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बुधवार, 18 मई 2022

सॉनेट, मुक्तिका, दोहे, आँख, चित्र अलंकार, सैनेटाइजर, फिटकरी,कविता, धीरेन्द्र वर्मा

मुक्तिका
हाशिए पर सफे रह रहे
क्या कहानी?; सुनें कह रहे

अश्क जंगल के गुमनाम हो
पीर पर्वत की चुप तह रहे

रास्ते राहगीरों बिना
मरुथलों की तरह दह रहे

मुंसिफ़ों की इनायत हुई
टूटता है कहर, सह रहे

आदमी- आदमी है नहीं
धर्म के सब किले ढह रहे

सिय गँवा क्षुब्ध हो राम जी
डूब सरयू में खुद बह रहे

एक चेहरा जहाँ दिख रहा
कई चेहरे वहाँ रह रहे
१८-५-२०२२
•••
मुक्तिका 
• 
गीत गाते मीत जब दिल वार के 
जीत जाते प्रीत हँस हम हार के 

बीत जाते यार जब पल प्यार के 
याद आते फूल हरसिंगार के 

बोलती है बोल बिन तोले जुबां 
कोकिला दे घोल रस मनुहार के 

नैन में झाँकें नयन करते गिले
नाव को ताकें सजन पतवार के 

बैर से हो बैर तब सुख-शांति हो 
द्वारिका जाते कदम हरिद्वार के 
१८-५-२०२२ 
•••
सत्रह मई बहुभाषाविद धीरेन्द्र वर्मा जयंती
*
संस्कृत, हिंदी, ब्रजभाषा,अंग्रेज़ी और फ़्रेंच के विद्वान डॉ धीरेंद्र वर्मा की जयंती पर सादर नमन
धीरेन्द्र वर्मा का जन्म १७ मई, १८९७ को बरेली (उत्तर प्रदेश) के भूड़ मोहल्ले में हुआ था। इनके पिता का नाम खानचंद था। खानचंद एक जमींदार पिता के पुत्र होते हुए भी भारतीय संस्कृति से प्रेम रखते थे।
प्रारम्भ में धीरेन्द्र वर्मा का नामांकन वर्ष १९०८ में डी.ए.वी. कॉलेज, देहरादून में हुआ, किंतु कुछ ही दिनों बाद वे अपने पिता के पास चले आये और क्वींस कॉलेज, लखनऊ में दाखिला लिया। इसी स्कूल से सन १९१४ ई. में प्रथम श्रेणी में 'स्कूल लीविंग सर्टीफिकेट परीक्षा' उत्तिर्ण की और हिन्दी में विशेष योग्यता प्राप्त की। तदन्तर इन्होंने म्योर सेंट्रल कॉलेज, इलाहाबाद में प्रवेश किया। सन १९२१ ई. में इसी कॉलेज से इन्होंने संस्कृत से एम॰ए॰ किया। उन्होंने पेरिस विश्वविद्यालय से डी. लिट्. की उपाधि प्राप्त की थी।
धीरेंद्र वर्मा हिन्दी तथा ब्रजभाषा के कवि एवं इतिहासकार थे। वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रथम हिन्दी विभागाध्यक्ष थे। धर्मवीर भारती ने उनके ही मार्गदर्शन में अपना शोधकार्य किया। जो कार्य हिन्दी समीक्षा के क्षेत्र में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने किया, वही कार्य हिन्दी शोध के क्षेत्र में डॉ॰ धीरेन्द्र वर्मा ने किया था। धीरेन्द्र वर्मा जहाँ एक तरफ़ हिन्दी विभाग के उत्कृष्ट व्यवस्थापक रहे, वहीं दूसरी ओर एक आदर्श प्राध्यापक भी थे। भारतीय भाषाओं से सम्बद्ध समस्त शोध कार्य के आधार पर उन्होंने १९३३ ई. में हिन्दी भाषा का प्रथम वैज्ञानिक इतिहास लिखा था। फ्रेंच भाषा में उनका ब्रजभाषा पर शोध प्रबन्ध है, जिसका अब हिन्दी अनुवाद हो चुका है। मार्च, सन् १९६९ में डॉ॰ धीरेंद्र वर्मा हिंदी विश्वकोश के प्रधान संपादक नियुक्त हुए। विश्वकोश का प्रथम खंड लगभग डेढ़ वर्षों की अल्पावधि में ही सन् १९६० में प्रकाशित हुआ।
*कृतियाँ*
१. बृजभाषा व्याकरण
२. 'अष्टछाप' प्रकाशन रामनारायण लाल, इलाहाबाद, सन १९३८
३. 'सूरसागर-सार' सूर के ८१७ उत्कृष्ट पदों का चयन एवं संपादन, प्रकाशन साहित्य भवन लिमिटेड, इलाहाबाद, १९५४
४. 'मेरी कालिज डायरी' १९१७ के १९२३ तक के विद्यार्थी जीवन में लिखी गयी डायरी का पुस्तक रूप है, प्रकाशन साहित्य भवन लिमिटेड, इलाहाबाद, १९५४
५. 'मध्यदेश' भारतीय संस्कृति संबंधी ग्रंथ है। बिहार राष्ट्रभाषा परिषद के तत्त्वाधान में दिये गये भाषणों का यह संशोधित रूप है। प्रकाशन बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, पटना, १९५५
६. 'ब्रजभाषा' थीसिस का हिन्दी रूपान्तर है। प्रकाशन हिन्दुस्तानी अकादमी, १९५७
७. 'हिन्दी साहित्य कोश' संपादन, प्रकाशन ज्ञानमंडल लिमिटेड, बनारस, १९५८
८. 'हिन्दी साहित्य' संपादन, प्रकाशन भारतीय हिन्दी परिषद, १९५९
९. 'कम्पनी के पत्र' संपादन, प्रकाशन इलाहाबाद यूनिवर्सिटी, १९५९
१०. 'ग्रामीण हिन्दी' प्रकाशन, साहित्य भवन लिमिटेड, इलाहाबाद
११. 'हिन्दी राष्ट्र' प्रकाशन, भारती भण्डार, लीडर प्रेस, इलाहाबाद
१२. 'विचार धारा' निबन्ध संग्रह है, प्रकाशन साहित्य भवन लिमिटेड, इलाहाबाद
१३. 'यूरोप के पत्र' यूरोप जाने के बाद लिखे गये पत्रों का महत्त्वपूर्ण संचयन है। प्रकाशन साहित्य भवन लिमिटेड, इलाहाबा
डॉ धीरेंद्र वर्मा व्यक्ति नहीं, एक युग थे, एक संस्था थे। हिन्दी के शिक्षण और प्रशिक्षण की संभावनाएं उन्होंने उजागर की थीं। शोध और साहित्य निर्माण के नए से नए आयाम उन्होंने स्थापित किए थे।
डॉ. वर्मा ज्ञानमार्गी थे। अज्ञात सत्य का शोध करना ही उनके जीवन का चरम लक्ष्य था। ऋषियों की भांति उन्होंने लिखा है- ''खोज से संबंध रखने वाला विद्यार्थी ज्ञानमार्ग का पथिक होता है। भक्तिमार्ग तथा कर्ममार्ग से उसे दूर रहना चाहिए। संभव है आगे चलकर सत्य के अन्वेषण की तीन धाराएं आपस में मिल जाती हों, कदाचित्‌ मिल जाती हैं, किंतु इसकी ज्ञानमार्गी पथिक को चिंता नहीं होनी चाहिए।''
ऋषियों जैसा पवित्र और यशस्वी जीवन जी कर वह २३ अप्रैल, १९७३ को प्रयाग में स्वर्गवासी हो गए।
विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर
पर्व १५ : काव्य विमर्श : कविता क्या?... क्यों?... किस तरह?...
दिनाँक १८-५-२०२०, समय सायं ४ बजे से
मुखिया : आचार्य भगवत दुबे, ख्यात साहित्यकार, जबलपुर
पाहुना : श्री राजेंद्र वर्मा, छन्दाचार्य, संपादक, लखनऊ
विषय प्रवर्तक : आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', जबलपुर
उद्घोषक : प्रो. अलोक रंजन, पलामू झारखण्ड
शारदा वंदना : वन्दनाकार डॉ. अनामिका तिवारी, गायिका : मीनाक्षी शर्मा 'तारिका'
*
वाग्देवी शारदा तथा विघ्नेश्वर गजानन के श्री चरणों में प्रणति निवेदन के साथ डॉ. अनामिका तिवारी लिखित सरस्वती वंदना का सस्वर गायन मीनाक्षी शर्मा 'तारिका' ने किया। आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने विषय प्रवर्तन करते हुए कविता को अनुभूत की सरस अभिव्यक्ति निरूपित करते हुए लोक ग्राह्यता को कविता की कसौटी बताया। भीलवाड़ा की कवयित्री पुनीता भरद्वाज ने कविता में सरसता और दोषमुक्तता होना आवश्यक बताया। इंजी. अरुण भटनागर ने कविता को लोकोत्तर उदात्त भावनाओं की वाहक बताया। डॉ. अनामिका तिवारी ने कविता को समय का दर्पण निरूपित करते हुए उसे जान संवेदनाओं की वाहक बताया। भारतीय वायु सेना में योद्धा रह चुके ग्रुप कैप्टेन श्यामल सिन्हा ने कविता को जीवन व्यापारों हुए मनोवेगों की सकारात्मक अभिव्यक्ति का माध्यम बताया। मेदिनी नगर पलामू झारखंड से सहभागिता कर रहे वरिष्ठ कवि श्री श्रीधर प्रसाद द्विवेदी ने भारतीय तथा पाश्चात्य समीक्षकों के मतों की तुलना करते हुए कविता को जीवन का अपरिहार्य अंग बताया।
डॉ. मुकुल तिवारी ने कविता को जीवन में कविता की उपस्थिति को अपरिहार्य बताया। श्रीमती मनोरमा रतले प्राचार्य दमोह ने कविता को ज्ञान की ग्राह्यता का सरस-सरल माध्यम माना। श्रीमती विनीता श्रीवास्तव ने कविता को लोक मंगलकारी स्वार्थपरता से परे सामाजिकता न मानवता का कध्याम निरूपित किया। दमोह से पधारी कवयित्री बबीता चौबे 'शक्ति' दमोह ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कविता में सन्देशपरकता और प्रवहमानता को आवश्यक बताते हुए कविता को आत्मा से निकली आवाज़ बताया।सुषमा शैली दिल्ली ने कविता को समाज का आइना निरूपित किया तथा सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी चुपाई मारो दुलहिन कविता का उल्लेख किया। टीकमगढ़ के साहित्यकार राजीव नामदेव राणा लिघौरी ने कविता के भाव सौंदर्य, विचार सौंदर्य, नाद सौंदर्य तथा योजना सौंदर्य पर प्रकाश डाला। प्रो. आलोक रंजन ने ह्रदय, भाव योग और कविता को परस्पर पूरक बताया। भाव योग से ज्ञान योग तक की यात्रा में कविता की भूमिका को मधुमति भूमिका बताया।
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने रस -छंद-अलंकार तथा प्रत्यक्ष-परोक्ष अनुभूति की चर्चा करते हुए कहा कि कविता में भाषा की तीनों शक्तियों अमिधा, लक्षणा तथा व्यंजना की प्रासंगिकता है। विमर्श के अध्यक्ष लखनऊ से पधारे प्रसिद्ध छंद शास्त्री राजेंद्र वर्मा ने विधागत मानकों, छंद और भाव की प्रतिष्ठा को आवश्यक बताते हुए अच्छी कविता का निकष मन को अच्छी लगना बताया। उनहोंने कवि को अपना आलोचक होना जरूरी बताया। अंत में विमर्श के अध्यक्ष श्रेष्ठ-ज्येष्ठ साहित्यकार आचार्य भगवत दुबे ने कवि को अपने युग का प्रवक्ता बताते हुए, अतीत के गौरव का प्रवक्ता होने के साथ युग का सचेतक निरूपित किया। डॉ. मुकुल तिवारी प्राचार्य महिला महाविद्यालय ने इस विचारपरक विमर्श के अतिथियों, सहभागियों संयोजकों आदि के प्रति आभार व्यक्त किया।
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कविता क्या है?
नेह नर्मदा सी है कविता, हहर-हहरकर बहती रहती
गेह वर्मदा सी है कविता घहर-घहर सच तहती रहती
कविता साक्षी देश-काल की, कविता मानव की जय गाथा
लोकमंगला जन हितैषिणी कविता दहती - सहती रहती
*
कविता क्यों हो?
भाप न असंतोष की मन में
हो एकत्र और फिर फूटे
अमन-चैन मानव के मन का
मौन - अबोला पैन मत लूटे
कविता वाल्व सेफ्टी का है
विप्लव को रोका करती है
अनाचार टोंका करती है
वक्त पड़े भौंका करती है
इसीलिये कविता करना ही
योद्धा बन बिन लड़, लड़ना है
बिन कुम्हार भावी गढ़ना है
कदम दर कदम हँस बढ़ना है
*
कविता किस तरह?
कविता करना बहुत सरल है
भाव नर्मदा डूब-नहाओ
रस-गंगा से प्रीत बढ़ाओ
शब्द सुमन चुन शारद माँ के
चरणों में बिन देर चढ़ाओ
अलंकार की अगरु-धूप ले
मिथक अग्नि का दीप जलाओ
छंद आरती-श्लोक-मंत्र पढ़
भाषा माँ की जय-जय गाओ
कविता करो नहीं, होने दो
तुकबंदी के कुछ दोने लो
भरो कथ्य-सच-लय पंजीरी
खाकर प्राण अमर होने दो।
*
क्षणिका
और अंत में
कविता मुझे पसंद, न कहना
वरना सजा मिलेगी मिस्टर
नहीं समझते क्यों
समझो है
कविता जज साहब की सिस्टर
*
सैनीटाइजर का विकल्प *‘फिटकरी’...
*90 रुपये का सैनीटाइजर आज बाजार में 300 से 500 रुपये में बिक रहा है और उसका भी भरोसा नहीं कि वह असली है या नकली! सैनीटाइजर का भारतीय विकल्प है ‘फिटकरी’ जो बाजार में आसानी से और नाममात्र के मूल्य पर उपलब्ध है।
*‘फिटकरी’ (हायड्रेटेड पोटेशियम एल्युमिनियम सल्फेट) K2SO4 Al2(SO4)3.24H2O एक पारंपरिक भारतीय सैनीटाइजर है। जब हम फिटकरी के पानी से अपने हाथों को धोते हैं या स्नान में उपयोग करते हैं तब कोई भी विषाणु हमारे शरीर पर जिंदा नहीं रह सकता।
*गरम पानी में फिटकरी डालकर कुल्ले करने से गले और मुंह के विषाणु नष्ट होते हैं। इसी प्रकार ‘फिटकरी’ से हाथ धोकर हम अपने हाथों के विषाणुओं को भी नष्ट कर सकते हैं।
*इसलिए हमेशा फिटकरी का एक टुकड़ा अपने साथ रखें, जब जैसी जरूरत हो, अपने को सैनीटाइज कर लें।।
*इस कोरोना रुपी विश्व महामारी का निवारण केवल भारतीय संस्कृति ही कर सकती है।।

***
मुक्तक
भावना की भावना है शुद्ध शुभ सद्भाव है
भाव ना कुछ, अमोली बहुमूल्य है बेभाव है
साथ हैं अभियान संगम ज्योति हिंदी की जले
प्रकाशित सब जग करे बस यही मन में चाव है
***
एक चतुष्पदी : जान
जान में जान है जान यह जानकर, जान की जान सांसत में पड़ गयी
जानकी जान जाए न सच जानकर, जानकी झूठ बोली न, चुप रह गयी
जान कर भी सके जान सच को नहीं, जान ने जान कर भी बताया नहीं
जान का मान हो, मान दे जान को, जान ले जान तो जान खुश हो गयी
चित्र अलंकार
***
दोहा सलिला:
दोहे के रंग आँख के संग: २-३
*
आँख न दिल का खोल दे, कहीं अजाने राज
काला चश्मा आँख पर, रखता जग इस व्याज
*
नाम नयनसुख- आँख का, अँधा मगर समाज
आँख न खुलती इसलिए, है अनीति का राज
*
आँख सुहाती आँख को, फूटी आँख न- सत्य
आना सच है आँख का, जाना मगर असत्य
*
खोल रही ऑंखें उषा, दुपहर तरेरे आँख
संध्या झपके मूँदती, निशा समेटे पाँख
*
श्याम-श्वेत में समन्वय, आँख बिठाती खूब
जीव-जगत सम संग रह, हँसते ज्यों भू-धूप
*
आँखों का काजल चुरा, आँखें कहें: 'जनाब!
दिल के बदले दिल लिया,पूरा हुआ हिसाब'
*
आँख मार आँखें करें, दिल पर सबल प्रहार
आँख न मिल झुक बच गयी, चेहरा लाल अनार
*
आँख मिलाकर आँख ने, किया प्रेम संवाद
आँख दिखाकर आँख ने, वर्ज किया परिवाद
*
आँखों में ऑंखें गड़ीं, मन में जगी उमंग
आँखें इठला कर कहें, 'करिए मुझे न तंग'
*
दो-दो आँखें चार लख, हुए गुलाबी गाल
पलक लपककर गिर बनी, अंतर्मन की ढाल
*
आँख मुँदी तो मच गया, पल में हाहाकार
आँख खुली होने लगा, जीवन का सत्कार
*
कहे अनकहा बिन कहे, आँख नहीं लाचार
आँख न नफरत चाहती, आँख लुटाती प्यार
*
सरहद पर आँखें गड़ा, बैठे वीर जवान
अरि की आँखों में चुभें, पल-पल सीना तान
*
आँख पुतलिया है सुता, सुत है पलक समान
क्यों आँखों को खटकता, दोनों का सम मान
*
आँख फोड़कर भी नहीं, कर पाया लाचार
मन की आँखों ने किया, पल में तीक्ष्ण प्रहार
*
अपनों-सपनों का हुईं, आँखें जब आवास
कौन किराया माँगता, किससे कब सायास
*
अधर सुनें आँखें कहें, कान देखते दृश्य
दसों दिशा में है बसा, लेकिन प्रेम अदृश्य
*
आँख बोलती आँख से, 'री! मत आँख नटेर'
आँख सिखाती है सबक, 'देर बने अंधेर'
*
ताक-झाँककर आँक ली, आँखों ने तस्वीर
आँख फेर ली आँख ने, फूट गई तकदीर
*
आँख मिचौली खेलती, मूँद आँख को आँख
आँख मूँद मत देवता, कहे सुहागन आँख
१८-५-२०१५
*

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