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शुक्रवार, 12 मई 2017

kavita
















एक रचना
माँ!
*
माँ!
गुलाबों की सुरभि सी 
श्वास में तुम हो समाई.
बिन तुम्हारे
 क्या बताऊँ
जिंदगी कैसे बिताई?
जो सिखाया
कर रहा वह.
जो बताया
वर रहा वह.
छंद हो,
मकरंद हो तुम
सत्य
आनंदकंद हो तुम.
बिन दिखे भी दिख रहीं
आशीष मुझको लिख रहीं.
हुआ बडभागी
तुम्हारे पगों में
गर्दन नवाई
*
१२-५-२०१७

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