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शनिवार, 13 मई 2017

manmohan chhand

रसानंद दे छंद नर्मदा ८२:  
 


दोहा, ​सोरठा, रोला, ​आल्हा, सार​,​ ताटंक (चौबोला), रूपमाला (मदन), चौपाई​, ​हरिगीतिका, उल्लाला​, गीतिका, ​घनाक्षरी, बरवै, त्रिभंगी, सरसी, छप्पय, भुजंगप्रयात, कुंडलिनी, सवैया, शोभन/सिंहिका, सुमित्र, सुगीतिका , शंकर, मनहरण (कवित्त/घनाक्षरी), उपेन्द्रव
ज्रा
, इंद्रव
​​
ज्रा, 
सखी
​, 
विधाता/शुद्धगा, 
वासव
​, 
अचल धृति
​,  
अचल
​, अनुगीत, अहीर, अरुण, 
अवतार, 
​​उपमान / दृढ़पद,  
एकावली,  
अमृतध्वनि, नित, आर्द्रा, ककुभ/कुकभ, कज्जल, कमंद, कामरूप, कामिनी मोहन (मदनावतार), 
काव्य, 
वार्णिक कीर्ति, 
कुंडल, गीता, गंग, 
चण्डिका, चंद्रायण, छवि (मधुभार), जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिग्पाल / दिक्पाल / मृदुगति, दीप, दीपकी, दोधक, निधि, निश्चल
प्लवंगम, प्रतिभा, प्रदोषप्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनाग, 
मधुमालती छंदों से साक्षात के पश्चात् मिलिए  मनमोहन छंद से   

Rose    मनमोहन 
छंद
*
छंद-लक्षण: जाति मानव, प्रति चरण मात्रा १४ मात्रा, यति ८-६, चरणांत लघु लघु लघु (नगण) होता है.  

लक्षण छंद:रासविहारी, कमलनयन 
अष्ट-षष्ठ यति, छंद रतन
अंत धरे लघु तीन कदम 
नतमस्तक बलि, मिटे भरम.    

उदाहरण:
१. 
हे गोपालक!, हे गिरिधर!!
   हे जसुदासुत!, हे नटवर!!
   हरो मुरारी! कष्ट सकल
   
प्रभु! प्रयास हर करो सफल.  


२. राधा-कृष्णा सखी प्रवर
   पार्थ-सुदामा सखा सुघर
   दो माँ-बाबा, सँग हलधर   
   लाड लड़ाते जी भरकर
 

३. कंकर-कंकर शंकर हर
   पग-पग चलकर मंज़िल वर
   बाधा-संकट से मर डर
   नीलकंठ सम पियो ज़हर

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