कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 12 सितंबर 2017

मुक्तिका

मेरे लिए
.
आस का भुजहार तू मेरे लिए.
श्वास का श्रृंगार तू मेरे लिए.
.
स्नेह-सलिला नर्मदा के तीर पर
साधना-आगार तू मेरे लिए.
.
उषा, दोपहरी, सरस संध्या-निशा
कल्पना साकार तू मेरे लिए.
.
मोहिनी आभा प्रखर तव दीप्ति है
कीर्ति नव उपहार है मेरे लिए.
.
देख कांता-कांति हैं अपलक नयन
नाव तू,  पतवार है मेरे लिए.
.
हो विसर्जित मैं गया तुझमें सनम!
ज़िन्दगी हमवार है मेरे लिए.
.
मिले जो भी मिलन-पल तेरे दिए
छ्न्द तव मनुहार है मेरे लिए.
.
था अधूरा हुआ पूरा स्वप्न हर
हौसला-आगार तू मेरे लिए.
.
मैं हुआ नि:शेष, तू भी है नहीं
हम, न भ्रम आधार है मेरे लिए.
.
(उन्नीस मात्रिक,  महापौराणिक जातीय आनंदवर्धक छंद )

कोई टिप्पणी नहीं: