मुक्तक
.
संवेदना की सघनता
वरदान है, अभिशाप भी.
अनुभूति की अभिव्यक्ति है
चीत्कार भी, आलाप भी.
निष्काम हो या कामकारित
कर्म केवल कर्म है-
पुण्य होता आज जो, होता
वही कल पाप है.
छंद- हरिगीतिका
...
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
सोमवार, 4 दिसंबर 2017
muktak chhand harigitikaa
चिप्पियाँ Labels:
छंद,
मुक्तक,
हरिगीतिका,
harigitika,
muktak
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें