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रविवार, 22 मई 2022

सॉनेट, द्रोण,स्वास्थ्य, दोहा,मुक्तिका, नवगीत भूकंप, बुंदेली ग़ज़ल,मिर्च

सॉनेट
द्रोण
*
द्रोण छल कर पल रहे थे,
दास सत्ता मानती थी,
हमेशा अपमानती थी।
ऊगते दिख; ढल रहे थे।

पुत्र से मिथ्या कहा था,
शिष्य का काटा अँगूठा,
अहं पाला निरा झूठा।
ज्ञान बिसरा मन दहा था।

चक्रव्यूह कलंक गाथा
सत्पुरुष का झुका माथा
मोह सुत का उर बसा था।

शत्रु पर विश्वास गलती
बात पूरी सुन; न समझी
हुए विचलित मौत आई।
***
मिर्ची लगी तो .....?

मिर्च को आयुर्वेद में कुमऋचा के नाम से भी जाना जाता है। गुणों में लाल मिर्च और हरी मिर्च में कोई अंतर नहीं होता। आयुर्वेदिक मतानुसार लालमिर्च अग्निदीपक, दाहजनक, कफनाशक तथा अजीर्ण, विषूचिका, दारुणवृण, तंद्रा, मोह, प्रलाप, स्वरभेद और अरुचि को दूर करने वाली होती है।

आत्रेयसंहिता के अनुसार, "जिसकी देखने की, सुनने की ओर बोलने की शक्ति नष्ट हो गई हो, जिसकी नाड़ी भी डूब गई हो ऐसे सन्निपात के रोगी को मृत्यु के मुख में से छुड़ा कर मिर्ची जीवन दान देती है।"

हैजा में मिर्च के चूर्ण का आश्चर्यजनक लाभ लगभग सभी लोगों को पता है। दाढ़ के दर्द में मिर्ची का तेल उत्तम काम करता है। मिर्ची अफरा को भी नष्ट करती है। देशी चिकित्सक टायफस ज्वर, पार्यायिक ज्वर, जलोदर, गठिया, अजीर्ण और हैजे में इसका उपयोग करते हैं।

यूनानी मत के अनुसार मिर्ची कड़वी, चरपरी, कफ निस्सारक, मस्तिष्क की शिकायतों को दूर करनेवाली, स्नायविक वेदना में लाभदायक, पित्त को बढ़ाने वाली और गुदा स्थान सें जलन करनेवाली होती है।

मिर्च के तीखेपन से मिर्च के नुकसान तय होते हैं जैसे कश्मीरी मिर्च कम तिक्त होती है इसलिए ज्यादा खाई जा सकती है। शिमला मिर्च की सब्जी से हानि नहीं है क्योंकि उसमें तीखापन नहीं है। काली मिर्च से कई फायदे होते हैं। अधिक तीखी और ज्यादा खाने से मिर्च से अनेक बीमारियाँ होती हैं।
***
मुक्तिका:
चाह में
*
नील नभ को समेटूँ निज बाँह में.
जी रहा हूँ आज तक इस चाह में..
पड़ोसी को कभी काना कर सके.
हुआ अंधा पाक दुर्मति-डाह में..
मंजिलें कब तक रहेंगी दूर यों?
बनेंगी साथी कभी तो राह में..
प्यार की गहराई मिलने में नहीं.
हुआ है अहसास बिछुड़न-आह में..
काट जंगल, खोद पर्वत, पूर सर.
किस तरह सुस्ता सकेंगे छाँह में?
रोज रुसवा हो रहा सच देखकर.
जल रहा टेसू सा हर दिल दाह में..
रो रही है खून के आँसू धरा.
आग बरसी अब के सावन माह में..
काश भिक्षुक मन पले पल भर 'सलिल'
देख पाये सकल दुनिया शाह में..
देख ऊँचाई न बौराओ 'सलिल'
दूब सम जम जाओ गहरी थाह में..
२२-५-२०११
***
बुंदेली ग़ज़ल
*
१.बात नें करियो
*
बात नें करियो तनातनी की.
चाल नें चलियो ठनाठनी की..
होस जोस मां गंवा नें दइयो
बाँह नें गहियो हनाहनी की..
जड़ जमीन मां हों बरगद सी
जी न जिंदगी बना-बनी की..
घर नें बोलियों तें मकान सें
अगर न बोली धना-धनी की..
सरहद पे दुसमन सें कहियो
रीत हमारी दना-दनी की..
================
२ बखत बदल गओ
*
बखत बदल गओ, आँख चुरा रए।
सगे पीठ में भोंक छुरा रए।।
*
लतियाउत तें कल लों जिनखों
बे नेतन सें हात जुरा रए।।
*
पाँव कबर मां लटकाए हैं
कुर्सी पा खें चना मुरा रए।।
*
पान तमाखू गुटका खा खें
भरी जवानी गाल झुरा रए।।
*
झूठ प्रसंसा सुन जी हुमसें
सांच कई तेन अश्रु ढुरा रए।।
*
३ मंजिल की सौं...
*
मंजिल की सौं, जी भर खेल
ऊँच-नीच, सुख-दुःख. हँस झेल
रूठें तो सें यार अगर
करो खुसामद मल कहें तेल
यादों की बारात चली
नाते भए हैं नाक-नकेल
आस-प्यास के दो कैदी
कार रए साँसों की जेल
मेहनतकश खों सोभा दें
बहा पसीना रेलमपेल
*
४ काय रिसा रए
*
काय रिसा रए कछु तो बोलो
दिल की बंद किवरिया खोलो
कबहुँ न लौटे गोली-बोली
कओ बाद में पैले तोलो
ढाई आखर की चादर खों
अँखियन के पानी सें धो लो
मिहनत धागा, कोसिस मोती
हार सफलता का मिल पो लो
तनकउ बोझा रए न दिल पे
मुस्काबे के पैले रो लो
=============
५ बात करो ..
*
बात करो जय राम-राम कह।
अपनी कह औरन की सुन-सह।।
मन खों रखियों आपन बस मां।
मत लालच मां बरबस दह-बह।।
की की की सें का-का कहिए?
कडवा बिसरा, कछु मीठो गह।।
रिश्ते-नाते मन की चादर।
ढाई आखर सें धोकर-तह।।
संयम-गढ़ पै कोसिस झंडा
फहरा, माटी जैसो मत ढह।।
खैंच लगाम दोउ हातन सें
आफत घुड़वा चढ़ मंजिल गह।।
दिल दैबें खेन पैले दिलवर
दिल में दिलवर खें दिल बन रह।।
***


वह एक है, हम एक हों रस-छंद की तरह
करिए विमर्श नित्य परमानंद की तरह
जात क्या? औकात क्या? सच गुप्त चित्त में
आत्म में परमात्म ब्रह्मानंद की़ तरह
व्योम में राकेश औ' दिनेश साथ-साथ
बिखेरते उजास काव्यानंद की तरह
काया नहीं कायस्थ है निज आत्म तत्व ही
वह एक है, हम एक हैं आनंद की तरह
जो मातृशक्ति है उसे भी पूजिए हुजूर
बिन शक्ति शक्तिवान निरानंद की तरह
***
कविता की जय
हिंदीप्रेमी कलमकार मिल कविता की जय बोल रहे
दिल से दिल के बीच बनाकर पुल नित नव रस घोल रहे
सुख-दुख धूप-छाँव सम आते-जाते, पूछ सवाल रहे
शब्द-पुजारी क्या तुम खुद को कर्म तुला में तोल रहे?
को विद? है विद्वान कौन? यह कोविद उन्निस पूछ रहा
काहे को रोना?, कोरोना कहे न बाकी झोल रहे
खुद ही खुद का कर खयाल, घर में रह अमन-चैन से तू
सुरा हेतु मत दौड़ लगा तू, नहीं ढोल में पोल रहे
अनुशासित परउपकारी बन, कर सहायता निर्बल की
सज नहीं जो रहा 'सलिल' उसका तो बिस्तर गोल रहे
२२-५-२०२०
***
नवगीत:
.
धरती की छाती फ़टी
फैला हाहाकार
.
पर्वत, घाटी या मैदान
सभी जगह मानव हैरान
क्रंदन-रुदन न रुकता है
जागा क्या कोई शैतान?
विधना हमसे क्यों रूठा?
क्या करुणासागर झूठा?
किया भरोसा क्या नाहक
पल भर में ऐसे टूटा?
डँसते सर्पों से सवाल
बार-बार फुँफकार
धरती की छाती फ़टी
फैला हाहाकार
.
कभी नहीं मारे भूकंप
कभी नहीं हांरे भूकंप
एक प्राकृतिक घटना है
दोष न स्वीकारे भूकंप
दोषपूर्ण निर्माण किये
मानव ने खुद प्राण दिए
वन काटे, पर्वत खोदे
खुद ही खुद के प्राण लिये
प्रकृति के अनुकूल जिओ
मात्र एक उपचार
.
नींव कूटकर खूब भरो
हर कोना मजबूत करो
अलग न कोई भाग रहे
एकरूपता सदा धरो
जड़ मत हो घबराहट से
बिन सोचे ही मत दौड़ो
द्वार-पलंग नीचे छिपकर
राह काल की भी मोड़ो
फैलाता अफवाह जो
उसको दो फटकार
धरती की छाती फ़टी
फैला हाहाकार
.
बिजली-अग्नि बुझाओ तुरत
मिले चिकित्सा करो जुगत
दीवारों से लग मत सो
रहो खुले में, वरो सुगत
तोड़ो हर कमजोर भवन
मलबा तनिक न रहे अगन
बैठो जा मैदानों में
हिम्मत देने करो जतन
दूर करो सब दूरियाँ
गले लगा दो प्यार
धरती की छाती फ़टी
फैला हाहाकार
***
नवगीत:
.
पशुपतिनाथ!
तुम्हारे रहते
जनगण हुआ अनाथ?
.
वसुधा मैया भईं कुपित
डोल गईं चट्टानें.
किसमें बूता
धरती कब
काँपेगी अनुमाने?
देख-देख भूडोल
चकित क्यों?
सीखें रहना साथ.
अनसमझा भूकम्प न हो अब
मानवता का काल.
पृथ्वी पर भूचाल
हुए, हो रहे, सदा होएंगे.
हम जीना सीखेंगे या
हो नष्ट बिलख रोएँगे?
जीवन शैली गलत हमारी
करे प्रकृति से बैर.
रहें सुरक्षित पशु-पक्षी, तरु
नहीं हमारी खैर.
जैसी करनी
वैसी भरनी
फूट रहा है माथ.
पशुपतिनाथ!
तुम्हारे रहते
जनगण हुआ अनाथ?
.
टैक्टानिक हलचल को समझें
हटें-मिलें भू-प्लेटें.
ऊर्जा विपुल
मुक्त हो फैले
भवन तोड़, भू मेटें.
रहे लचीला
तरु ना टूटे
अड़ियल भवन चटकता.
नींव न जो
मजबूत रखे
वह जीवन-शैली खोती.
उठी अकेली जो
ऊँची मीनार
भग्न हो रोती.
वन हरिया दें, रुके भूस्खलन
कम हो तभी विनाश।
बंधन हो मजबूत, न ढीले
रहें हमारे पाश.
छूट न पायें
कसकर थामें
'सलिल' हाथ में हाथ
पशुपतिनाथ!
तुम्हारे रहते
जनगण हुआ अनाथ?
***
जबलपुर भूकंप की बरसी पर
दोहा गीत :
करो सामना
*
जब-जब कंपित भू हुई
हिली आस्था-नीव
आर्तनाद सुनते रहे
बेबस करुणासींव
न हारो करो सामना
पूर्ण हो तभी कामना
*
ध्वस्त हुए वे ही भवन
जो अशक्त-कमजोर
तोड़-बनायें फिर उन्हें
करें परिश्रम घोर
सुरक्षित रहे जिंदगी
प्रेम से करो बन्दगी
*
संरचना भूगर्भ की
प्लेट दानवाकार
ऊपर-नीचे चढ़-उतर
पैदा करें दरार
रगड़-टक्कर होती है
धरा धीरज खोती है
*
वर्तुल ऊर्जा के प्रबल
करें सतत आघात
तरु झुक बचते, पर भवन
अकड़ पा रहे मात
करें गिर घायल सबको
याद कर सको न रब को
*
बस्ती उजड़ मसान बन
हुईं प्रेत का वास
बसती पीड़ा श्वास में
त्रास ग्रस्त है आस
न लेकिन हारेंगे हम
मिटा देंगे सारे गम
*
कुर्सी, सिल, दीवार पर
बैंड बनायें तीन
ईंट-जोड़ मजबूत हो
कोने रहें न क्षीण
लचीली छड़ें लगाओ
बीम-कोलम बनवाओ
*
दीवारों में फंसायें
चौखट काफी दूर
ईंट-जुड़ाई तब टिके
जब सींचें भरपूर
रैक-अलमारी लायें
न पल्ले बिना लगायें
*
शीश किनारों से लगा
नहीं सोइए आप
दीवारें गिर दबा दें
आप न पायें भाँप
न घबरा भीड़ लगायें
सजग हो जान बचायें
*
मेज-पलंग नीचे छिपें
प्रथम बचाएं शीश
बच्चों को लें ढांक ज्यों
हुए सहायक ईश
वृद्ध को साथ लाइए
ईश-आशीष पाइए
१३-५-२०१५
***
नवगीत:
.
जो हुआ सो हुआ
.
बाँध लो मुट्ठियाँ
चल पड़ो रख कदम
जो गये, वे गये
किन्तु बाकी हैं हम
है शपथ ईश की
आँख करना न नम
नीलकण्ठित बनो
पी सको सकल गम
वृक्ष कोशिश बने
हो सफलता सुआ
.
हो चुका पूर्व में
यह नहीं है प्रथम
राह कष्टों भरी
कोशिशें हों न कम
शेष साहस अभी
है बहुत हममें दम
सूर्य हैं सच कहें
हम मिटायेंगे तम
उठ बढ़ें, जय वरें
छोड़कर हर खुआ
.
चाहते क्यों रहें
देव का हम करम?
पालते क्यों रहें
व्यर्थ मन में भरम?
श्रम करें तज शरम
साथ रहना धरम
लोक अपना बनाएंगे
फिर श्रेष्ठ हम
गन्स जल स्वेद है
माथ से जो चुआ
मंगलवार, २८ अप्रैल २०१५
***
नवगीत:
.
धरती काँपी,
नभ थर्राया
महाकाल का नर्तन
.
विलग हुए भूखंड तपिश साँसों की
सही न जाती
भुज भेंटे कंपित हो भूतल
भू की फटती छाती
कहाँ भू-सुता मातृ-गोद में
जा जो पीर मिटा दे
नहीं रहे नृप जो निज पीड़ा
सहकर धीर धरा दें
योगिनियाँ बनकर
इमारतें करें
चेतना-कर्तन
धरती काँपी,
नभ थर्राया
महाकाल का नर्तन
.
पवन व्यथित नभ आर्तनाद कर
आँसू धार बहायें
देख मौत का तांडव चुप
पशु-पक्षी धैर्य धरायें
ध्वंस पीठिका निर्माणों की,
बना जयी होना है
ममता, संता, सक्षमता के
बीज अगिन बोना है
श्वास-आस-विश्वास ले बढ़े
हास, न बचे विखंडन
सोमवार, २७ अप्रैल २०१५
***
दोहा सलिला:
.
रूठे थे केदार अब, रूठे पशुपतिनाथ
वसुधा को चूनर हरी, उढ़ा नवाओ माथ
.
कामाख्या मंदिर गिरा, है प्रकृति का कोप
शांत करें अनगिन तरु, हम मिलकर दें रोप
.
भूगर्भीय असंतुलन, करता सदा विनाश
हट संवेदी क्षेत्र से, काटें यम का पाश
.
तोड़ पुरानी इमारतें, जर्जर भवन अनेक
करे नये निर्माण दृढ़, जाग्रत रखें विवेक
.
गिरि-घाटी में सघन वन, जीवन रक्षक जान
नगर बसायें हम विपुल, जिनमें हों मैदान
.
नष्ट न हों भूकम्प में, अपने नव निर्माण
सीखें वह तकनीक सब, भवन रहें संप्राण
.
किस शक्ति के कहाँ पर, आ सकते भूडोल
ज्ञात, न फिर भी सजग हम, रहे किताबें खोल
.
भार वहन क्षमता कहाँ-कितनी लें हम जाँच
तदनसार निर्माण कर, प्रकृति पुस्तिका बाँच
***
नवगीत:
.
आपद बिना बुलाये आये
मत घबरायें.
साहस-धीरज संग रखें
मिलकर जय पायें
.
भूगर्भी चट्टानें सरकेँ,
कांपे धरती.
ऊर्जा निकले, पड़ें दरारें
उखड़े पपड़ी
हिलें इमारत, छोड़ दीवारें
ईंटें गिरतीं
कोने फटते, हिल मीनारें
भू से मिलतीं
आफत बिना बुलाये आये
आँख दिखाये
सावधान हो हर उपाय कर
जान बचायें
आपद बिना बुलाये आये
मत घबरायें.
साहस-धीरज संग रखें
मिलकर जय पायें
.
द्वार, पलंग तले छिप जाएँ
शीश बचायें
तकिया से सर ढाँकें
घर से बाहर जाएँ
दीवारों से दूर रहें
मैदां अपनाएँ
वाहन में हों तुरत रोक
बाहर हो जाएँ
बिजली बंद करें, मत कोई
यंत्र चलायें
आपद बिना बुलाये आये
मत घबरायें.
साहस-धीरज संग रखें
मिलकर जय पायें
.
बाद बड़े झटकों के कुछ
छोटे आते हैं
दिवस पाँच से सात
धरा को थर्राते हैं
कम क्षतिग्रस्त भाग जो उनकी
करें मरम्मत
जर्जर हिस्सों को तोड़ें यह
अतिआवश्यक
जो त्रुटिपूर्ण भवन उनको
फिर गिरा बनायें
आपद बिना बुलाये आये
मत घबरायें.
साहस-धीरज संग रखें
मिलकर जय पायें
.
है अभिशाप इसे वरदान
बना सकते हैं
हटा पुरा निर्माण, नव नगर
गढ़ सकते हैं.
जलस्तर ऊपर उठता है
खनिज निकलते
भू संरचना नवल देख
अरमान मचलते
आँसू पीकर मुस्कानों की
फसल उगायें
आपद बिना बुलाये आये
मत घबरायें.
साहस-धीरज संग रखें
मिलकर जय पायें
२२-५-२०१७
***
नवगीत:
प्रयासों की अस्थियों पर
*
प्रयासों की अस्थियों पर
सुसाधन के मांस बिन
सफलता-चमड़ी शिथिल हो झूलती.
*
सांस का व्यापार
थमता अनथमा सा
आस हिमगिरि पर
निरंतर जलजला सा.
अंकुरों को
पान गुटखा लीलता नित-
मुँह छिपाता नीलकंठी
फलसफा सा.
ब्रांडेड मँहगी दवाई
अस्पताली भव्यताएँ
रोग को मुद्रा-तुला पर तौलती.
प्रयासों की अस्थियों पर
सुसाधन के मांस बिन
सफलता-चमड़ी शिथिल हो झूलती.
*
वीतरागी चिकित्सक को
रोग से लेना, न देना
कई दर्जन टेस्ट
सालों औषधि, राहत न देना.
त्रास के तूफ़ान में
बेबस मरीजों को खिलौना-
बना खेले निष्ठुरी
चाबे चबेना.
आँख पीड़ा-हताशा के
अनलिखे संवाद
पल-पल मौन रहकर बोलती.
प्रयासों की अस्थियों पर
सुसाधन के मांस बिन
सफलता-चमड़ी शिथिल हो झूलती.
२२-५-२०१५
***
मुक्तिका:
आए हो
*
बहुत दिनों में मुझसे मिलने आए हो.
यह जाहिर है तनिक भुला न पाये हो..

मुझे भरोसा था-है, बिछुड़ मिलेंगे हम.
नाहक ही जा दूर व्यर्थ पछताए हो..

खलिश शूल की जो हँसकर सह लेती है.
उसी शाख पर फूल देख मुस्काए हो..

अस्त हुए बिन सूरज कैसे पुनः उगे?
जब समझे तब खुद से खुद शर्माए हो..

पूरी तरह किसी को कब किसने समझा?
समझ रहे यह सोच-सोच भरमाए हो..

ढाई आखर पढ़ बाकी पोथी भूली.
जब तब ही उजली चादर तह पाए हो..

स्नेह-'सलिल' में अवगाहो तो बात बने.
नेह नर्मदा कब से नहीं नहाए हो..
***
स्वास्थ्य सलिला
*
रोज संतरा खाइए, किडनी रहे निरोग.
पथरी घुलकर निकलती, आप करें सुख-भोग..
*
सेवन से तरबूज के, मिले शक्ति-भंडार.
परा बैंगनी किरण का, करे यही प्रतिकार.
*
कब्ज़ मिटा सी विटामिन, देते हैं भरपूर.
रोज़ पपैया-गुआवा, जी भर खांय जरूर.
*
पौरुष ग्रंथिज रोग को, रखता तन से दूर.
रोज टमाटर खाइए, स्वाद रुचे भरपूर..
*
अजवाइन-जैतून का, तेल बढ़ाये आब.
बढ़ा हुआ घट जायेगा, 'सलिल' रक्त का दाब..
*
खा ब्रोकोली (गोभी) मूंगफली, बनिए सेहतमंद.
रक्त-शर्करा नियंत्रित , इंसुलीन हो बंद..
*
बड़ी आँत का कैंसर, उराघात से जूझ.
सेब किवी नित खाइए, खनिज विटामिन बूझ.
*
खा हिसाल-शहतूत फल, रोग भगाएँ आप.
प्रतिरोधक ताकत बढ़े, दूर रहेगा ताप..
*
अगर फेंफड़े में हुआ, हो कैंसर का कष्ट.
नारंगी गहरी हरी, सब्जी होती इष्ट.
*
बंधा गोभी से मिले, अल्सर में आराम.
ज़ख्म ठीक हो शीघ्र ही, यदि न विधाता वाम..
*
अगर दस्त-अतिसार से, आप हो रहे त्रस्त.
खाएं केला-सेब भी, पस्त न हों, हों मस्त..
*
नाशपातियाँ खाइए, कम हो कोलेस्ट्रोल.
धमनी में अवरोध का, है इलाज अनमोल..
(एवाकाडो = नाशपाती की तरह का ऊष्णकटिबंधीय फल)
*
अनन्नास खा-रस पियें, हड्डी हो मजबूत.
टूटी हड्डी शीघ्र जुड़, दे आराम अकूत..
*
याददाश्त गर दे दगा, बातें रहें न याद.
सेवन करिए शुक्ति का, समय न कर बर्बाद ..
(शुक्ति = सीप)
*
सर्दी-कोलेस्ट्रोल जब बढ़े, न हों हैरान.
लहसुन का सेवन करे, सस्ता-सुलभ निदान..
*
मिर्च खाइए तो रहे, बढ़ा हुआ कफ शांत.
ध्यान पेट का भी रखें, हो ना क्रुद्ध-अशांत..
*
गेहूँ चोकर खाइए, पत्ता गोभी संग.
वक्ष कैंसर में मिले, लाभ-आप हों दंग
*
करे नाक में दम दमा,'सलिल' न हो आराम.
खा-छाती पर लगा लें, प्याज़ करें विश्राम..
*
संधिवात-गठिया करे, अगर आपको तंग.
मछली का सेवन करें, मन में जगे उमंग..
*
उदर कष्ट से मुक्ति हो, केला खाएं आप.
अदरक उबकाई मिटा, हरती है संताप..
*
मूत्राशय संक्रमण में, हों न आप हैरान.
क्रेनबैरी का रस पियें, आए जां में जान..
(क्रेनबैरी = करौंदा)
**
मछली-सेवन से 'सलिल', शीश-दर्द हो दूर.
दर्द और सूजन हरे, अदरक गुण भरपूर...
*
दही -शहद नित लीजिये, मिले ऊर्जा-शक्ति.
हर ज्वर भागे दूर हो, जीवन से अनुरक्ति..
*
हरी श्वेत काली पियें, चाय कमे हृद रोग.
धमनी से चर्बी घटे, पाचन बढ़े सुयोग..
*
नींद न आए-अनिद्रा, करे अगर हैरान.
शुद्ध शहद सेवन करें, देखें स्वप्न सुजान..
२२-५-२०१०
***

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