एक रचना
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पत्नी ने तन-मन लुटा, किया तुझे स्वीकार.
तू भी क्या उस पर कभी सब कुछ पाया वार?
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पत्नी ने तन-मन लुटा, किया तुझे स्वीकार.
तू भी क्या उस पर कभी सब कुछ पाया वार?
अगर नहीं तो यह बता, किसका कितना दोष?
प्यार न क्यों दे-ले सका, अब मत हो मदहोश..
प्यार न क्यों दे-ले सका, अब मत हो मदहोश..
बने-बनाया कुछ नहीं, खुद जाते हम टूट.
दोष दे रहे और को, बोल रहे हैं झूठ.
दोष दे रहे और को, बोल रहे हैं झूठ.
वह क्यों तोड़ेगा कभी, वह है रचनाकार.
चल मिलकर कुछ रचें हम, शून्य बने आकार..
९-५-२०१०
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चल मिलकर कुछ रचें हम, शून्य बने आकार..
९-५-२०१०
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