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मंगलवार, 14 मार्च 2017

doha

दोहा-सलिला रंग भरी 
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लहर-लहर पर कमल दल, सुरभित-प्रवहित देख 
मन-मधुकर प्रमुदित अमित, कर अविकल सुख-लेख 
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कर वट प्रति झुक नमन झट, कर-सर मिल नत-धन्य 
बरगद तरु-तल मिल विहँस, करवट-करवट अन्य 
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कण-कण क्षण-क्षण प्रभु बसे, मनहर मन हर शांत 
हरि-जन हरि-मन बस मगन, लग्न मिलन कर कांत 
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मल-मल कर मलमल पहन, नित प्रति तन कर स्वच्छ 
पहन-पहन खुश हो 'सलिल', मन रह गया अस्वच्छ 
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रख थकित अनगिनत जन, नत शिर तज विश्वास 
जनप्रतिनिधि जन-हित बिसर, स्वहित वरें हर श्वास 
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उछल-उछल कपि हँस रहा, उपवन सकल उजाड़ 
किटकिट-किटकिट दंत कर, तरुवर विपुल उखाड़
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सर! गम बिन सरगम सरस, सुन धुन सतत सराह
बेगम बे-गम चुप विहँस, हर पल कहतीं वाह 
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सरहद पर सर! हद भुला, लुक-छिप गुपचुप वार 
कर-कर छिप-छिप प्रगट हों, हम सैनिक हर बार 
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कलकल छलछल बह सलिल, करे मलिनता दूर 
अमल-विमल जल तुहिन सम, निर्मलता भरपूर 
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