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गुरुवार, 30 नवंबर 2017

hindi gazal / muktika

हिंदी ग़ज़ल / मुक्तिका
पाठ १ 
हिंदी ग़ज़ल को मुक्तिका कहें क्योंकि हर द्विपदी (दो पंक्तियाँ या शे'र) शेष से मुक्त अपने आप में पूर्ण होती हैं.मुक्तिका में पदांत तथा तुकांत गज़ल की ही तरह होता है किन्तु पदभार (पंक्ति का वजन) हिंदी मात्रा गणना के अनुसार होता है. इसे हिंदी के छंदों को आधार बनाकर रचा जाता है. उर्दू ग़ज़ल बहर के आधार पर रची जाती है तथा वजन तकती'अ के मुताबिक देखा जाता है. जरूरत हो तो लघु को गुरु और गुरु को लघु पढ़ा जा सकता है, मुक्तिका में यह छूट नहीं होती. 
गीतिका हिंदी छंद शास्त्र में एक स्वतंत्र छंद है जिसमें १४-१२ = २६ मात्राएँ हर पंक्ति में होती हैं तथा पंक्त्यांत में लघु-गुरु होता है.
गजल में प्रचलित बहरें और उनकी मापनी क्या है? 
मुक्तिका, ग़ज़ल, तेवरी, अनुगीत, गीतिका आदि नामों से एक ही शिल्प की रचनाएँ संबोधित की जाती हैं। उनके तत्वों सम्बन्धी जानकारी-
शब्दार्थ 
कवि / शायर- जानकार, जाननेवाला, ज्ञानी, वह व्यक्ति जो विधा तथा विषय को जानकर उस पर लिखता है। 
द्विपदी / शे'र (बहुवचन अश'आर) - द्विपदी अर्थे दो पंक्तियाँ, शे'र = जानना, जानी हुई बात, ज्ञान। 
बैत- फुटकर या अकेली दो पंक्ति तथा समान छंद व भार (वजन) की रचना। 
मिसरा- पंक्ति / पद। पहली पंक्ति- अग्र पंक्ति, मिसरा ऊला। दूसरी पंक्ति- पाद पंक्ति, मिसरा सानी। 
मिस्राए उला = शेर की प्रथम पंक्ति।
मिस्राए सानी = शेर की दूसरी पंक्ति।
रदीफ़ = (बहुवचन रदाइफ), पदांत, पंक्त्यांत, पंक्ति के अंत में प्रयोग हुआ शब्द या शब्द समूह। बेरदीफ = रदीफ़ रहित।
काफिया = (बहुवचन कवाफी) तुकान्त, पदांत के पहले प्रयुक्त शब्द इनके अंतिम अक्षर या मात्रा आपस में मिलते हैं।
मतला = प्रारम्भिका, उदयिका, मुखड़ा, रचना के आरंभ में प्रयुक्त पंक्ति-युग्म जिनमें तुकांत-पदांत समान हो। 
मक्ता = अंतिका, समाप्तिका, अंतिम द्विपदी, इसी में रचनाकार का नाम या उपनाम रखा जाता है।
रुक्न = (बहुवचन इरकान) गण, स्तंभ, खंबा।
अज्जाये रुक्न = लय खंड।
वज्न = मात्रा भार या वर्ण संख्या। 
सबब = द्विकल, दो मात्रा।
बतद= त्रिकल, तीन मात्रा।
फासला = चतुश्कल, चार मात्रा।
सदर = उदय।
अरूज़ = उत्कर्ष।
इब्तदा = प्रारंभ।
ज़रब = अंत।
तक्तीअ = शेर की कसोटी या छन्द विभाजन।
बहर = छन्द।
मुरक्कब = मिश्रित।
मजाइफ़ = परिवर्तन।
सालिम = पूर्ण।
रब्त = अन्तर्सम्बन्ध।
पदांत / रदीफ़- वह शब्द समूह, शब्द, अक्षर या मात्रा जिससे पंक्ति का अंत होता है। 
तुकांत / काफ़िया- पदांत के पहले प्रयुक्त शब्द का अंतिम अक्षर या मात्रा। 
उदाहरण- 
१. कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं / गाते-गाते लोग चिल्लाने लगे हैं।
यहाँ 'लगे हैं' पदांत तथा 'आने व चिल्लाने' तुकांत हैं। 
मुक्तिका / गजल में पहली दो पंक्तियों में प्रयुक्त पदांत और तुकांत का अगली हर दूसरी पंक्ति के अंत में प्रयोग किया जाना अनिवार्य होता है।
किसी मुक्तिका में तुकांत ही पदांत भी हो सकता है अर्थात तुकांत के बाद पदांत अलग से न हो तो भी कोई दोष नहीं है। इसे तुकांतहीन या बेदरीफ कहते हैं।
उदाहरण- 
अपना बिम्ब निहारो दर्पण मत तोड़ो / राह भटकने से पहले पग को मोड़ो 
यहाँ 'तोड़ो', 'मोड़ो' तुकांत और पदांत दोनों है, तुकांत के बाद पदांत अलग से नहीं है।
आरम्भिका / मुखड़ा / मतला- प्रथम दो पंक्तियाँ जिनमें छन्द, पदभार, तुकांत तथा पदांत समान हो। 
इस अनुसार दो से अधिक पंक्ति-युग्म होने पर उन्हें क्रमश: प्रथम मुखड़ा (मतला ऊला), द्वितीय मुखड़ा (मतला सानी), तृतीय मुखड़ा (मतला सोम), चौथा मुखड़ा (मतला चहारम) आदि कहते हैं । पहले कई-कई मुखड़ों की रचना करना सम्मान की बात समझी जाती थी, अब दो से अधिक मुखड़ों का चलन नहीं है। 
अंतिका / मक़ता- मुक्तिका / गजल की अंतिम दो पंक्तियाँ। इनमें रचनाकार अपना उपनाम / तखल्लुस का प्रयोग कर सकता है। उपनाम का प्रयोग न करने पर रचना को अन्तिकाहीन (बेमक्ता) कहा जाता है। 
उपनाम / तखल्लुस- रचनाकार द्वारा प्रयुक्त नामंश, छद्म नाम या उपनाम। पहले रचना की आरंभ व अंत की द्विपदी में उपनाम प्रयोग किया जाता था। अब अंत में उपनाम देना या न देना भी ऐच्छिक है।
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हिंदी ग़ज़ल 
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ब्रम्ह से ब्रम्हांश का संवाद है हिंदी ग़ज़ल। 
आत्म की परमात्म से फ़रियाद है हिंदी ग़ज़ल।।
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मत गज़ाला-चश्म कहना, यह कसीदा भी नहीं।
जनक-जननी छन्द-गण, औलाद है हिंदी ग़ज़ल ।।
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जड़ जमी गहरी न खारिज़ समय कर सकता इसे 
सिया-सत सी सियासत, मर्याद है हिंदी ग़ज़ल ।।
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भार-पद गणना, पदांतक, अलंकारी योजना
दो पदी मणि माल, वैदिक पाद है हिंदी ग़ज़ल ।।
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सत्य-शिव-सुन्दर मिले जब, सत्य-चित-आनंद हो 
आsत्मिक अनुभूति शाश्वत, नाद है हिंदी ग़ज़ल ।।
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नहीं आक्रामक, न किञ्चित भीरु है, युग जान ले 
प्रात कलरव, नव प्रगति का नाद है हिंदी ग़ज़ल ।।
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धूल खिलता फूल, वेणी में महकता मोगरा 
छवि बसी मन में समाई याद है हिंदी ग़ज़ल ।।
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धीर धरकर पीर सहती, हर्ष से उन्मत्त न हो 
ह्रदय की अनुभूति का, अनुवाद है हिंदी ग़ज़ल ।।
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मुक्तिका है, तेवरी है, गीतिका भी कह रहे 
भाव का अनुभूति से संवाद है हिंदी ग़ज़ल ।।

परिश्रम, पाषाण, छेनी, स्वेद गति-यति नर्मदा 
युग रचयिता प्रयासों की दाद है हिंदी ग़ज़ल ।।
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[महाभागवत जातीय छन्द]
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