कुल पेज दृश्य

गुरुवार, 9 नवंबर 2017

गीत
*
वंदन पर्वतराज तुम्हारा
पहरेदार देश के हो तुम
देख उच्चता होश हुए गुम
शिखर घाटियाँ उच्च-भयावह
सरिताएँ कलकल जाती बह
अम्बर ने यशगान उचारा
*
जगजननी-जगपिता बसे हैं
मेघ बर्फ में मिले धँसे हैं
ब्रम्हपुत्र-कैलाश साथ मिल
हँसते हैं गंगा सँग खिलखिल
चाँद-चाँदनी ने उजियारा
*
दशमुख-सगर हुए जब नतशिर
समाधान थे दूर नहीं फिर
पांडव आ सुरपुर जा पाये
पवन देव जय गा मुस्काये
भास्कर ने तम सकल बुहारा
*
शीश मुकुट भारत माँ के हो
रक्षक आक्रान्ताओं से हो
जनगण ने सर तुम्हें नवाया
अपने दिल में तुम्हें बसाया
सागर ने हँस बिम्ब निहारा 
***

कोई टिप्पणी नहीं: