क्षणिका सलिला
अविनाश ब्योहार
*
चारा
अविनाश ब्योहार
*
चारा
जब कोई चारा
नहीं रहा तो
देना पड़ा प्रलोभन!
नैतिकता से
कार्य करवाना
सिद्ध हुआ
अरण्य रोदन!!
रस्म
पैसा खाना
दफ्तर की
हो गई
है रस्म!
लोग हो
गये हैं
चार चश्म!!
पस्त
लगता है
सूर्य हो गया
है अस्त!
प्रजातंत्र की
हालत पस्त!!
***
रायल एस्टेट
कटंगी रोड जबलपुर।
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