दोहांजलि
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गुरुवर सुरेश उपाध्याय जी, होशंगाबाद
निकट पढ़े अध्याय कुछ, जब 'सुरेश' के संग।
ऐसा चढ़ा न उतरता, मन से हिंदी-रंग।।
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स्मृतिशेष गुरुवर रामचंद्र दास जी, जबलपुर
वीतराग प्रभु भक्ति में, मिले सदा लवलीन।
शुभाशीष उसको दिया, पहले जो था दीन।।
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अग्रजवत डॉ. सुरेश कुमार वर्मा जी, जबलपुर
ठाठ कबीराना जिया, वाक् व्यास सी संग।
कर प्रयास लूँ सीख कुछ, सत्-चिंतन का ढंग।।
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आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी जी, जबलपुर
कृष्ण कांत आशीष पा, धन्य सलिल तू धन्य।
लोहे को सोना करे, चंद्रा-संग अनन्य।।
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स्मृति शेष भगवती प्रसाद देवपुरा, श्रीनाथद्वारा
हिंदी के हित समर्पित, रहे समर्पित आप।
सलिल-प्रेरणा स्रोत बन, रहे श्वास में व्याप।।
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स्मृतिशेष प्रो, भागवत प्रसाद मिश्र 'नियाज़', अहमदाबाद
सत्य साई आशीष पा, किया सृजन पठनीय।
श्रेष्ठ शलाका पुरुष हे!, हर पुस्तक मननीय।।
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अग्रजवत अमरनाथ जी, लखनऊ
'अमरनाथ' ने रख दिया, ज्यों ही सर पर हाथ।
पग पखारते सलिल को, चढ़ा लिया निज माथ।।
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डॉ. रामसनेही लाल शर्मा 'यायावर', फ़िरोज़ाबाद
'राम सनेही' ने दिया, जब जी भरकर स्नेह।
संजीवित संजीव हो, झट हो गया विदेह।।
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पूर्णिमा बर्मन, लखनऊ
पा प्रवीण सत्संग में, शरत पूर्णिमा आभ।
सलिल-लहर ज्योतित हुईं, छंद-छंद अरुणाभ।।
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देवकीनंदन 'शांत' जी, लखनऊ
शांत प्रशांत निशांत सम, जैसे उजली भोर।
नूर-नूर पा रच रहे, दोहे-ग़ज़ल अँजोर।।
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मनोज श्रीवास्तव जी, लखनऊ
ओज-तेज मसि-कलम है, श्री वास्तव में मीत।
मिला तुम्हें मन ओज मय, रचे मनोरम गीत।।
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वीणा तिवारी जी, जबलपुर
नेह नर्मदा निर्मला, तुममें दिखी सदैव।
आशीषित करती रहें सदा- सदय हो दैव।।
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डॉ. छाया राय जी, जबलपुर
नमन वाग्वैदग्ध्य को, सक 'कांट' को जान।
दर्शन का दर्शन करा, तार दिया मतिमान।।
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साधना उपाध्याय जी, जबलपुर
कर्मठता-संघर्ष की, ज्योतित दीप्त मशाल।
अटल प्रेरणा-स्रोत तुम, पग छू हुआ निहाल।।
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डॉ. इला घोष जी, जबलपुर
सृजन अकुंठित कर रहीं, लुटा रहीं सद्ज्ञान।
मथकर वैदिक वांग्मय, करा रहीं सत्-पान।।
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