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गुरुवार, 9 नवंबर 2017

tewari

तेवरी के तेवर :  
१.
ताज़ा-ताज़ा दिल के घाव.
सस्ता हुआ नमक का भाव..

मँझधारों-भँवरों को पार
किया, किनारे डूबी नाव..

सौ चूहे खाने के बाद
हुआ अहिंसा का है चाव..

ताक़तवर के चूम कदम
निर्बल को दिखलाया ताव..

ठण्ड भगाई नेता ने.
जला झोपडी, बना अलाव..

डाकू तस्कर चोर खड़े.
मतदाता क्या करे चुनाव..

नेता रावण जन सीता
कैसे होगा 'सलिल' निभाव?.
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२.
दिल ने हरदम चाहे फूल.
पर दिमाग ने बोये शूल..

मेहनतकश को कहें गलत.
अफसर काम न करते भूल..

बहुत दोगली है दुनिया
तनिक न भाते इसे उसूल..

पैर मत पटक नाहक तू
सर जा बैठे उड़कर धूल..

बने तीन के तेरह कब?
डुबा  दिया अपना धन मूल..

मँझधारों में विमल 'सलिल'
गंदा करते हम जा कूल..

धरती पर रख पैर जमा
'सलिल' न दिवास्वप्न में झूल..
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३.
खर्चे अधिक आय है कम.
दिल रोता आँखें हैं नम..

पाला शौक तमाखू का.
बना मौत का फंदा यम्..

जो करता जग उजियारा
उस दीपक के नीचे तम..

सीमाओं की फ़िक्र नहीं.
ठोंक रहे संसद में ख़म..

जब पाया तो खुश न हुए.
खोया तो करते क्यों गम?

टन-टन रुचे न मन्दिर की.
'सलिल' सुहाती साकी-रम
***
salil.sanjiv@gmail.com, ९४२५१८३२४४ 

www.divyanarmada.in, #हिंदी_ब्लॉगर

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