कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 9 मई 2017

ek rachna

एक रचना
*
पत्नी ने तन-मन लुटा, किया तुझे स्वीकार.
तू भी क्या उस पर कभी सब कुछ पाया वार?
अगर नहीं तो यह बता, किसका कितना दोष?
प्यार न क्यों दे-ले सका, अब मत हो मदहोश..
बने-बनाया कुछ नहीं, खुद जाते हम टूट.
दोष दे रहे और को, बोल रहे हैं झूठ.
वह क्यों तोड़ेगा कभी, वह है रचनाकार.
चल मिलकर कुछ रचें हम, शून्य बने आकार..
९-५-२०१०
*

कोई टिप्पणी नहीं: