गुरु पर दोहे:
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जग-गुरु शिव शंकारि हैं, रखें अडिग विश्वास।
संग भवानी शक्ति पर, श्रद्धा बरती त्रास।।
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गुरु गिरि सम गरिमा लिए, रखता सिर पर हाथ।
शिष्य वही कुछ सीखा, जिसका नत हो माथ।।
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गुरुघंटाल न हो कहीं, गुरु रखिए यह ध्यान।
तन-अर्पित मत कीजिए, मन से करिए मान।।
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गुरु-वंदन कर ध्यान से, सुनिए उसके बोल।
ग्यान-पिटारी से मिलें, रत्न तभी अनमोल।।
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गुरु से करिए प्रश्न हो, निज जिग्यासा शांत।
जो गुरु की ले परीक्षा, भटके होकर भ्रांत।।
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मात्र एक दिन गुरु सुमिर, मिले न पूरा ग्यान।
गुरु सुमिरन कर सीख नित, दुहरा तज अभिमान।।
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सूर्य-चंद्र की तरह ही, हों गुरु-शिष्य हमेश।
इसकी ग्यान-किरण करे, उसमें विकल प्रवेश।।
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गुरु-प्रति नत शिर नमन कर, जो पाता आशीष।
उस पर ईश्वर सदय हों, बनता वही मनीष।।
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अंध भक्ति से दूर रह, भक्ति-भाव हर काल।
रखिए गुरु के प्रति सदा, दोनों हों खुशहाल।।
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गुरु-मत को स्वीकारिए, अगर रहे मतभेद।
नहीं पनपने दीजिए, किंचित भी मनभेद।।
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नया करें तो मानिए, गुरु का ही अाभार।
भवन तभी होता खड़ा, जब गुरु दें आधार।।
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28.7.2018, 7999559618
salil.sanjiv@gmail.com
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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शनिवार, 28 जुलाई 2018
दोहा सलिला: गुरु
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