कुल पेज दृश्य

बुधवार, 4 मई 2022

छंद उपमान, छंद दृढ़पत, छंद हरि,मुक्तक,दोहा,उत्सव,नवगीत,

नवगीत
जोड़-तोड़ है
मुई सियासत
*
मेरा गलत
सही है मानो।
अपना सही
गलत अनुमानो।
सत्ता पाकर,
कर लफ्फाजी-
काम न हो तो
मत पहचानो।
मैं शत गुना
खर्च कर पाऊँ
इसीलिए तुम
करो किफायत
*
मैं दो दूनी
तीन कहूँ तो
तुम दो दूनी
पाँच बताना।
मैं तुमको
झूठा बोलूँगा
तुम मुझको
झूठा बतलाना।
लोकतंत्र में
लगा पलीता
संविधान से
करें बगावत
*
यह ले उछली
तेरी पगड़ी।
झट उछाल तू
मेरी पगड़ी।
भत्ता बढ़वा,
टैक्स बढ़ा दें
लड़ें जातियाँ
अगड़ी-पिछड़ी।
पा न सके सुख
आम आदमी,
लात लगाकर
कहें इनायत।
***
नवगीत
आओ!
मिल उपवास करें.....
*
गरमा-गरम खिला दो मैया!
ठंडा छिपकर पी लें भैया!
भूखे आम लोग रहते हैं
हम नेता
कुछ खास करें
आओ!
मिल उपवास करें......
*
पहले वे, फिर हम बैठेंगे।
गद्दे-एसी ला, लेटेंगे।
पत्रकार!
आ फोटो खींचो।
पिओ,
पिलाओ, रास करें
आओ!
मिल उपवास करें.....
*
जनगण रोता है, रोने दो।
धीरज खोता है, खोने दो।
स्वार्थों की
फसलें काटें।
सत्ता
अपना ग्रास करें
आओ!
मिल उपवास करें.....
***
उत्सव
एकाकी रह भीड़ का अनुभव है अग्यान।
छवि अनेक में एक की, मत देखो मतिमान।।
*
दिखा एकता भीड़ में, जागे बुद्धि-विवेक।
अनुभव दे एकांत का, भीड़ अगर तुम नेक।।
*
जीवन-ऊर्जा ग्यान दे, अमित आत्म-विश्वास।
ग्यान मृत्यु का निडरकर, देता आत्म-उजास।।
*
शोर-भीड़ हो चतुर्दिक, या घेरे एकांत।
हर पल में उत्सव मना, सज्जन रहते शांत।।
*
जीवन हो उत्सव सदा, रहे मौन या शोर।
जन्म-मृत्यु उत्सव मना, रहिए भाव-विभोर।।
*
12.4.2018
दोहा सलिला 
ओ' शो करना जरूरी, तभी सके जग देख.
मन की मन में रहे तो, कौन कर सके लेख?

कुछ सुनना; कुछ सुनाना, तभी बनेगी बात.
अपने-अपने तक रहे, सीमित क्यों जज़्बात?

गला न घोंटें छंद का, बंदिश लगा अनेक.
सहज गेय जो वह सही, माने बुद्धि-विवेक.

दोहा मैं लिखता नहीं, दोहा प्रगटे आप।
कथ्य, भाव, रस आप ही, जाते दोहा-व्याप।।

जिया जिया में बसा ले, दोहा छंद पुनीत.
दोहा छंद जिया अगर, दिन दूनी हो प्रीत.

दोहा ने दोहा सदा, शब्द-शब्द का अर्थ.
दोहा तब ही सार्थक, शब्द न हो जब व्यर्थ.
***
मुक्तक:
*
बोल जब भी जबान से निकले
पान ज्यों पानदान से निकले
कान में घोल दे गुलकंद 'सलिल
ज्यों उजाला विहान से निकले
*
आज प्रियदर्शी बना है अम्बर,
शिव लपेटे हैं नाग- बाघम्बर।
नेह की भेंट आप लाई हैं-
चुप उमा छोड़ सकल आडम्बर।।
*
मन सागर, मन सलिला भी है, नमन अंजुमन विहँस कहें
प्रश्न करे यह उत्तर भी दे, मन की मन में रखेँ-कहें?
शमन दमन का कर महकाएँ चमन, गमन हो शंका का-
बेमन से कुछ काम न करिए, अमन-चमन 'सलिल' में रहे
*
तेरी निंदिया सुख की निंदिया, मेरी निंदिया करवट-करवट”
मेरा टीका चौखट-चौखट, तेरी बिंदिया पनघट-पनघट
तेरी आसें-मेरी श्वासें, साथ मिलें रच बृज की रासें-
तेरी चितवन मेरी धड़कन, हैं हम दोनों सलवट-सलवट
*
बोरे में पैसे ले जाएँ, संब्जी लायें मुट्ठी में
मोबाइल से वक़्त कहाँ है, जो रुचि ले युग चिट्ठी में
कुट्टी करते घूम रहे हैं सभी सियासत के मारे-
चले गये वे दिन जब गले मिले हैं संगा मिट्ठी में
*
नहीं जेब में बचीं छदाम, खास दिखें पर हम हैँ आम
कोई तो कविता सुनकर, तनिक दाद दे करे सलाम
खोज रहीं तन्मय नज़रें, कहाँ वक़्त का मारा है?
जिसकी गर्दन पकड़ें हम फ़िर चकेवा दें बिल बेदाम
***
छंद सलिला: हरि छंद
*
छंद-लक्षण: जाति रौद्राक, प्रति चरण मात्रा २३ मात्रा, चरणारंभ गुरु, यति ६ - ६ - ११, चरणान्त गुरु लघु गुरु (रगण) ।
लक्षण छंद:
रास रचा / हरि तेइस / सखा-सखी खेलते
राधा की / सखियों के / नखरे हँस झेलते
गुरु से शुरु / यति छह-छह / ग्यारह पर सोहती
अंत रहे / गुरु लघु गुरु / कला 'सलिल' मोहती
उदाहरण:
१. राखो पत / बनवारी / गिरधारी साँवरे
टेर रही / द्रुपदसुता / बिसरा मत बावरे
नंदलाल / जसुदासुत / अब न करो देर रे
चीर बढ़ा / पीर हरो / मेटो अंधेर रे
२. सीता को / जंगल में / भेजा क्यों राम जी?
राधा को / छोड़ा क्यों / बोलो कुछ श्याम जी??
शिव त्यागें / सती कहो / कैसे यह ठीक है?
नारी भी / त्यागे नर / क्यों न उचित लीक है??
३. नेता जी / भाषण में / जो कुछ है बोलते
बात नहीं / अपनी क्यों / पहले वे तोलते?
मुकर रहे / कह-कहकर / माफी भी माँगते
देश की / फ़िज़ां में / क्यों नफरत घोलते?
४. कौन किसे / बिना बात / चाहता-सराहता?
कौन जो न / मुश्किलों से / आप दूर भागता?
लोभ, मोह / क्रोध द्रोह / छोड़ सका कौन है?
ईश्वर से / कौन और / अधिक नहीं माँगता?
***
छंद सलिला:
दृढ़पद (दृढ़पत/उपमान) छंद 
*
छंद-लक्षण: जाति रौद्राक, प्रति चरण मात्रा २३ मात्रा, यति १३ - १०, चरणान्त गुरु गुरु (यगण, मगण) ।
लक्षण छंद:
तेईस मात्रा प्रति चरण / दृढ़पद रचें सुजान
तेरह-दस यति अन्त में / गुरु गुरु- है उपमान
कथ्य भाव रस बिम्ब लय / तत्वों का एका
दिल तक सीधे पहुँचता / लगा नहीं टेका
उदाहरण:
१. हरि! अवगुण से दूरकर / कुछ सद्गुण दे दो
भक्ति - भाव अर्पित तुम्हें / दिक् न करो ले लो
दुनियादारी से हुआ / तंग- शरण आया-
एक तुम्हारा आसरा / साथ न दे साया
२. स्वेद बिन्दु से नहाकर / श्रम से कर पूजा
फल अर्पित प्रभु को करे / भक्त नहीं दूजा
काम करो निष्काम सब / बतलाती गीता
जो आत्मा सच जानती / क्यों हो वह भीता?
३. राम-सिया के रूप हैं / सच मानो बच्चे
बेटी-बेटे में करें / फर्क नहीं सच्चे
शक्ति-लक्ष्मी-शारदा / प्रकृति रूप तीनो
जो न सत्य पहचानते / उनसे हक़ छीनो
***
४.५.२०१४
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, रसामृत, राजीव, राधिका, रामा, लीला, वाणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

कोई टिप्पणी नहीं: