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शुक्रवार, 6 जुलाई 2018

बृजांचल का लोक काव्य 'भजन जिकड़ी'

अभिनव प्रयोग:
प्रस्तुत है पहली बार खड़ी हिंदी में बृजांचल का लोक काव्य 'भजन जिकड़ी'
जय हिंद लगा जयकारा
*
गाह्यौ:
भारत माँ की ध्वजा, तिरंगी कर ले तानी। (११-१३, रोला, गुरु गुरु)
ब्रिटिश राज झुक गया, नियति अपनी पहचानी।। (११-१३, रोला, गुरु गुरु)​​​​​​​​​​​​​​
​अधरों पर मुस्कान। (११ मात्रा)
गाँधी बैठे दूर पोंछते, जनता के आँसू हर प्रात। (१६-१५, आल्हा, गुरु लघु)
गायब वीर सुभाष हो गए, कोई न माने नहीं रहे।। (१६-१५, आल्हा, लघु गुरु)
भजन:
जय हिंद लगा जयकारा।। (टेक / स्थाई १४ मात्रिक सखी छंद, पदांत यगण)
रास बिहारी; चरण भगवती; अमर रहें दुर्गा भाभी। (१६-१४ ताटंक, मगण)
बिन आजाद न पूर्ण लग रही, थी जनता को आज़ादी।। (१६-१४ ताटंक, मगण)
नहरू, राजिंदर, पटेल को, जनगण हुआ सहारा (१६-१२ सार, यगण)
जय हिंद लगा जयकारा।। (टेक)
जिकड़ी:
हुआ विभाजन मातृभूमि का। (१६, चौपाई, एक चरण)
झड़:
मार-काट होती थी भारी, लूट-पाट को कौन गिने। (१६-१४ ताटंक, मगण)
पंजाबी, सिंधी, बंगाली, मर-मिट सपने नए बुने।। (१६-१४ ताटंक, मगण)
तोड़:
संविधान ने नव आशा दी, सूरज नया निहारा। (१६-१२ सार, यगण)
मिलान:
जय हिंद लगा जयकारा।। (१४ मात्रिक सखी छंद, पदांत यगण)
जिकड़ी:
बनी योजना पाँच साल की।
झड़:
हुई हिंद की भाषा हिंदी, बाँध बन रहे थे भारी।
उद्योगों की फसल उग रही, पञ्चशील की तैयारी।।
तोड़:
पाकी-चीनी छुरा पीठ में, भोंकें; सोचें: मारा।
मिलान:
जय हिंद लगा जयकारा।।
झिकड़ी:
पल-पल जगती रहती सेना।
झड:
बना बांग्ला देश, कारगिल, कहता शौर्य-कहानी।
है न शेष बासठ का भारत, उलझ न कर नादानी।।
तोड़:
शशि-मंगल जा पहुँचा इसरो, गर्वित हिंद हमारा।।
मिलान:
जय हिंद लगा जयकारा।।
झिकड़ी:
सर्व धर्म समभाव न भूले।
झड़:
जग-कुटुंब हमने माना पर, हर आतंकी मारेंगे।
जयचंदों की खैर न होगी, गाड़-गाड़कर तारेंगे।।
तोड़:
आर्यावर्त बने फिर भारत, 'सलिल' मंत्र उच्चारा।।
मिलान:
जय हिंद लगा जयकारा।।
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६.७.२०१८, ७९९९५५९६१८

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