले -बुरे का ज्ञान न हो अविवेकी
११. जिसके समान कोई दूसरा न हो अद्वितीय
१२. जिसे वाणी व्यक्त न कर सके अनिर्वचनीय
१३. जैसा पहले कभी न हुआ हो अभूतपूर्व
१४. जो व्यर्थ का व्यय करता हो अपव्ययी
१५. बहुत कम खर्च करने वाला मितव्ययी
१६. सरकारी गजट में छपी सूचना अधिसूचना
१७. जिसके पास कुछ भी न हो अकिंचन
१८. दोपहर के बाद का समय अपराह्न
१९. जिसका निवारण न हो सके अनिवार्य
२०. देहरी पर चित्रकारी अल्पना
२१. आदि से अन्त तक
२२. जिसका परिहार सम्भव न हो अपरिहार्य
२३. जो ग्रहण करने योग्य न हो अग्राह्य
२४ जिसे प्राप्त न किया जा सके अप्राप्य
२५. जिसका उपचार सम्भव न हो असाध्य
२६. जिसे भगवान में विश्वास हो आस्तिक
२७. जिसे भगवान में विश्वास न हो नास्तिक
२८. आशा से अधिक आशातीत
२९. ऋषि की कही गई बात आर्ष
३०. पैर से मस्तक तक आपादमस्तक
३१. अत्यंत लगन एवं परिश्रम वाला अध्यवसायी
३२. आतंक फैलाने वाला आंतकवादी
३३. विदेश से कोई वस्तु मँगाना आयात
३४. जो तुरंत कविता बना सके आशुकवि
३५. नीले रंग का फूल इन्दीवर
३६. उत्तर-पूर्व का कोण ईशान
३७. जिसके हाथ में चक्र हो चक्रपाणि
३८. जिसके मस्तक पर चन्द्रमा हो चन्द्रमौलि
३९. जो दूसरों के दोष खोजे छिद्रान्वेषी
४०. जानने की इच्छा जिज्ञासा
४१. जानने को इच्छुक जिज्ञासु
४२. जीवित रहने की इच्छा जिजीविषा
४३. इन्द्रियों को जीतनेवाला जितेन्द्रिय
४४. जीतने की इच्छा वाला जिगीषु
४५. जहाँ सिक्के ढाले जाते हैं टकसाल
४६. जो त्यागने योग्य हो त्याज्य
४७. जिसे पार करना कठिन हो दुस्तर
४८. जंगल की आग दावाग्नि
४९. गोद लिया हुआ पुत्र दत्तक
५०. बिना पलक झपकाए हुए निर्निमेष
५१. जिसमें कोई विवाद ही न हो निर्विवाद
५२. जो निन्दा के योग्य हो निन्दनीय
५३. मांस रहित भोजन निरामिष
५४. रात्रि में विचरण करनेवाला निशाचर
५५. किसी विषय का पूर्ण ज्ञाता पारंगत
५६. पृथ्वी से सम्बन्धित पार्थिव
५७. रात्रि का प्रथम प्रहर प्रदोष
५८. जिसे तुरंत उचित उत्तर सूझ जाए प्रत्युत्पन्नमति
५९. मोक्ष का इच्छुक मुमुक्षु
६०. मृत्यु का इच्छुक मुमूर्षु
६१. युद्ध की इच्छा रखनेवाला युयुत्सु
६२. जो विधि के अनुकूल है वैध
६३. जो बहुत बोलता हो वाचाल
६४. शरण पाने का इच्छुक शरणार्थी
६५. सौ वर्ष का समय शताब्दी
६६. शिव का उपासक शैव
६७. देवी का उपासक शाक्त
६८. समान रूप से ठंडा और गर्म समशीतोष्ण
६९. जो सदा से चला आ रहा हो सनातन
७०. समान दृष्टि से देखने वाला समदर्शी
७१. जो क्षण भर में नष्ट हो जाए क्षणभंगुर
७२. फूलों का गुच्छा स्तवक
७३. संगीत जाननेवाला संगीतज्ञ
७४. जिसने मुकदमा किया है वादी
७५. जिसके विरुद्ध मुकदमा हो प्रतिवादी
७६. मधुर बोलने वाला मधुरभाषी
७७. धरती-आकाश के बीच का स्थान अंतरिक्ष
७८. महावत के हाथ का लोहे का हुक अंकुश
७९. जो बुलाया न गया हो अनाहूत,
८०. सीमा का अनुचित उल्लंघन अतिक्रमण
८१. जिसका पति विदेश चला गया हो प्रोषित पतिका
८२. जिसका पति विदेश से आया हो आगत पतिका
८३. जिसका पति परदेश जानेवाला हो प्रवत्स्यत्पतिका
८४. जिसका मन दूसरी ओर हो अन्यमनस्क
८५. संध्या और रात्रि के बीच की वेला गोधूलि
८६. माया करनेवाला मायावी
८७. टूटी-फूटी इमारत का अंश भग्नावशेष
८८. दोपहर से पहले का समय पूर्वाह्न
८९. कनक जैसी आभावाला कनकाभ
९०. हृदय को विदीर्ण कर देनेवाला हृदय विदारक
९१. हाथ से कार्य करने का कौशल हस्तलाघव
९२. स्त्रियों से हाव-भाववाला पुरुष स्त्रैण
९३. जो लौटकर आया है प्रत्यागत
९४. जो कार्य कठिनता से हो सके दुष्कर
९५. जो देखा न जा सके अलक्ष्य
९६. बाएँ हाथ से तीर चला सकनेवाला सव्यसाची
९७. वह स्त्री जिसे सूर्य ने भी न देखा हो असूर्यम्पश्या
९८. हाथी पर बैठने हेतु आसंदी हौदा
९९. जिसे साधना सम्भव न हो असाध्य
१००. अन्य की जगह अस्थाई नियुक्त स्थानापन्न***
***
दोहा
पहले खुद को परख लूँ, तब देखूँ अन्यत्र
अपना खत खोला नहीं, पा औरों का पत्र
१६-१०-२०१७
***
अलंकार सलिला : २२ : रूपक अलंकार
एक वर्ण्य का हो 'सलिल', दूजे पर आरोप
अलंकार रूपक करे, इसका उसमें लोप
*
इसको उसका रूप दे, रूपक कहता बात
रूप-छटा मन मोह ले, अलंकार विख्यात
*
किसी वस्तु को दे 'सलिल', जब दूजी का रूप
अलंकार रूपक कहे, निरखो छटा अनूप
*
जब कवि एक व्यक्ति या वस्तु को किसी दूसरे व्यक्ति या वस्तु रूप देता है तो रूपक अलंकार होता है। रूपक में मूल का अन्य में उसी तरह लोप होना बताया बताया जाता है जैसे नाटक में पात्र के रूप में अभिनेता खुद को विलीन कर देता है।
उदाहरण:
१. चरन-सरोज पखारन लागा
२. निष्कलंक यश- मयंक,
पैठ सलिल-धार-अंक
रूप निज निहारता
जब प्रस्तुत या उपमेय पर अप्रस्तुत या उपमान का निषेधरहित आरोप किया जाता है तब रूपक अलंकार होता है। यह आरोप २ प्रकार का होता है। प्रथम अभेदात्मक या वास्तविक तथा द्वितीय भेदात्मक, तद्रूपात्मक या आहार्य। इस आधार पर रूपक के २ प्रकार या रूप हैं। अ. अभेद रूपक एवं आ. तद्रूप रूपक।
उक्त दोनों के ३ उप भेद क. सम, ख. अधिक तथा ग. न्यून हैं।
उदाहरण:
क. सम अभेद रूपक:
१. उदित उदय गिरि मंच पर, रघुवर बाल पतंग
विकसे संत सरोज सब, हरषे लोचन भृंग
२. नेह-नर्मदा नहाकर, मन-मयूर के नाम
तन्मय तन ने लिख दिया, चिन्मय चित बेदाम
ख. अधिक अभेद रूपक:
जिस अभेद रूपक में समानता होते हुए भी उपमेय को उपमान से कुछ अधिक दिखाया या बताया जाता वहाँ अधिक अभेद रूपक अलंकार होता है।
उदाहरण:
१. नव वधु विमल तात जस तोरा। रघुवर किंकर कुमुद चकोरा ।।
उदित सदा अथ इहि कबहू ना। घटिहि न जग नभ दिन-दिन दूना।।
२. केसरि रंग के अंग की वास वसी रहै याही से पास घनेरी।
चित्रमयी क्षिति भीति सवै रघुनाथ लसै प्रतिबिंबिनि घेरी।।
प्यारी के रूप अनूप की और कहाँ लौ कहौं महिमा बहुतेरी।
आनन चंद की कैसी अमंद रहै घर में दिन-रात उजेरी।।
ग. न्यून या हीन अभेद रूपक:
जहाँ उपमेय में उपमान से कुछ कमी होने पर भी अभेदता स्पष्ट की जाती है, वहाँ न्यून या हीन अभेद रूपक अलंकार होता है।
उदाहरण:
१. उषा रंगीली किन्तु सजनि उसमें वह अनुराग नहीं
निर्झर में अक्षय स्वर-प्रवाह है पर वह विकल विराग नहीं
ज्योत्स्ना में उज्ज्वलता है पर वह प्राणों का मुस्कान नहीं
फूलों में हैं वे अधर किंतु उनमें वह मादक गान नहीं
२. आई हौं देखि सराहे न जात हैं, या विधि घूँघट में फरके हैं
मैं तो जानी मिले दोउ पीछे ह्वै कान लख्यो कि उन्हें हरके हैं
रंगनि ते रूचि ते रघुनाथ विचारु करें कर्ता करके हैं
अंजन वारे बड़े दृग प्यारि के खंजन प्यारे बिना परके हैं
च. सम तद्रूप रूपक :
जहाँ उपमेय को उपमान का दूसरा रूप कहा जाता है वहाँ सम रूपक अलंकार होता है।
उदाहरण:
१. दृग कूँदन को दुखहरन, सीत करन मनदेस
यह वनिता भुव लोक की, चन्द्रकला शुभ वेस
२. मन-मेकल गिरिशिखर से, नेह-नर्मदा धार
बह तन-मन की प्यास हर, बाँटे हर्ष अपार
छ. अधिक तद्रूप :
जब उपमेय और उपमान की तद्रूपता दर्शायी जाते समय उपमेय में कोई बात अधिक हो, तब अधिक तद्रूप रूपक अलंकार होता है।
उदाहरण:
१. लगत कलानिधि चाँदनी, निशि में ही अभिराम
दिपति अपर विधु वदन की, आभा आठों जाम
२. अर्धांगिनी बहिना सुता, नहीं किसी का मोल
माँ की ममता है मगर, सचमुच ही अनमोल
ज. न्यून या हीन तद्रूप रूपक :
जहाँ उपमेय में उपमान से यत्किंचित न्यून गुण होने पर भी तद्रूपता दिखाई जाए, वहाँ न्यून तद्रूप रूपक अलंकार होता है।
उदाहरण:
१. दुइ भुज के हरि रघुवर सुंदर वेष
एक जीभ के लछिमन दूसर सेष
रस भरे यश भरे कहै कवि रघुनाथ रंग भरे रूप भरे खरे अंग कल के
कमलनिवास परिपूरन सुवास आस भावते के चंचरीक लोचन चपल के
जगमग करत भरत ड्यटी दीह पोषे जोबन दिनेश के सुदेश भुजबल के
गाइबे के जोग भये ऐसे हैं अम्मल फूले तेरे नैन कोमल कमल बिनु जल के
२. राम-श्याम अभिराम हैं, दोनों हरि के रूप
लड़ते-लड़वाते रहे, जीत-जिता अपरूप
रूपक के ३ अन्य भेद सांग, निरंग तथा परम्परित हैं।
इ. सांग रूपक :
जब उपमेय का उपमान पर आरोप करते समय उपमेय के अंगों का भी उपमान के अंगों पर आरोप किया जाए तो वहां सांग (अंग सहित) रूपक होता है। सांग में उपमेय-उपमान समानता स्थापित करते समय उनके अंगों की भी समानता स्थापित की जाती है।
उदाहरण:
१. ऊधो! मेरा हृदयतल था एक उद्यान न्यारा
शोभा देतीं अमित उसमें कल्पना-क्यारियाँ थीं
न्यारे-न्यारे कुसुम कितने भावों के थे अनेकों
उत्साहों के विपुल विटपी मुग्धकारी महा थे
लोनी-लोनी नवल लतिका थीं अनेकों उमंगें
सद्वाञ्छा के विहग उसके मंजुभाषी बड़े थे
धीरे-धीरे मधुर हिलतीं वासना-बेलियाँ थीं
प्यारी आशा-पवन जब थी डोलती स्निग्ध हो के
यहाँ ह्रदय को उद्यान बताते हुए उद्यान के अंगों की हृदय के अंगों से सामंता स्थापित की गई है: उद्यान - ह्रदय, क्यारियाँ -कल्पनाएँ, कुसुम - ह्रदय के विविध भाव, वृक्ष - उत्साह, लतिकाएँ - उमंगें, पक्षी - सदवांछाएँ, बेलें - वासनाएँ, पवन - आशा। लोनी = सुन्दर।
२. मेरे मस्तक के छत्र मुकुट वसुकाल सर्पिणी के शतफन
मुझ चिर कुमारिका के ललाट में नित्य नवीन रुधिर चंदन
आँजा करती हूँ चितधूम् का ड्रग में अंध तिमिर अञ्जन
श्रृंगार लपट की चीयर पहन, नचा करती मैं छूमछनन
क्रांति की नर्तकी से सामंता स्थापित करते हुए उनके अंगों की समानता (छत्र मुकुट - शत फन, रुधिर - चन्दन, चिताधूम - तिमिरअंजन, लपट - चीर) दर्शायी गयी है।
३. निर्वासित थे राम, राज्य था कानन में भी
सच ही है श्रीमान! भोगते सुख वन में भी
चंद्रातप था व्योम तारका रत्न जड़े थे
स्वच्छ दीप था सोम, प्रजा तरु-पुञ्ज खड़े थे
शांत नदी का स्रोत बिछा था, अति सुखकारी
कमल-कली का नृत्य हो रहा था मन-हारी
यहाँ कानन और राज्य का साम्य स्थापित करते समय अंगोंपांगों का साम्य (चन्द्रातप - व्योम, रत्न - तारे, दीप - चन्द्रमा, प्रजा - तरु-पुञ्ज, बिछावन - शांत नदी का स्रोत, नर्तकी - कमल कली) दृष्टव्य है।
४. कौशिक रूप पयोनिधि पावन, प्रेम-वारि अवगाह सुहावन
राम-रूप राकेस निहारी, बढ़ी बीचि पुलकावलि बाढ़ी
विश्वामित्र - समुद्र, प्रेम - पानी, राम - चण्द्रमा, पुलकावलि - लहर। कौशिक = विश्वामित्र, पयोनिधि - समुद्र, बीचि = तरंग।
५. बरखा ऋतु रघुपति-भगति, तुलसी सालि-सु-दास
राम-नाम बर बरन जुग, सावन-भदों मास
राम-भक्ति - वर्षा, तुलसी जैसे रामभक्त = धान, रा म - सावन-भादों।
६. हरिमुख पंकज भ्रुव धनुष, खंजन लोचन नित्त
बिम्ब अधर कुंडल मकर, बसे रहत मो चित्त
हरिमुख - पंकज, भ्रुव - धनुष, खंजन - लोचन, बिम्ब - अधर, कुंडल - मकर।
७. चन्दन सा वदन, चंचल चितवन, धीरे से तेरा ये मुस्काना
मुझे दोष न देना जग वालों, हो जाऊँ अगर मैं दीवाना
ये काम कमान भँवें तेरी, पलकों के किनारे कजरारे
माथे पर सिंदूरी सूरज, ओंठों पे दहकते अंगारे
साया भी जो तेरा पड़ जाए, आबाद हो दिल का वीराना
ई. निरंग रूपक :
जब उपमेय मात्र का आरोप उपमान पर किया जाए अर्थात उपमेय-अपमान की समनता बताई उनके अंगों का उल्लेख न हो तो निरंग रूपक होता है।
उदाहरण:
१. चरण-कमल मृदु मंजु तुम्हारे
२. हरि मुख मृदुल मयंक
३. ईश्वर-अल्लाह एक समान
४. धरती मेरी माता, पिता आसमान
मुझको तो अपना सा लागे सारा जहान
५.
उ. परम्परित रूपक:
जहाँ प्रधान रूपक अन्य रूपक पर आश्रित हो, अथवा उपमेय का उपमान पर आरोपण किसी अन्य आरोप पर आधारित हो वहां परंपरित रूपक होता है। ।परंपरित में दो रूपक होते हैं। एक रूपक का कारण आधार दूसरा रूपक होता है।
उदाहरण:
१. आशा मेरे हृदय-मरु की मंजु मंदाकिनी है
यहाँ ह्रदय-मरु तथा मंजु-मंदाकनी दो रूपक हैं। आशा को मंदाकिनी बनाया जाना तभी उपयुक्त है जब हृदय को मरु बताया जा चुका हो।
२. रविकुल-कैरव विधु-रघुनायक
रविकुल को कैरव बताने के पश्चात रघुनायक को विधु बताया गया है। यहाँ २ रूपक हैं। पश्चात्वर्ती रूपक पूर्ववर्ती रूपक पर आधारित है।
३. किसके मनोज-मुख चन्द्र को निहारकर
प्रेम उर सागर सदैव है उछलता
यहाँ मुख-चन्द्र रूपक उर-सागर रूपक का आधार है।
४. प्रेम-अतिथि है खड़ा द्वार पर, ह्रदय-कपाट खोल दो तुम!
ह्रदय-कपाट का रूपक प्रेम-अतिथि के रूपक बिना अपूर्ण प्रतीत होगा।
५. यह छोटा सा शिशु है मेरा, जीवन-निशि का शुभ्र सवेरा
जीवन-निशि के रूपक पर शिशु-शुभ्र सवेरा का रूपक आधृत है.
***
हुदहुद
साल २००८ में एक लाख ५५ हज़ार लोगों के बीच किए गए सर्वेक्षण के बाद तत्कालीन इसराइली राष्ट्रपति शिमोन पेरेज़ ने देश की ६० वीं सालगिरह पर इसे राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया था.
कहा जाता है कि यह पक्षी यहूदियों और मुसलमानों के पैग़म्बर हज़रत सुलेमान के दूत के तौर पर काम किया करता था. बादशाह हज़रत सुलेमान का क़ुरान में भी ज़िक्र है. उनके बारे में कहा जाता है कि वह एक मात्र बादशाह थे जिनका हुक्म हवा, पानी, मछली, पशु, पक्षी सब मानते थे.
तूफ़ान का हुदहुद नाम तो ओमान का दिया हुआ है लेकिन हुदहुद चिड़िया हज़रत सुलेमान की जासूस चिड़िया भी कही जाती है.
बादशाह सुलेमान के शीबा (आज का यमन) की रानी यानी मलिका बिलक़ीस के बारे में भी इसी चिड़िया ने ख़बर दी थी के वो सूर्य की पूजा करती हैं. हज़रत सुलेमान ने रानी को अपने पास लाने का आदेश दिया था, जहां मलिका ने उनको पैग़म्बर माना था.
इसके सिर की कलग़ी की भी अजीब कहानी है.
यहूदी लोक कथाओं के मुताबिक़ एक बार हज़रत सुलेमान अपने सफ़ेद बाज़ पर उड़े जा रहे थे और धूप की वजह से बेहाल थे कि हुदहुद का एक गिरोह उनके पास से गुज़रा और उन्हें उस हालत में देख कर अपने परों को फैलाकर उनके ऊपर उड़ने लगा ताकि वह धूप से बच जाएं.
लालच और वरदान
हज़रत सुलेमान ने प्रसन्न होकर उन्हे वरदान मांगने को कहा. हुदहुद पक्षियों के राजा ने कई दिन सोचने के बाद सभी के सिर पर सोने का ताज होने की मन्नत मांग ली.
उनकी मांग सुनकर, सुलेमान हंस पड़े और कहने लगे अरे नादान तूने अपने लिए मुसीबत मांग ली है. शिकारी तुझे ज़िंदा नहीं छोड़ेंगे.
फिर भी, उनकी मांग पूरी हुई और वह इस पर इतराने लगे. लेकिन सोने के लालच में शिकारी उनके पीछे पड़ गए यहां तक कि उनकी संख्या बेहद कम हो गई तो सभी हुदहुद हज़रत सुलेमान के पास वापस आए.
उनकी मुश्किल जानकर हज़रत सुलेमान ने ताज हटा कर उनके सिर पर कलग़ी दे दी जिस से उनकी सुंदरता बरक़रार रही और उनकी प्रजाति भी बच गई.
***
अलंकार पहचानिए:
चन्दन सा वदन, चंचल चितवन, धीरे से तेरा ये मुस्काना
मुझे दोष न देना जग वालों, हो जाऊँ अगर मैं दीवाना
ये काम कमान भँवें तेरी, पलकों के किनारे कजरारे
माथे पर सिंदूरी सूरज, ओंठों पे दहकते अंगारे
साया भी जो तेरा पड़ जाए, आबाद हो दिल का वीराना
*
अर्धांगिनी बहिना सुता, नहीं किसी का मोल
माँ की ममता है मगर, सचमुच ही अनमोल
*
मन-मेकल गिरिशिखर से, नेह-नर्मदा धार
बह तन-मन की प्यास हर, बाँटे हर्ष अपार
१६-१०-२०१५
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नवगीत:
रोगों से
मत डरो
दम रहने तक लड़ो
आपद-विपद
न रहे
हमेशा आते-जाते हैं
संयम-धैर्य
परखते हैं
तुमको आजमाते हैं
औषध-पथ्य
बनेंगे सबल
अवरोधों से भिड़ो
जाँच परीक्षण
शल्य क्रियाएँ
योगासन व्यायाम न भायें
मन करता है
कुछ मत खायें
दवा गोलियाँ आग लगायें
खूब खिजाएँ
लगे चिढ़ाएँ
शांत चित्त रख अड़ो
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मुक्तक:
कुसुम कली जब भी खिली विहँस बिखेरी गंध
रश्मिरथी तम हर हँसा दूर हट गयी धुंध
मधुकर नतमस्तक करे पा परिमल गुणगान
आँख मूँद संजीव मत सोना होकर अंध
१६-१०-२०१४
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हाइकु
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ईंट-रेट का
मंदिर मनहर
देव लापता
*
श्रम-सीकर
चरणामृत से है
ज्यादा पावन
*
मर मदिरा
मत मुझे पिलाना
दे विनम्रता
*
पर पीड़ा से
तनिक न पिघले
मानव कैसे?
*
मैले मन को
उजला तन प्रभु!
देते क्यों कर?
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मुक्तक
सिक्के 'सलिल' खरे नहीं, खोटे ही चल सके
जो वाष्प थे टकसाल में किंचित न ढल सके
सोना मिलावटों बिना गहना नहीं बना-
गह ना किसी की आँख में सपने न पल सके
१६-१०-२०१३
***
दस दिशा में चलें छंद-सिक्के खरे..
*
नील नभ नित धरा पर बिखेरे सतत, पूर्णिमा रात में शुभ धवल चाँदनी.
अनगिनत रश्मियाँ बन कलम रच रहीं, देख इंगित नचे काव्य की कामिनी..
चुप निशानाथ राकेश तारापति, धड़कनों की तरह रश्मियों में बसा.
भाव, रस, बिम्ब, लय, कथ्य पंचामृतों का किरण-पुंज ले कवि हृदय है हँसा..
नव चमक, नव दमक देख दुनिया कहे, नीरजा-छवि अनूठी दिखा आरसी.
बिम्ब बिम्बित सलिल-धार में हँस रहा, दीप्ति -रेखा अचल शुभ महीपाल की..
श्री, कमल, शुक्ल सँग अंजुरी में सुमन, शार्दूला विजय मानोशी ने लिये.
घूँट संतोष के पी खलिश मौन हैं, साथ सज्जन के लाये हैं आतिश दिये..
शब्द आराधना पंथ पर भुज भरे, कंठ मिलते रहे हैं अलंकार नत.
गूँजती है सृजन की अनूपा ध्वनि, सुन प्रतापी का होता है जयकार शत..
अक्षरा दीप की मालिका शाश्वती, शक्ति श्री शारदा की त्रिवेणी बने.
साथ तम के समर घोर कर भोर में, उत्सवी शामियाना उषा का तने..
चहचहा-गुनगुना नर्मदा नेह की, नाद कलकल करे तीर हों फिर हरे.
खोटे सिक्के हटें काव्य बाज़ार से, दस दिशा में चलें छंद-सिक्के खरे..
वर्मदा शर्मदा कर्मदा धर्मदा, काव्य कह लेखनी धन्यता पा सके.
श्याम घन में झलक देख घनश्याम की, रासलीला-कथा साधिका गा सके..
१८-१०-२०११
***
गीत
अरे मन !
*
सहज हो ले रे अरे मन !
*
मत विगत को सच समझ रे.
फिर न आगत से उलझ रे.
झूमकर ले आज को जी-
स्वप्न सच करले सुलझ रे.
प्रश्न मत कर, कौन बूझे?
उत्तरों से कौन जूझे?
भुलाकर संदेह, कर-
विश्वास का नित आचमन.
सहज हो ले रे अरे मन !
*
उत्तरों का क्या करेगा?
अनुत्तर पथ तू वरेगा?
फूल-फलकर जब झुकेगा-
धरा से मिलने झरेगा.
बने मिटकर, मिटे बनकर.
तने झुककर, झुके तनकर.
तितलियाँ-कलियाँ हँसे,
ऋतुराज का हो आगमन.
सहज हो ले रे अरे मन !
*
स्वेद-सीकर से नहा ले.
सरलता सलिला बहा ले.
दिखावे के वसन मैले-
धो-सुखा, फैला-तहा ले.
जो पराया वही अपना.
सच दिखे जो वही सपना.
फेंक नपना जड़ जगत का-
चित करे सत आकलन.
सहज हो ले रे अरे मन !
*
सारिका-शुक श्वास-आसें.
देह पिंजरा घेर-फाँसे.
गेह है यह नहीं तेरा-
नेह-नाते मधुर झाँसे.
भग्न मंदिर का पुजारी
आरती-पूजा बिसारी.
भारती के चरण धो,
कर-निज नियति का आसवन.
सहज हो ले रे अरे मन !
*
कैक्टस सी मान्यताएँ.
शूल कलियों को चुभाएँ.
फूल भरते मौन आहें-
तितलियाँ नाचें-लुभाएँ.
चेतना तेरी न हुलसी.
क्यों न कर ले माल-तुलसी?
व्याल मस्तक पर तिलक है-
काल का है आ-गमन.
सहज हो ले रे अरे मन !
१६-१०-२०१०
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शब्दों की दीपावली
जलकर भी तम हर रहे, चुप रह मृतिका-दीप.
मोती पलते गर्भ में, बिना कुछ कहे सीप.
सीप-दीप से हम मनुज तनिक न लेते सीख.
इसीलिए तो स्वार्थ में लीन पड़ रहे दीख.
दीप पर्व पर हों संकल्पित रह हिल-मिलकर.
दें उजियारा आत्म-दीप बन निश-दिन जलकर.
- छंद अमृतध्वनि
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दोहा गीत
विजय विषमता तिमिर पर,
कर दे- साम्य हुलास..
मातृ ज्योति- दीपक पिता,
शाश्वत चाह उजास....
*
जिसने कालिख-तम पिया,
वह काली माँ धन्य.
नव प्रकाश लाईं प्रखर,
दुर्गा देवी अनन्य.
भर अभाव को भाव से,
लक्ष्मी हुईं प्रणम्य.
ताल-नाद, स्वर-सुर सधे,
शारद कृपा सुरम्य.
वाक् भारती माँ, भरें
जीवन में उल्लास.
मातृ ज्योति- दीपक पिता,
शाश्वत चाह उजास...
*
सुख-समृद्धि की कामना,
सबका है अधिकार.
अंतर से अंतर मिटा,
ख़त्म करो तकरार.
जीवन-जगत न हो महज-
क्रय-विक्रय व्यापार.
सत-शिव-सुन्दर को करें
सब मिलकर स्वीकार.
विषम घटे, सम बढ़ सके,
हो प्रयास- सायास.
मातृ ज्योति- दीपक पिता,
शाश्वत चाह उजास....
१६-१०-२००९
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