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मंगलवार, 7 मार्च 2017

muktika

मुक्तिका
पदभार २६ मात्रा
छंद- महाभागवत जातीय
पदांत- रगण, यति १७-९
*
स्वार्थ को परमार्थ या सर्वार्थ कहना आ गया     २६
निज हितों पर देश हित कुर्बान करना भा गया
.
मतलबी हैं हम, न कहना मतलबी हर शख्स है
जब जिसे अवसर मिला वह बिन डकारे खा गया
.
सियासत से सिया-सत की व्यर्थ क्यों उम्मीद है?
हर बशर खुदगर्ज़ है, जो वोट लेने आ गया
.
ऋण उठाकर घी पियें या कर्ज़ की हम मय पियें*
अदा करना ही नहीं है, माल्या सिखला गया
.
जानवर मारें, कुचल दें आदमी तो क्या हुआ?
गवाहों को मिटाकर बचना 'सलिल जी' भा गया
***
* ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत- चर्वाक पन्थ
    कर्ज़ की पीते थे मय - ग़ालिब


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