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शनिवार, 9 मई 2020

कोरोना : अभिशाप में वरदान


विश्ववाणी हिंदी संस्थान - अभियान जबलपुर
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विमर्श - कोरोना : अभिशाप में वरदान
अध्यक्षीय संबोधन : संजीव वर्मा 'सलिल'
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माँ शारदा - माँ भारती को प्रणाम। मुख्य अतिथि प्रिय विनोद जैन वाग्वर तथा सारगर्भित बीज वक्तव्य हेतु बसंत शर्मा जी के प्रति आभार। कुशल संचालन हेतु आलोक रंजन जी के प्रति शुभाशंसा। सभी वक्ताओं पुनीता जी, रजनी जी, छाया जी, मंजरी जी, संतोष जी, बबिता जी, शशि जी, कामना बिटिया, मुकुल जी, अरविन्द जी, अरुण जी, श्वेतांक किशोर जी, राजीव जी, श्यामलकिशोर जी, राजकुमार जी, महेशप्रकाश जी, ने विषय पर केंद्रित सटीक विचार व्यक्त कर इस विमर्श की सार्थकता सिद्ध की है। आप सबको हृद्तल से साधुवाद। इस विमर्श का विचार करते समय शंका थी कि कितना सफल होगा? आप सबने सिद्ध कर दिया 'विश्वासम फलदायकं' ।

कोरोना के संदर्भ में रामचरित मानस में उत्तरकाण्ड में कुछ संकेत हैं।

सब कई निंदा जे जड़ करहीं। ते चमगादुर होइ अवतरहीं।
सुनहु तात अब मानस रोगा। जिन्ह ते दुःख पावहिं सब लोग।। १२० / १४

सबकी निंदा करनेवाला चीन, चमगादड़ व् मेंढक उनका आहार है। वाइरोलोजी की पुस्तकों व् अनुसंधानों के अनुसार कोविद १९ महामारी चमगादडो से मनुष्यों में फैली है।

काम बात कफ लोभ अपारा। क्रोध पित्त नित छाती जारा।। १२० / १५

कोरोना में कफ ही कंठ और वक्ष को प्रभावित कर रहा है।

एक ब्याधि बस नर मरहिं ए असाधि बहु ब्याधि।

पीड़हिं संतत जीव कहुँ सो किमि लहै समाधि॥१२१ क

एक ही व्याधि (रोग कोविद १९) से असंख्य लोग मरेंगे, फिर अनेक व्याधियाँ (कोरोना के साथ मधुमेह, रक्तचाप, कैंसर, हृद्रोग आदि) हों तो मनुष्य चैन से समाधि (मुक्ति / शांति) भी नहीं पा सकता।

नेम धर्म आचार तप, ज्ञान जग्य जप दान।

भेषज पुनि कोटिन्ह नहिं, रोग जाहिं हरिजान।। १२१ ख

नियम (एकांतवास, क्वारेंटाइन), धर्म (समय पर औषधि लेना), सदाचरण (स्वच्छता, सामाजिक दूरी, सेनिटाइजेशन,गर्म पानी पीना आदि ), तप (व्यायाम आदि से प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाना), ज्ञान (क्या करें या न करें जानना), यज्ञ (मनोबल हेतु ईश्वर का स्मरण), दान (गरीबों को या प्रधान मंत्री कोष में) आदि अनेक उपाय हैं तथापि व्याधि सहजता से नहीं जाती।
एहि बिधि सकल जीव जग रोगी। सोक हरष भय प्रीति बियोगी।।

मानस रोग कछुक मैं गाए। हहिं सब कें लखि बिरलेहिं पाए।।१२१ / १

इस प्रकार सब जग रोगग्रस्त होगा (कोरोना से पूरा विश्व ग्रस्त है) जो शोक, हर्ष, भय, प्यार और विरह से ग्रस्त होगा। हर देश दूसरे देश के प्रति शंका, भय, द्वेष, स्वार्थवश संधि, और संधि भंग आदि से ग्रस्त है। तुलसी ने कुछ मानसिक रोगों का संकेत मात्र किया है, शेष को बहुत थोड़े लोग (नेता, अफसर, विशेषज्ञ) जान सकेंगे।

जाने ते छीजहिं कछु पापी। नास न पावहिं जन परितापी।।

बिषय कुपथ्य पाइ अंकुरे। मुनिहु हृदयँ का नर बापुरे।। १२१ / २

जिनके बारे में पता च जाएगा ऐसे पापी (कोरोनाग्रस्त रोगी, मृत्यु या चिकित्सा के कारण) कम हो जायेंगे , परन्तु विषाणु का पूरी तरह नाश नहीं होगा। विषय या कुपथ्य (अनुकूल परिस्थिति या बदपरहेजी) की स्थिति में मुनि (सज्जन, स्वस्थ्य जन) भी इनके शिकार हो सकते हैं जैसे कुछ चिकित्सक आदि शिकार हुए तथा ठीक हो चुके लोगों में दुबारा भी हो सकता है।

तुलसी यहीं नहीं रुकते, संकेतों में निदान भी बताते हैं।

राम कृपाँ नासहिं सब रोगा। जौं एहि भाँति बनै संजोगा॥
सदगुर बैद बचन बिस्वासा। संजम यह न बिषय कै आसा॥ १२१ / ३

ईश्वर की कृपा से संयोग (जिसमें रोगियों की चिकित्सा, पारस्परिक दूरी, स्वच्छता, शासन और जनता का सहयोग) बने, सद्गुरु (सरकार प्रमुख) तथा बैद (डॉक्टर) की सलाह मानें, संयम से रहे, पारस्परिक संपर्क न करें तो रोग का नाश हो सकता है।

नकारात्मकता हल नहीं :

कोरोना को लेकर पत्रकार जगत अतिशयोक्तिपरक सनसनीखेज नकारात्मकता फैलाता रहा है।

रात के अँधेरे के बाद भोर का उजाला :
हमारी दृष्टि यह है कि "रात भर का है मेहमां अँधेरा, किसके रोके रुका है सवेरा"। अभिशाप कोरोना का मुकाबला कर हम इसे वरदान बना दें।

तालाबंदी के इन दिनों में पारंपरिक परिवार पद्धति को पुनर्जीवन मिला है। पीढ़ियों के बीच का अंतर घटा है। दूरियों का स्थान निकटता ले रही है। बरसों बाद पूरा परिवार एक साथ दूरदर्शन देखते समय निकट रह पा रहा है। यह नैकट्य स्थायी हो। तीन पीढ़ियाँ एक साथ रहें, बात करें, सुख-दुख बाँटें। समाज में वृद्धाश्रम घटें।

विवाह, अंतिम संस्कार आदि सादगी व मितव्ययिता से करने की परंपरा बन रही है, इसे स्थायित्व दें। झूठी शान-शौकत की आदत ख़त्म करें। वह राशि किसी समाजोपयोगी कार्य में लगाएँ।

इस दुष्काल में निर्धनों व असहायों की सहायता की प्रवृत्ति बढ़ी है। जीव-जंतुओें, पशु-पक्षियों के प्रति सद्भावना बढ़ी है। हमारे बचपन में हर घर में हर दिन गाय, कुत्ते, भिखारी के लिए रोटी बनती थी। चीटियों, पंछियों और मछलियों को आहार दिया जाता था। यह अब फिर से हो।

कोरोना के प्रतिबंधों में पर्यावरण प्रदूषण घटा है। वायु, जल, ध्वनि सभी शुद्ध हुए हैं। सामाजिक प्रदूषण अपराध और भ्रष्टाचार कम हुआ है। क्यों न हम इसे हमेशा के लिए घटा दें? वाहनों का दुरुपयोग हमेशा के लिए छोड़ दिया जाए। देश के आयल पूल का घाटा कम हो। वाहन आवश्यक होने पर ही चलाएँ। इससे सड़क दुर्घटना भी कम होंगी।

कोरोना का मुकाबला करने के लिए सामाजिक एकता बढ़ी है। समर्थों के मन में असमर्थों के प्रति सहायता का भाव उमड़ा है। यह हमारे दैनिक जीवन का अंग बने। हर समर्थ व्यक्ति किसी गरीब विद्यार्थी के अध्ययन का खर्च उठाए। सामाजिक उपयोग के निर्माण कराए। जर्जर शाला भवनों के मरम्मत कराए।

स्वतंत्रता संघर्ष के समय विदेशी सत्ता के कानूनों को तोड़ने की मनोभावना स्वतंत्रता के बाद अपनी सरकार और अपने कानूनों को तोड़ने के रूप में उभरी। इस आपदा काल में तालाबंदी, एकांतवास, सामाजिक दूरी आदि के पालन ने अधिकांश लोगों को अनुशासन का पाठ सिखाया है। यह अनुशासन हमारे जीवन का स्थायी अंग बने। यातायात नियमों का उल्लंघन न हो। पान-गुटखा, शराब का बहिष्कार हो।

कोरोना ने वसुधैव कुटुंबकम्, विश्वैक नीड़म् की सनातन मान्यता को पुष्ट और व्यावहारिक किया है। सब देश मिलकर कोरोना का टीका और इलाज तलाश रहे हैं। एक दूसरे की सहायता कर रहे हैं। शीत युद्धों और गुटों में में बँटा विश्व चिकित्सा संसाधनों का आदान-प्रदान कर रहा है, कोरोना की औषधि खोज रहा है। यह सद्भाव बना रहे।
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कुछ रचनाएँ
कर्फ्यू वंदना
(रैप सौंग)
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घर में घर कर
बाहर मत जा
बीबी जो दे
खुश होकर खा
ठेला-नुक्कड़
बिसरा भुख्खड़
बेमतलब की
बोल न बातें
हाँ में हाँ कर
पा सौगातें
ताँक-झाँक तज
भुला पड़ोसन
बीबी के संग
कर योगासन
चौबिस घंटे
तुझ पर भारी
काम न आए
प्यारे यारी
बन जा पप्पू
आग्याकारी
तभी बेअसर
हो बीमारी
बिसरा झप्पी
माँग न पप्पी
चूड़ी कंगन
करें न खनखन
कहे लिपिस्टिक
माँजो बर्तन
झाड़ू मारो
जरा ठीक से
पौंछा करना
बिना पीक के
कपड़े धोना
पर मत रोना
बाई न आई
तुम हो भाई
तुरुप के इक्के
बनकर छक्के
फल चाहे बिन
करो काम गिन
बीबी चालीसा
हँस पढ़ना
अपनी किस्मत
खुद ही गढ़ना
जब तक कहें न
किस मत करना
मिस को मिस कर
मन मत मरना
जान बचाना
जान बुलाना
मिल लड़ जाएँ
नैन झुकाना
कर फ्यू लेकिन
कई वार हैं
कर्फ्यू में
झुक रहो, सार है
बीबी बाबा बेबी की जय
बोल रहो घुस घर में निर्भय।।
***
नवगीत
*
पीर ने पूछें
दोस दै रये
काय निकल रय?

कै तो दई 'घर बैठो भइया'
दवा गरीबी की कछु नइया
ढो लाये कछु कौन बिदेस सें
हम भोगें कोरोना दइया
रोजी-रोटी गई
राम रे! हांत सें
तोते उड़ रय

दो बचो-बचाओ खाओ
फिर उधार सें काम चलाओ
दो दिन भूखे बैठ बिता लए
जान बचाने, गाँव बुला रओ
रेल-बसें भईं बंद
राम रे! लट्ठ
फुकट में घल रय
खोदत-खाउत जिनगी बीती
बिकी कसेंड़ी, गुल्लक रीती
तकवारों की मौज भई रे
जनता हारी, रिस्वत जीती
कग्गज पै बँट रओ
धन-रासन, आसें
गिद्ध निगल रय
***

गीत

कोरोना की जयकार करो

*
कोरोना की जयकार करो
तुम नहीं तनिक भी कभी डरो
*
घरवाले हो घर से बाहर
तुम रहे भटकते सदा सखे!
घरवाली का कब्ज़ा घर पर
तुम रहे अटकते सदा सखे!
जीवन में पहली बार मिला
अवसर घर में तुम रह पाओ
घरवाली की तारीफ़ करो
अवसर पाकर सत्कार करो
तुम नहीं तनिक भी कभी डरो
कोरोना की जयकार करो
*
जैसी है अपनी किस्मत है
गुणगान करो यह मान सदा
झगड़े झंझट बहसें छोडो
पाई जो उस पर रहो फ़िदा
हीरोइन से ज्यादा दिलकश
बोलो उसकी हर एक अदा
हँस नखरे नाज़ उठाओ तुक
चरणों कर झुककर शीश धरो
तुम नहीं तनिक भी कभी डरो
कोरोना की जयकार करो
*
झाड़ू मारो, बर्तन धोलो
फिर चाय-नाश्ता दे बोलो
'भोजन में क्या तैयार करूँ'
जो कहें बना षडरस घोलो
भोग लगाकर ग्रहण करो
परसाद' दया निश्चय होगी
झट दबा कमर पग-सेवा कर
उनके मन की हर पीर हरो
तुम नहीं तनिक भी कभी डरो
कोरोना की जयकार करो
*
ज्योति ज्योति ले हाथ में, देख रही है मौन
तोड़ लॉकडाउन खड़ा, दरवाजे पर कौन?

कोरोना के कैरियर, दूँगी नहीं प्रवेश
रख सोशल डिस्टेंसिंग, मान शासनादेश

जाँच करा अपनी प्रथम, कर एकाकीवास
लक्षण हों यदि रोग के, कर रोगालय वास

नाता केवल तभी जब, तन-मन रहे निरोग
नादां से नाता नहीं, जो करनी वह भोग
*
बेबस बाती जल मरी, किन्तु न पाया नाम
लालटेन को यश मिला, तेल जला बेदाम
***
एक रचना : साथ मोदी के

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कर्ता करता है सही, मानव जाने सत्य
कोरोना का काय को रोना कर निज कृत्य
कोरो ना मोशाय जी, गुपचुप अपना काम
जो डरता मरता वही, काम छोड़ नाकाम
भीत न किंचित् हों रहें, घर के अंदर शांत
मदद करें सरकार की, तनिक नहीं हों भ्रांत
बिना जरूरत क्रय करें, नहीं अधिक सामान
पढ़ें न भेजें सँदेशे, निराधार नादान
सोमवार को किया था, हम सबने उपवास
शास्त्री जी को मिली थी, उससे ताकत खास
जनता कर्फ्यू लगेगा, शत प्रतिशत इस बार
कोरोना को पराजित, कर देगा यह वार
नमन चिकित्सा जगत को, करें झुकाकर शीश
जान हथेली पर लिए, बचा रहे बन ईश
देश पूरा साथ मिलकर, लड़ रहा है जंग
साथ मोदी के खड़ा है, देश जय बजरंग
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आओ यदि रघुवीर
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
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गले न मिलना भरत से, आओ यदि रघुवीर
धर लेगी योगी पुलिस, मिले जेल में पीर

कोरोना कलिकाल में, प्रबल- करें वनवास
कुटिया में सिय सँग रहें, ले अधरों पर हास

शूर्पणखा की काटकर, नाक धोइए हाथ
सोशल डिस्टेंसिंग रखें, तीर मारकर नाथ

भरत न आएँ अवध में, रहिए नंदीग्राम
सेनेटाइज शत्रुघन, करें- न विधि हो वाम

कैकई क्वारंटाइनी, कितने करतीं लेख
रातों जगें सुमंत्र खुद, रहे व्यवस्था देख

कोसल्या चाहें कुसल, पूज सुमित्रा साथ
मना रहीं कुलदेव को, कर जोड़े नत माथ

देवि उर्मिला मांडवी, पढ़ा रहीं हैं पाठ
साफ-सफाई सब रखें, खास उम्र यदि साठ

श्रुतिकीरति जी देखतीं, परिचर्या हो ठीक
अवधपुरी में सुदृढ़ हो, अनुशासन की लीक

तट के वट नीचे डटे, केवट देखें राह
हर तब्लीगी पुलिस को, सौंप पा रहे वाह

मिला घूमता जो पिटा, सुनी नहीं फरियाद
सख्ती से आदेश निज, मनवा रहे निषाद

निकट न आते, दूर रह वानर तोड़ें फ्रूट
राजाज्ञा सुग्रीव की, मिलकर करो न लूट

रात-रात भर जागकर, करें सुषेण इलाज
कोरोना से विभीषण, ग्रस्त विपद में ताज

भक्त न प्रभु के निकट हों, रोकें खुद हनुमान
मास्क लगाए नाक पर, बैठे दयानिधान

कौन जानकी जान की, कहो करे परवाह?
लव-कुश विश्वामित्र ऋषि, करते फ़िक्र अथाह

वध न अवध में हो सके, कोरोना यह मान
घुसा मगर आदित्य ने, सुखा निकली जान
*
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
९४२५१८३२४४

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